Loading...
...

प्राणायाम में अत्यधिक बल का दुष्प्रभाव

1 month ago By Yogi Anoop

प्राणायाम में अत्यधिक बल का दुष्प्रभाव (शोध के द्वारा प्राप्त परिणाम)

प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) को सही ढंग से करने पर अनेक लाभ मिलते हैं, किंतु यदि इसे अत्यधिक ज़ोर या गलत तरीके से किया जाए तो इसके हानिकारक प्रभाव देखे जा सकते हैं । योग व चिकित्सा साहित्य में ऐसे कई उदाहरण व अध्ययन मिलते हैं जो बताते हैं कि ज़रूरत से ज्यादा जोर लगाकर प्राणायाम करने से शारीरिक तथा मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है। नीचे वैज्ञानिक शोध, चिकित्सा निष्कर्ष और योग विशेषज्ञों के दृष्टिकोण के आधार पर विभिन्न प्रभावों की चर्चा की गई है:

श्वसन तंत्र पर प्रभाव (नाक, गला, फेफड़े)

प्राणायाम के दौरान जरूरत से ज्यादा जोर लगाने का सीधा प्रभाव हमारे श्वसन मार्ग और उसके अंगों पर पड़ सकता है। फेफड़ों पर दबाव: योग विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि प्राणायाम अभ्यास में कभी भी अत्यधिक जोर अथवा तनाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि फेफड़े नाज़ुक होते हैं और क्षमता से अधिक बलपूर्वक श्वास लेने-छोड़ने पर उन्हें नुकसान पहुंच सकता है । उदाहरणस्वरूप, कपालभाति जैसे तीव्र श्वास-प्रश्वास अभ्यास में शुरु में हल्के बल से ही श्वास छोड़ने की सलाह दी जाती है – शुरुआती चरण में श्वास छोड़ना कोमल होना चाहिए, अत्यधिक बल प्रयोग न करें ।

श्वसन संबंधी तकलीफ़ें: प्राणायाम को बहुत तेजी या ज़ोर से करने पर साँस लेने में कठिनाई, चक्कर आना या उल्टी जैसा महसूस होना जैसी समस्याएँ हो सकती हैं । एक आयुर्वेदिक विशेषज्ञ के अनुसार, बिना मार्गदर्शन के अचानक एक साथ कई तरह के प्राणायाम शुरू कर देने से “चक्कर आना, उल्टी जैसा मन होना, सांस लेने में दिक्कत और भ्रम” जैसी परेशानियाँ होती देखी गई हैं । वस्तुतः यह तेज़ और अनियंत्रित श्वसन के कारण होने वाली हाइपरवेंटिलेशन की अवस्था है, जिसमें शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर असामान्य रूप से गिर जाता है। शोध से पता चला है कि अत्यधिक श्वसन से हृदय गति बढ़ जाती है, और शरीर में शारीरिक-मनौवैज्ञानिक बदलाव होते हैं – जैसे चक्कर, हल्का सिर दर्द, यहां तक कि हाथ-पैर में ऐंठन तक हो सकती है । इसलिए ज़ोर लगाने पर आने वाली सांस फूलने या घबराहट को चेतावनी संकेत माना जाना चाहिए और अभ्यास तुरंत धीमा या रोक देना चाहिए ।

गंभीर मामलों में क्षति: अत्यधिक जोर से प्राणायाम करने के दुर्लभ लेकिन गंभीर दुष्प्रभाव भी दर्ज हुए हैं। एक चिकित्सकीय प्रकरण में, 29 वर्ष की स्वस्थ महिला ने कपालभाति प्राणायाम को बहुत ज़ोर और देर तक किया, जिसके फलस्वरूप उसके फेफड़ों में स्पॉन्टेनियस निमोथोरैक्स (फेफड़ों का आकस्मिक फटना जिससे वायु प्लूरा कैविटी में भर गई) हो गया । यह मामला प्रतिष्ठित जर्नल Chest में प्रकाशित हुआ, जहाँ चिकित्सकों ने चेताया कि योगिक श्वसन अभ्यासों में शरीर को चरम सीमा तक धकेलने पर ऐसी गंभीर प्रतिकूल घटनाएं भी संभव हैं । यद्यपि ये घटनाएँ अत्यंत विरली हैं, किंतु यह उदाहरण बताता है कि ज़रूरत से ज्यादा बलपूर्वक श्वास अभ्यास फेफड़ों को भौतिक क्षति पहुँचा सकता है।

