वह जिसको स्वयं का भान नहीं, पागल कहलाता है । यद्यपि इसकी व्याख्या करना आसान नहीं है पर चिकित्सीय दृष्टि से देखा जाय तो पागल का अर्थ लगभग सभी जानते हैं । कोशिश मेरी यहाँ ये होगी कि आध्यात्मिक दृष्टि से पागलपन किसे कहते हैं, उस पर गहनता से व्याख्या किया जाय ।
चिकित्सीय दृष्टि से पागल उसे ही कहते हैं जिसको स्वयं का आभास नहीं होता है । और मेरी आध्यात्मिक दृष्टि में भी पागलपन उसे ही कहते हैं जिसको स्वयं का आभास न हो । एक में तो मस्तिष्क अर्थात् कम्प्यूटर के hardware के अंदर कोई दोष होने पर न तो स्वयं का ज्ञान रहता है और न ही वाह्य जगत का ज्ञान रहता है ।
और दूसरे अर्थात् आध्यात्मिक पागलपन में मन और इंद्रियों में अर्थात् कम्प्यूटर के software में दोष आने पर व्यक्ति वाह्य संसार में इतना व्यस्त हो जाता है कि उसको स्वयं का अनुभव नहीं हो पाता है । मन , मस्तिष्क और शरीर के अंदर बैठने को राज़ी ही नहीं होता है , या मन को पता ही नहीं कि मस्तिष्क और शरीर में बैठने से स्थिरता और शांति मिलती है । शायद इसीलिए वह शांति और स्थिरता प्राप्त करने के लिए मस्तिष्क से बाहर भागने के लिए बेचैन रहता है ।
मैं बहुतों से ये कहते हुए सुनता हूँ कि जब मैं अकेले बैठता हूँ तो बेचैनी और डिप्रेशन होता है ।
ध्यान दें शांति और स्थिरता को प्राप्त करने के लिए उसके मन और इंद्रियों के भागने की गति इतनी तेज हो जाती है , कि वह किसी एक मार्ग को नहीं चुनता , वह कुत्तों की तरह धैर्यरहित हो कर मार्ग को बदलत रहता है । इसलिए कि जल्द से जल्द , जैसे तैसे लक्ष्य की प्राप्ति हो जाय । इसे पागलपन नहीं कहेंगे तो भला क्या कहेंगे । ऐसे पागलपन की दौड़ इसके मन शरीर को ये समझाया जाता है कि लक्ष्य को प्राप्त करने पर ही तुम्हें पूर्ण शांति मिलेगी । किंतु ये कोई गारंटी नहीं है कि काल्पनिक लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद पूर्ण संतुष्टि मिल ही जाय ।
ये तो कुछ ऐसा ही है मुर्गी के अंडे से संतुष्ट होने के बजाय मुर्गी के गले को काटने से पूर्ण संतुष्टि मिल जाएगी ।
लक्ष्य के प्रति पागल मन के भागम-भाग की इस प्रक्रिया में इंद्रिय और शरीर में होने वाले गहरे थकान की recovery सामान्य तरीक़े (सामान्य तरीक़ा का अर्थ है गहरी निद्रा , ध्यान इत्यादि ।) से सम्भव नहीं हो पाती है । तो इसीलिए स्वयं की recovery के लिए ऐसे ऐसे अनैतिक (सेक्स, ड्रग alcohol) इत्यादि साधनों का इस्तेमाल करना पड़ता है जिससे त्वरित परिणाम (शांति) निकल आए । ध्यान दें इन सभी अनैतिक साधनों से व्यक्ति स्वयं को और भुलाता है ।
बजाय कि गहरी नींद में जाकर स्वयं को भुलाये , वो alcohol और ड्रग लेकर स्वयं को भुलाता है ।
बजाय कि रात में मन और इंद्रियों को शांत करके नींद में ले जाय , वह मन और इंद्रियों को TV व स्क्रीन में घुसा कर नींद लेने के साधन को चुनता है । ये पागलपन नहीं तो भला क्या है ।
और तब मुझे उन लोगों पर तरस आता है जब ये कहते हैं सफलता को प्राप्त करने के लिए पागलपन की हद तक चले जाओ । इस तरह से पागलपन की हरकत करने वाले चाहे जो भी लोग हों या धार्मिक व्यक्ति ही क्यों न हो उसे मैं मानसिक रोग से पीड़ित मानता हूँ । इस तरह के व्यक्ति का फ़ोकस उद्देश्य पर ही होता है , यात्रा व साधन पर नहीं । जिस भी व्यक्ति का साध्य और साधन अलग अलग हैं वो आध्यात्मिकता को समझ नहीं सकता है , उसमें ही पागलपन सवार होता है । क्योंकि इस प्रकार के यात्री अपनी यात्रा को enjoy नहीं कर पाता है , उसका उसके मन और इंद्रियों का पूरा फ़ोकस केवल और केवल मनो कल्पित साध्य को प्राप्त करना ही होता है । प्राप्त करने की गति इतनी तीव्र होती है कि प्राप्त करने के साधनों (मन शरीर ) को भुला देता है और परिणाम यह होता है कि कुछ वर्षों के बाद मन शरीर और इंद्रियाँ जवाब दे देती हैं ।
और जब आप दौड़ने के बजाय चलकर लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करते है तो आप के पास स्वयं को अनुभव करने का समय मिलता है । मन के पास इंद्रिय और शरीर को समझने का मौक़ा होता है और यह समय उसका “मेंटल रेस्टिंग पिरीयड” होता है ।
इसी रेस्टिंग पिरीयड में उसका मन मस्तिष्क इंद्रियाँ और शरीर सभी हील होते है , और परिणाम ये होता है कि आप गहन शांति में होते हैं । और आप पागलपन की दौड़ से बाहर हो जाते हैं ।
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