व्यक्ति के दिनचर्या में में ऐसी बहुत समस्याएँ आती हैं जिनका कोई विशेष कारण नहीं होता है, और न ही उसका कोई समाधान निकलता है , वे थोड़ी देर के लिए आती हैं और थोड़ी ही देर में चली जाती हैं । इन समस्याओं के कारणों को नहीं खोजा जाता है । सामने वाले के व्यवहार में अस्थिरता के कारण ऐसी समस्याएँ आती जाती रहती हैं । इसलिए इन समस्याओं के सामने अपने मन को उस अवस्था से अलग करना सिखाया जाता हैं । समस्याओं के कारण पर न जाकर वहाँ पर साधक को परिस्थितियों से स्वयं के मन को अलग कर लेना होता है । उस विकट परिस्थिति में मन बुद्धि इंद्रिय इत्यादि को शांत करने का यही उपचार है ।
जब परिस्थितियाँ अधिक प्रभावशाली हो जाती हैं तब समस्याओं के कारण पर जाना मूर्खता माना जाता है । यदि उस प्रतिकूल परिस्थिति को छोड़ने के स्थिति में नहीं है तो उसी परिस्थिति में रहकर स्वयं के मन को शून्य कर देना चाहिए, ताकि आपके अंदर प्रतिक्रिया न हो सके अन्यथा उस समय परिस्थितियों को छोड़ कर बाहर निकल जाना चाहिए । यह दोनों उपाय उन्ही समस्याओं के लिए बेहतर मानी जाती हैं जिनका निराकरण कभी सम्भव नहीं है ।
इसे मैं बहुत बड़ी साधना मानता हूँ । क्योंकि समस्त इंद्रियाँ उस समस्या का सामना कर रही होती हैं और आपने अंदर से मन को शून्य अवस्था में डाल दिया , अंदर कोई विचार नहीं चल रहा । यह प्रयोग सभी को अपने जीवन में करना चाहिए । कभी कभी बच्चे अपने माता पिता की डाँट को बस सुनते रहते हैं , किंतु अंदर से अप्रभावित रहते हैं । वे स्वयं को अभ्यस्त कर लेते हैं । इस प्रकार का प्रयोग एक पति अपनी पत्नी के साथ , पत्नी अपने पति के साथ अक्सर करते दिखायी देते हैं किंतु ये प्रयोग व्यक्ति का मन किसी सामान्य व चिर परिचित परिस्थिति में कर पाता है ।
जब व्यक्ति इसका अभ्यास गम्भीर परिस्थितियों का सामना करने में भी प्रयोग करने लगता है तब मस्तिष्क का बहुत तीव्र विकास होना शुरू हो जाता है । अपने ऑफ़िस टाइम में भी इसका प्रयोग करना चाहिए ।
ध्यान दें व्यक्ति के पास मन, शरीर और इंद्रियों के अभ्यास के लिए समय ही समय है , यहाँ तक कि जितनी समस्याएँ है उसी समय वह इसका प्रयोग भी वह कर सकता है ।
मैं इस प्रकार की साधना को सबसे बेहतर मानता हूँ जो समस्याओं में रहते हुए उससे स्वयं को विरक्त कर लेता है । समस्याओं के घट जाने के बाद उसके उपाय का क्या लाभ ! , शरीर मन पर प्रतिक्रिया तो पड़ गयी । इस प्रकार के इलाज को बहुत अच्छा नहीं माना जाता है ।
समस्याओं के सामने क्या क्या कर सकते हैं -
1- प्रतिकूल परिस्थितियों में इंद्रियों को बहुत हिलने ना दें, विशेष करके आँखों में गम्भीरता बनाएँ रखने की अंदर अंदर कोशिश करते रहें ।
और बोलने पर भी नियंत्रण होना आवश्यक है ।आराम आराम से बोलने की कोशिश करें । सामने वाले के हाइपर होने से आप बच जाएँगे ।
2- प्रतिकूल घटना के समय आँखों को वहाँ पर रहने दें किंतु मन को शून्यता की ओर ले जाने की कोशिश करते रहें । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस तकनीक का प्रयोग सभी अपने दैनिक क्रिया में करता है , किंतु यदि इसका अभ्यास ज्ञानात्मक ढंग से किया जाय तो मन शांत होने लगता है ।
3- यदि हृदय की गति बहुत अधिक बढ़े तो स्वाँस प्रास्वाँस को अनुभव करने की कोशिश करें, थोड़ी ही देर में सब सामान्य हो जाएगा । यदि हृदय गति सामान्य नहीं भी होती तो आपके शरीर में कोई बीमारी नहीं आ सकती क्योंकि स्वाँस पर आपका ध्यान था । शरीर और मस्तिष्क में रक्त एर ऑक्सिजन का संचार संतुलित रहेगा ।
4- कोशिश करें कि परिस्थिति का सामना करते रहें , आपकी हृदय गति थोड़ी ही देर में बढ़ने के बाद स्थिर हो जाएगी ।
5- कितनी भी समस्याएँ आए अपने दैनिक कार्य को न छोड़ें । योग प्राणायाम ध्यान इत्यादि नित दिन करते रहने की कोशिश करें , यद्यपि यह मुश्किल अवश्य है किंतु इसका अभ्यास करने के बाद आप वापस रीचार्ज हो जाएँगे । परिवार में स्वयं को सामान्य बनाए रहने की कोशिश करते रहें यद्यपि नहीं होगा, आपके चेहरे और इंद्रियों पर वह परेशानी दिखेगी किंतु मन को कोशिश में निरंतर लगाए रखें । आप अनुभव करेंगे कि आपकी शक्ति बढ़ गयी ।
6 - मन को नियमित दिनचर्या देते रहने से शक्ति की कमी नहीं महसूस होती है परिणामस्वरूप वह पुनः शक्तिशाली हो उठता है ।
7- इसका अभ्यास कभी कभी अनुकूल परिस्थितियों में भी रहते हुए करना चाहिए । ताकि सुख भी मन को बहुत प्रभावित न कर सके ।
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