इंद्रियों पर प्रभाव (आँख, कान, त्वचा, जीभ)

प्राणायाम में अत्यधिक बल का असर हमारी इंद्रियों और कुछ स्नायविक संवेदनाओं पर भी पड़ सकता है:

आँखों पर प्रभाव: कुछ योग तकनीकों (विशेषकर बंध अथवा जबरदस्ती साँस रोकने से जुड़े अभ्यास) के दौरान अत्यधिक जोर लगाने से सिर व आँखों पर दबाव बढ़ता है । यद्यपि सामान्य नाड़ी शोधन या नियंत्रित श्वास से आँख के अंदरूनी दबाव (IOP) में कोई हानि नहीं पाई गई , फिर भी मेरी  सलाह है कि प्राणायाम करते समय आँखों पर अनावश्यक जोर न डालें। उदाहरण के लिए, कपालभाती, भस्त्रिका इत्यादि अनेकों प्राणायाम में आंखों पर ही नहीं बल्कि पुर चेहरे और सिर में अत्यधिक दबाव डाल दिया जाता है जो कि नहीं होना चाहिए । प्राणायाम का उद्देश्य सिर्फ सांसों को अनावश्यक हिलाने डुलाने से नहीं बल्कि इंद्रियों को संयमित करें से भी है । इसलिए प्राणायाम के अभ्यास के समय इंद्रियों का उपयोग बहुत उचित और शिथिलता में रहना चाहिए । 

 कानों पर प्रभाव: ज़ोर से श्वास छोड़ते या निकालने के प्रयास (नाक-मुंह बंद करके ज़ोर लगाने) जैसी स्थिति बनाने से कानों पर दबाव आ सकता है। इससे कान बंद होने, सीटी या भनभनाहट (टिनिटस) जैसी शिकायतें हो सकती हैं। प्जोड़ जबरदस्ती से किए गए प्राणायाम में विशेष रूप से सिर में चक्कर आने के खतरे बहुत अधिक बढ़ जाते हैं । यह सत्य है कि अच्छी भावना के साथ अभ्यास किया जाता है किंतु  उसमें जल्दीबाजी और उसके पीछे के सिद्धांत को न साधते हुए अभ्यास वर्जित माना जाना चाहिए  । यदि कोई ज़ोर से सांस छोड़ते समय कान में दर्द या पॉप की आवाज़ महसूस करे तो तुरंत रुककर आराम करना चाहिए। नाक के माध्यम से बहुत तेज़ी से हवा झोंकने (जैसे बलपूर्वक कपालभाति) से कुछ मामलों में नाक और कान को जोड़ने वाली यूस्टेशियन ट्यूब में दबाव पैदा हो सकता है, जिससे कानों में अस्थायी बंदपन या असुविधा महसूस हो सकती है। इसीलिए मैं हमेशा शिष्यों को यही सलाह देता हूँ कि एक अच्छे गुरु के संरक्षण में ही अभ्यास करें । 

त्वचा (स्पर्श) एवं अंग sensación: तीव्र श्वास-प्रश्वास से उत्पन्न हाइपरवेंटिलेशन का प्रभाव शरीर की संवेदनाओं पर पड़ता है। रक्त में CO₂ कम हो जाने से हाथ-पैर या चेहरे पर झुनझुनी, सुन्नपन या सुई चुभने जैसा एहसास हो सकता है । साथ साथ त्वचा में तापमान की वृद्धि अक्सर देखी गई है , अचानक गर्मी का महसूस होना एक सामान्य बात हो जाती है । चिकित्सकीय अध्ययनों में देखा गया है कि तेज़ नियंत्रित सांस का अभ्यास शुरू में प्रशिक्षित न होने पर शरीर में CO₂ संतुलन बिगाड़ देता है, जिससे अंगों में झनझनाहट और हल्के ऐंठन तक महसूस हो सकते हैं । यह शरीर की चेतावनी है कि मस्तिष्क को पर्याप्त CO₂ नहीं मिल पा रही। अतः प्राणायाम करते हुए यदि त्वचा पर सनसनी या अकड़न महसूस हो तो गति कम करें और सामान्य सांस लें। इसके अतिरिक्त, कुछ लोग बहुत जोरदार प्राणायाम से चेहरा लाल होना या त्वचा पर पसीना आना जैसी गर्मी संबंधी प्रतिक्रियाएँ भी महसूस करते हैं, जो आंतरिक ताप बढ़ने का संकेत है।

