यह एक ऐसा प्राणायाम है जिसमें ध्वनि जो मुँह के द्वारा निकाली जाती, वह प्रभावशाली होती है, अर्थात् ध्वनि की प्राथमिकता मस्तिष्क में प्रमुखता से दी जाती है और उसको स्वाँस के साथ जोड़ दिया जाता है ।
सामान्यतया बोलचाल में गला -जिह्वा -दाँत तथा होंठों की सहायता ली जाती है किंतु इस प्राणायाम में गले और दोनों दांतों के और होंठों का उपयोग किया जाता है । इसी के सहायता से ध्वनि को मस्तिष्क में डाला जाता है जिससे मस्तिष्क की कई नसें और नाड़ियाँ प्रभावित होती हैं ।
जहां तक मेरा अनुभव है कोई भी प्राणायाम जिसमें साँसों का ही प्रयोग होता है उससे कहीं अधिक ओम् प्राणायाम तीव्र गति वाला, सूक्ष्म तथा प्रभावकारी होता है । उसका प्रमुख कारण है कि गैसीय द्रव्य से अधिक सूक्ष्म ध्वनि है और साथ साथ उसकी चलायमान गति बहुत तेज है ।
इसीलिए मस्तिष्क में जब ध्वनि को भेजने का प्रयास किया जाय है तब उसका प्रभाव सामान्य प्राणायाम से कई गुना तेज होता है ।
इन ध्वनि तरंगों का मन मस्तिष्क पर इसलिए भी तेही से प्रभाव पड़ता क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार की सत्य असत्य भावनात्मकता नहीं जुड़ी होती है । इसमें केवल तटस्थ ध्वनि होती जो मस्तिष्क जाती । यही कारण है कि इसके माध्यम से मनुष्य बहुत जल्दी शांत हो जाता है ।
यह मैं स्वयं के अनुभव से यह कह सकता हूँ कि ओम प्राणायाम ध्वनि तरंगों के माध्यम से मस्तिष्क का इलाज करता है । नसों मे होने वाली एैठन को यह समाप्त करता है तथा गले में स्थित ग्रंथियाँ , पिटयूटरी तथा एडिृनल ग्लैन्ड को भी सामान्य करने का प्रयास करती है है ।
सामान्यतः मेडिकल साइंस मे ऐसा मान्य है कि गले में स्थित ग्रंथियाँ (थाइरॉड) तथा पिटूयटेरी ग्लैन्डस के असमान्य हो जाने से पाचन और निष्काशन शक्ति कमजोर तथा असामान्य हो जाती है । साथ साथ उसका दुष्प्रभाव हृदय, लिवर तथा अन्य महत्वपूर्ण हिस्सों पर पड़ने लगता है ।
जिसके कारण ब्लड प्रेसर होर्मोनल अनियमितता , ब्लड शुगर में अनियमितता इत्यादि देखने को मिलने के साथ साथ अनेकों बीमारियां सामने आने लगती हैं । पिटयूटरी ग्लैन्ड के असामान्य होने पर स्मृति दोष जैसी परेशानियां भी देखने को मिलती है।
इस ओम प्रणायाम से इस एडिृनल ग्लैन्डस को सामान्य कर दिया जाता है । ब्लड प्रेसर तथा माइग्रेन के मरीजों को तो इससे बहुत अधिक लाभ मिलतें मैने देखा है ।
करने की विधि
सुबह मे खाली पेट किसी शुद्ध हवादार और शांत जगह पर सीधा बैठकर तथा आखों को बन्द करके इस ओम प्रणायाम को करना चाहिये ।ताकि इस प्रणायाम से पूरा का पूरा लाभ लिया जा सके । सबसे गहरी स्वाँस को अंदर भरें उसके बाद ‘ओ’ की आवाज धीरे धीरे निकलें फिर उसके बाद ‘म’ की आवाज निकालनी चाहिये । ‘ओ’ की आवाज मुह से निकालें तथा ‘म’ की आवाज मुंह को बन्द करके नाक से निकालें । अर्थात ‘ओ’ से आवाज शुरू करके ‘म’ तक लें जांय । इसी को ओम प्राणायाम कहतें हैं ।
‘ओ’ की आवाज से गले की नसो मे तथा ग्लैन्डस मे प्रभाव पड़ता है तथा ‘म’ की आवाज से सिर के अन्दर प्रभाव पड़ता है । अर्थात गले और सिर से सम्बधित रोगों के लिये यह प्राणायाम बहुत लाभकारी होता है । यहां तक कि बढी हुई कफ की प्रवृत्ति को भी यह नियन्त्रित कर लेता है ।
कितना करें:
कम से कम 11 बार ओम से इसकी शुरूवात करनी चाहिये । फिर धीरे धीरे बढ़ाना चाहिये । 15 दिनों के बाद 2 मिनट तथा एक महीने के बाद इसको 11 से 21 मिनट तक ले ज़ाया जा सकता है ।
यदि एक ओम प्राणयाम करने मे कम से कम 20 सेकेन्ड समय लग रहा है तब यह अच्छा माना जाता है । इसका अर्थ है कि अभ्यासी प्रगति बहुत अच्छी हो रही है । जब फेफडे की शक्ति अधिक मजबूत हो जायेगी तो धीरे धीरे 30 सेकेन्ड 45 सेकेन्ड तथा 1 मिनट तक भी पहुंचने लगेगा । लेकिन यहां पर ध्यान रखने की बात है कि प्राणायाम को करते समय किसी भी प्रकार की जल्दबाजी न करें यदि कोई काम करने को बचा हो तब उसको पूर करके तब शुद्ध मन से प्राणायाम करने बैठें अन्यथा मन के एकाग्र न होने पर प्रणायाम का लाभ अच्छा नही हो सकता है । शुद्ध मन से करें ।
प्राणायाम के करने के बाद कम से कम 5 मिनट के लिये आंखें ढीली बन्द करके विचार शून्यता का अनुभव अवश्य करना चाहिए इसी के साथ योग निद्रा मे अवश्य ही लेट जाना चाहिये । श्वाश को ढीला छोड दें । अन्दर आने पर ठंडी श्वाश तथा बाहर जाने पर थोडी गर्म श्वाश की शांत एवं स्वाभाविक अनुभूति करें ।
ध्यान दें इस ओम् प्राणायाम के अभ्यासी को 3 महीने के बाद अपनी जांच अवश्य करवानी चाहिये जिससे उसे इसके परिणाम की जानकारी मिल सके ।
लाभ
ओम प्राणायाम के नियमित अभ्यास से अनेकों रोंगों से बचा जा सकता है ।
• स्मृति दोष को समाप्त करता है।
• थाइरॉड ,पिनियल तथा पिटीटयुरी ग्लैन्ड का स्राव नियमित करता है ।
• माइग्रेन नसों एवं नाडियों मे जो ऐठन होती है उसको समाप्त किया जा सकता है।
• हाई ब्लड प्रेसर को आसानी से कम किया जा सकता है ।
• तनाव दूर करने में बहुत ही सहायक है ।
• नाडी दोष को 6 महीने में समाप्त कर देता है ।
• एडिृनल ग्रन्थि का असन्तुलन समाप्त करता है ।
• सिर दर्द की शिकायत को दूर करता है ।
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