जीवन में स्वयं की प्रकृति को समझें का प्रयास करें , मैंने बहुताओं में देखा है कि जो लोग स्वयं को बहुत ज्ञानी समझते हैं , अक्सर वही लोग कहीं अधिक रोगी होते हैं ।
अपनी अनावश्यक कल्पनाओं से अपने रोग की डाययग्नोसिस कर बैठते हैं , यही कारण है कि इस प्रकार के लोग स्वयं के रोगों को ठीक नहीं कर सकते हैं ।
जब तक गहराई से स्वयं को जानने की कोशिश नहीं करेंगे तब तक रोगों का समाधान नहीं निकल सकेगा । हमारी समस्या है कि कुछ इधर उधर से या हवा में बहकती हुई information को उठा करके स्वयं को ज्ञानी बना बैठते हैं और कुछ न कुछ विलक्षण बातें करना शुरू कर देते हैं । यही कारण है कि information को ज्ञान समझते हैं । जो समस्या आपकी नासमझी से आयी है उसको information से भला कैसे ठीक कर सकते हो , उसको तो स्वयं के अंदर जा करके स्वयं का अनुभव ही करोगे , अपने ग़लतियों को देखने की कोशिश करते करते समस्या का इलाज हम स्वयं निकाल लेते है ।
और यदि स्वयं को जानने में थोड़ी बहुत कमी दिखती है तब सलाह लें ।
मुझसे मिलने वालों में से बहुत अधिकों में ऐसा देखा जाता है कि वे अपनी डाययग्नोसिस बतलाते हैं कि उनको कौन सी समय है , किस कारण से हुई । मेरा अपना अनुभव कहता है कि जब आप समय के ,उक।कारण की खोज में होते हैं तो साथ साथ आप समाधान भी ढूँढ रहे होते हैं । समय का मूल कारण खोजने का अर्थ ही है कि आप समाधान ढूँढ रहे हैं । जब कारण पता चल जाता है तब आपको अपने आप समाधान मिल जाता है ।
जैसे जब आप इस बात का पता चला लेते हैं कि सांप के अंदर ज़हर होता है , उसके काटने पर लोगों की मृत्यु हो जाती है अथवा होने की प्रबल सम्भावना होती है । तब आपको आपका मस्तिष्क यह भी बता देता है कि उसके पास नहीं जाना ही । उसके पास न जाने के लिए बहुत महंत करने की ज़रूरत तो पड़ती नहीं । या उसके पास न जाने के लिए किसी योग को करने के लिए ज़रूरत तो पड़ेगी नहीं ।
उसी प्रकार प्प्रकृति को जानने पर हमारे अंदर प्रकृति को माँगे करने की कला स्वतः जागृत हो जाती है । आ तो हुआ प्रकृति को समझने और उसके द्वारा दिए गए दोषी से निकलने का ।
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