जीभ/मुख और स्वाद: ज़ोरदार श्वसन अभ्यास मुख एवं स्वादेंद्रिय को भी प्रभावित कर सकता है। तीव्र गति से मुँह बंद करके सांस लेने-छोड़ने पर मुँह व गले में सूखापन हो सकता है। साथ साथ मुंह में हमेशा सूखापन का अनुभव होता रहता है , यहाँ तक कि पानी पीने के बावजूद भी मुँह में सूखेपन का अनुभव होता रहता अहि ।  एक उदाहरण में, नियमित तेज़ कपालभाति और अनुलोम-विलोम के अभ्यास से कुछ साधकों के मुंह में ख़राब स्वाद या बदबू की शिकायत पाई गई । इसका कारण यह था कि , तेज़ श्वास-प्रश्वास के कारण श्वसन मार्ग में तापमान की वृद्धि हो जाती है , सूखापन और  मुंह में बदबू की समस्या देखी जाती है । इसी प्रकार, बहुत जोर से प्राणायाम करने पर गला सुख जाना, आवाज़ भारी होना या जीभ पर खारे/धातुमय स्वाद का आभास भी हो सकता है (हालाँकि ये प्रभाव अस्थायी होते हैं)। कुछ लोगों को अत्यधिक प्राणायाम से मतली (नॉशिया) या उल्टी जैसा स्वाद भी आ सकता है । ये सभी संकेत हैं कि अभ्यास को संयमित करने की आवश्यकता है।

मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

प्राणायाम का मुख्य लक्ष्य मन को प्रशिक्षित करना होता है कि मन श्वास प्रश्वास के साथ कैसा संबंध बनाता है ।कहने का मूल अर्थ है कि मन श्वास प्रश्वास के साथ ऐसे संबंध बनाये जिससे वह स्वयं शांत और स्थिर हो जाये । जब वह स्वयं स्थिर होगा तो उसके बाद ही  मस्तिष्क व देह की तंत्रिका तंत्र स्वतः ही संतुलित अवस्था में आ जाएगी । बिल्कुल वैसे ही जैसे गहन निद्रा में यह देह स्वयं को ही हील कर लेता है । मन को हील करने की आवश्यकता नहीं होती । मन को तो सिर्फ दो कार्य ही करने होते हैं एक इस देह के साथ नम्रता का संबंध , जिससे देह की तंत्रिका तंत्र पर अनावश्यक दबाव न पड़े । और दूसरा कार्य जिसमें एक ऐसी आदत बनाना जिसमें कुछ घंटों के पूर्ण रूप से हस्तक्षेप बंद कर देना । 

किंतु आवश्यकता से अधिक जोर लगाकर अभ्यास करने पर इसका उल्टा असर हो सकता है। चक्कर एवं बेहोशी: बहुत तेज़ या ज़ोरदार श्वास लेने-छोड़ने से रक्त में ऑक्सीजन-कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बिगड़ जाता है, मस्तिष्क को कम रक्त/ऑक्सीजन पहुंचती है, जिससे चक्कर आना, सिर हल्का लगना या आंखों के आगे अंधेरा छाना जैसी स्थिति पैदा हो सकती है । एक चिकित्सक बताते हैं कि कपालभाति जैसे तीव्र प्राणायाम “हाइपरवेंटिलेशन जैसा प्रभाव पैदा कर सकते हैं, जिससे चक्कर, सिरदर्द या हृदय गति बढ़ना” जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं । अत्यधिक हाइपरवेंटिलेशन से कभी-कभी व्यक्ति कुछ क्षण के लिए बेहोश भी हो सकता है, क्योंकि मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त आपूर्ति नहीं हो पाती। इसलिए अगर प्राणायाम करते हुए तेज सिरदर्द या चक्कर महसूस हो, तो यह मानसिक संकेत है कि अभ्यास को तुरंत रोककर सामान्य श्वास लें।

