Loading...
...

रक्षात्मक स्वभाव और अस्थिर स्वाँस

3 years ago By Yogi Anoop

Defensive Self Conversation & Breathing Fluctuation 

     एक बात को यहाँ पर समझ लेना चाहिए कि ऐंज़ाइयटी स्वभाव के मनुष्यों में स्वयं से संतुष्ट होने की टेंडेन्सी बहुत कम होती है । ये हरकतें भी ऐसी उल जलूस की करते हैं जिससे इनके अंदर संसय अधिक बढ़े और आत्म संतोष में कमी आए । 

यदि बहुत गहराई से देखा जाय तो ऐंज़ाइयटी वाले व्यक्तियों के अंदर जब भी कोई सेल्फ़ conversation होता है उसमें स्वयं को या दूसरे बहुत जल्दी culprit बनाने की कोशिश की जाती है ।  

जो सबसे बड़ी बात है , वो है कि इनके इस सेल्फ़ कॉन्वर्सेशन में ये स्वयं को ही defensiveness मोड पर रखते है । ये हर वक्त बचाव की मुद्रा में होते हैं । ज़्यादातर लोग अंदर और बाहर दोनों डिफ़ेन्सिव मोड पर होते हैं । यहाँ पर डिफ़ेन्सिव मोड का अर्थ है , कि ये लोग स्वयं में इतना कॉन्फ़िडेंट नहीं होते जिससे स्वयं को ही कमजोर कर देते हैं ।  कुछ लोग अंदर से डिफ़ेन्सिव मोड पर होते हैं किंतु बाहर से फ़ेक रहे होते हैं । 

ध्यान दें इस प्रकार के लोग स्वयं में ही अजीबोग़रीब प्रश्न बनाते हैं , और अजीबोग़रीब उत्तर निकाल  लेते हैं ।  ऐसे मकड़ी का जाल बनाते है जिसमें स्वयं ही फँस जाते हैं । सत्य ये है कि बनाते ही इसलिए हैं कि हम इसमें फँसें । 

एक स्टूडेंट ने मुझसे , ईश्वर पर चिल्लाते हुए ग़ुस्से से बोलते हैं कि इसने मनुष्यों को दुःख देने के लिए आख़िर पैदा ही क्यों किया ? 


अब इस सेल्फ़ डिफ़ेन्सिव कॉन्वर्सेशन का साँसों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है ? , इस विचार करेंगे । 

इन सभी डेफेंसिवेनेसस में साँसों के बाहर अधिक निकलने का स्वभाव बन जाता है । यह स्वभाव मस्तिष्क में फेफड़े को पिचकाने का स्वभाव बना देता है । यहाँ तक कि सामान्य अवस्था में भी ऐसे लोग अपने पेट को पिचकाए रहते हैं । अर्थात् साँसों को बाहर टेकने की आदत बढ़ती है और अंदर भरने की आदत कम हो जाती है । 

इस fluctuating ratio से सबसे अधिक सेल्फ़ सैटिस्फ़ैक्शन में कमी आती है । और इसी की यदि कुछ वर्षों तक निरंतर कमी होती गयी तो ऐंज़ाइयटी और डिप्रेशन के रूप में परिणति हो जाती है । 


समाधान- 

1- सर्वप्रथम सेल्फ़ कॉन्वर्सेशन में स्वयं को डिफ़ेन्सिव मोड पर मत रखो । यदि मस्तिष्क का विकास और आत्मसंतुष्टि को बहुत अधिक बढ़ाना चाहते हैं तो स्वयं से ऐसे कॉन्वर्सेशन करो जिसमें ब्रॉडर way हो । 


2- सेल्फ़ कॉन्वर्सेशन के दौरान यदि आँखों में तनाव न आने दिया जाय तो ऐंज़ाइयटी और डिप्रेशन में कोई भी नहीं जा सकता है । और साथ साथ मस्तिष्क नहीं थकेगा । 


3- स्वयं की संतुष्टि के लिए कई रास्ते खोजें, केवल दिमाग़ को चलाना ही काफ़ी नहीं है । ऐसे लोगों को स्वयं से नहीं बल्कि किसी ट्रस्टेड व्यक्ति से हेल्थी कॉन्वर्सेशन करना बहुत अच्छा होता है जिससे मस्तिष्क को खुलापन मिले । वो बंधा बंधा महसूस न करे । 


4- बहुत हाइपर होकर कोई भी शारीरिक अभ्यास न करें , अभ्यास ऐसे हो जिसमें मांसपेशियों का अनुभव बहुत धीरे धीरे हो । ताकि उसका अनुभव long Lasting रहे । 


5- वही प्राणायाम करें जो दाहिने मस्तिष्क के हिस्से को हील करे और साथ साथ आपकी चेतना को बाएँ मस्तिष्क की तरफ़ shift करने में सहायता करे । 

इससे दो लाभ होंगे; पहला दाहिना मस्तिष्क शांत होकर पैरसिम्पथेटिक नर्वस सिस्टम को मज़बूती देगा । और दूसरा बाएँ मस्तिष्क के भाग को ऐक्टिव करके वर्तमान में जीने  के लिए प्रेरित करेगा । 


दो प्राणायाम अवश्य करें 

1- Turtle Breathing 

2-  Chest Expansion Pranayam 


यदि इन दोनों प्राणायाम को 11-11 मिनट सुबह और सोने के पहले कर लिया जाय तो कुछ ही दिनों में आपको लाभ मिल जाएगा । 


भोजन 

इस प्रकार के लोग कार्बोहाइड्रेट बहुत अधिक लेते हैं , इसलिए कि उन्हें instant एनर्जी की ज़रूरत होती है । 

भोजन में इन्हें सबसे अधिक ब्रेन फ़ैट लेना अच्छा होता है , ब्रेन फ़ैट उन लोगों के लिए बहुत अच्छा है जो मस्तिष्क पर आवश्यकता से अधिक विचारों और भावनाओं का बोझ देते हैं । फ़ैट मस्तिष्क को सूक्ष्म कोशिकाओं में अब्ज़ॉर्प्शन की शक्ति देता है , इसी कारण से वो किसी भी झटके को बर्दाश्त कर लेती हैं । 

मस्तिष्क में  सबसे बड़ा झटका भावनाओं के बहाव और अति विचार से होता है इसीलिए  यदि ब्रेन फ़ैट और साथ शाकाहारी प्रोटीन लिया जाय तो बहुत लाभकारी होगा । 



Recent Blog

Copyright - by Yogi Anoop Academy