उत्तेजना, घबराहट और चिंता: प्राणायाम को गलत ढंग से करने से तनाव-प्रबंधन का लाभ मिलने की बजाय शरीर का सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (लड़ाई-भागने वाली प्रतिक्रिया) सक्रिय हो सकता है । धीमी, नियंत्रित श्वास जहाँ शरीर को शांति देती है, वहीं तेज़ श्वसन तकनीकें सिम्पेथेटिक प्रणाली की गतिविधि बढ़ा सकती हैं, जिसका अर्थ है कि अधिक जोर से सांस लेने पर उलटे उत्तेजना और तनाव बढ़ सकता है। आयुर्वेदिक एवं योग विशेषज्ञों ने देखा है कि ज़ोरदार प्राणायाम (जैसे कपलभाति को बहुत तीव्र गति से करना) कुछ लोगों में बेचैनी, घबराहट, चिड़चिड़ापन यहां तक कि हल्के फोबिया या घबराहट के दौरे पैदा कर सकता है । एक स्रोत के अनुसार, अत्यधिक जोर से श्वसन अभ्यास करने पर “व्यग्रता, ध्यान की कमी, भय, बेचैनी, चिंता, घबराहट” जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं । यदि प्राणायाम के दौरान या बाद में मन अत्यधिक अशांत या भयभीत महसूस करे, तो यह संकेत है कि अभ्यास की तीव्रता कम की जाए या कुछ समय के लिए रोका जाए। सही विधि से किया गया प्राणायाम जहाँ तनाव कम करता है, वहीं गलत तरीके से किया गया अत्यधिक प्राणायाम तनाव एवं चिंता को बढ़ा सकता है ।

मैंने स्वयं अपने शोध के दौरान एक अधेड़ उम्र की महिला को तेज़ रोते हुए साँस लेते-छोड़ते देखा, जहाँ ज्यादा देर गहरी सिसकियाँ लेने से उसके हाथों में ऐंठन और उँगलियों में झनझनाहट शुरू हो रही थी । ऐसी अनेक घटनाएँ  दर्शाती है कि गलत दिशा में किए गए प्राणायाम का अभ्यास उलझन, भ्रम या डर पैदा कर सकता है, और कुछ लोग इसे कुण्डलिनी उर्जा के असमय जागरण जैसा मानते हैं । किंतु ध्यान दें यह सब प्घेतनाएँ जो भी घटित हो रही होती है उसके पीछे का मूल कारण प्राणायाम में अनावश्यक तेजी ही है । 

आंतरिक गर्मी एवं शारीरिक असंतुलन

मेरे अनुभव और ध्यानाभ्यास के अनुसार प्राणायाम के मुख्य उद्देश्यों में से एक सबसे प्रमुख उद्देश्य मन को संतुलन का प्रशिक्षण देना ही है । यदि मन अपनी इंद्रियों के माध्यम से संतुलन का कार्य करवाने में समर्थ हो जाता है तब सुषुम्ना नाड़ी का सक्रिय होना स्वतः ही हो जाता है । सुषुम्ना नाड़ी की सक्रियता में स्थायित्व रहता है । किंतु अत्यधिक बल के साथ या आवश्यकता से अधिक देर तक कुछ प्राणायाम करने से शरीर की आंतरिक गर्मी (heat) और वात-पित्त काफ़ी बढ़ सकती है, जिससे देह में तापमान की वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है । अंततः पिंगला नाड़ी अति सक्रिय हो जाती है । जिसके परिणाम बहुत ही अच्छे नहीं माने जाते हैं । 

शारीरिक ऊष्मा (Heat) बढ़ना: विशेषकर भस्त्रिका और कपालभाति जैसे प्राणायाम उष्ण प्रकृति के माने जाते हैं, किंतु साथ साथ किसी भी प्राणायाम के अभ्यास में यदि बहुत तीव्रता अधिक होती है तब ऊष्मा के बढ़ने की संभव हो जाती है । यहाँ तक कि शीतला प्राणायाम को बहुत तीव्रता के साथ किया जाये तो तापमान घटने के बजाय वृद्धि हो जाती है । 

यानी किसी भी प्राणायाम के अभ्यास में तेज़ी करने पर शरीर में गर्मी बढ़ती है । योग एवं आयुर्वेद विशेषज्ञों का मत है कि अगर किसी व्यक्ति में पित्त (गर्मी) पहले से अधिक हो, तो उसे ऐसे उष्ण प्राणायाम धीरे-धीरे व सीमित मात्रा में करने चाहिए । अत्यधिक गर्मी बढ़ने के संकेतों में नाक से ख़ून आना, आँखों में जलन, अत्यधिक पसीना, शरीर में जलन या अम्लता (एसिडिटी) की शिकायत शामिल हो सकती हैं। कुछ मामलों में देखा गया है कि सुबह के समय भस्त्रिका प्राणायाम ज़ोर से करने पर नाक से कुछ बूंद ताज़ा खून आ गया – यह इस बात का संकेत था कि अत्यधिक जोर से श्वसन के कारण नासिका श्लेष्मा झिल्ली की सूक्ष्म रक्तवाहिनियाँ फट गईं थीं (नकसीर)।

वात-पित्त का असंतुलन: आयुर्वेद के अनुसार बहुत ज़ोर या जल्दबाज़ी में किया गया प्राणायाम शरीर के वात एवं पित्त दोषों को बढ़ा सकता है । एक विशेषज्ञ लिखते हैं कि जल्दबाज़ी में ज़्यादा प्राणायाम करने से “उदान वायु, प्राण वायु , अपान वायु , और समान वायु तथा साधक पित्त” का संतुलन बिगड़ जाता है । इसका असर पाचन, तंत्रिका तंत्र और मन पर पड़ता है – जैसे अतिसंवेदनशीलता, चिड़चिड़ापन, नींद न आना या पाचन संबंधी गड़बड़ी। यदि प्राणायाम करते हुए शरीर के अंदर अत्यधिक गर्मी महसूस हो, या फिर अभ्यास के बाद अत्यधिक थकान, अनिद्रा या चित्त अशांत हो जाए, तो संभव है कि पित्त-वात असंतुलित हो रहे हैं। ऐसे में शीतली या शीतकारी जैसे शांतिदायक शीतल प्रकृति के प्राणायाम करना लाभदायक होता है, बजाय और जोर लगाने के।

उच्च रक्तचाप व हृदय पर प्रभाव: प्राणायाम के दौरान जोर लगाने से शरीर में रक्तचाप भी प्रभावित होता है। सामान्यतः धीमी गहरी साँस से रक्तचाप घटता है, परंतु जोरदार kapalbhati जैसे अभ्यास यदि लंबे समय तक करें तो रक्तचाप बढ़ सकता है । अध्ययनों में पाया गया है कि उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) वाले लोगों को जोरदार प्राणायाम (खासकर तेज़ गति वाले) नहीं करने चाहिए क्योंकि “कपालभाति करने से रक्तचाप और चिंता दोनों बढ़ सकते हैं” । इसी तरह हृदय रोग या हर्निया से पीड़ित लोगों के लिए भी ज़ोर से पेट को अंदर-बाहर करने वाले श्वसन निषिद्ध माने गए हैं , क्योंकि इससे पेट एवं छाती पर दबाव बढ़ता है जो हृदय/अन्तःस्रावी अंगों के लिए हानिकारक हो सकता है। कुल मिलाकर, शारीरिक दृष्टि से यदि पहले से कोई असंतुलन (जैसे उच्च पित्त, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग) है तो प्राणायाम को बहुत संतुलित ढंग से और हल्के बल के साथ करना चाहिए।

Recent Blog

Copyright - by Yogi Anoop Academy