यदि इसके विज्ञान को समझना है तो हमें अपने जीवन को दो भागों में विभाजित करना पड़ेगा
पहला दिन दूसरा रात ।
पहला प्रकाश दूसरा अंधकार ।
यदि अपने मस्तिष्क में देखो तो एक Day Brain (Left Brain) है और दूसरा Night Brain (Right Brain) है ।
एक Action Brain है तो Resting Brain है ।
यदि आप विचारों के स्तर पर जायँ तो एक वैचारिक क्रिया है तो दूसरा विचारहीनता की है।
एक में हमें स्वयं के ज्ञान के साथ संसार (शरीर) का ज्ञान रहता है दूसरे में न तो स्वयं का ज्ञान रहता है और न ही इस संसार (देह) का अनुभव रहता है,
यह दूसरी अवस्था ही निद्रा है , जो जीवों की एक स्वाभाविक परम अवस्था है । इसी उत्तम अवस्था में ये जीव प्रकृति से पृथक होते हैं ।
तथाकथित लोग ये कहते हुए पाए जाते हैं कि गहन निद्रा में आत्मा और प्रकृति मिल जाते है किंतु ये आनुभविक सत्य नहीं है ।
आनुभविक सत्य तो ये है कि आत्मा (चेतना) और शरीर (प्रकृति) ये दोनों एक दूसरे से अल्प काल के लिए अलग होना चाहते हैं । आत्मा भी शरीर से जुड़े जुड़े दुखी अनुभव करने लगती है और शरीर भी दुःख झेलते झेलते परेशान होने लगती है , इसीलिए थोड़ी देर के लिए ये एक दूसरे से एक सीमा तक पृथक हो करके, स्वयं को संतुष्ट करने के लिए अपने मूल स्वभाव में स्थित होने का प्रयास करते हैं । ध्यान दें प्रकृति (शरीर+मस्तिष्क) का अपने में स्वभाव में आते हीलिंग शुरू हो जाती है , उसे किसी अन्य के द्वारा हीलिंग की आवश्यकता नहीं होती है ।
और इधर चेतना अर्थात् आत्मा भी स्वयं को शरीर से पृथक करके शांत और स्थिर हो जाती है । इसे भागने की झंझट से मुक्ति मिल जाती है ।
जब ये दोनों एक दूसरे से कुछ घंटों के लिए स्वयं को अलग करते हैं और अपने आप में स्थित हो जाते हैं तो उसी की गहन निद्रा कहते हैं । इसीलिए हर जीव के अंतरात्मा इस गहन अवस्था में जाने के लिए अत्यंत आतुर रहती है ।
ध्यान दें कि जब ये स्वभाव वश कुछ घंटों अलगाव के बाद संतुष्ट हो जाते हैं तब स्वतः ही आपस में जुड़ कर निद्रा से जग जाते हैं । एक बात और गहराई से बताना उपयुक्त होगा कि चेतना और शरीर में अलगाव पूर्ण से नहीं होता , पृथकता इतनी होती है जिसमें वापस आपने की सम्भावना रहती है । ये एक दूसरे से पृथक इसलिए होते हैं कि रेस्ट ले लें । अर्थात् आराम करने के लिए पृथक होते हैं । जब ये स्वयं को हील कर लेते हैं तब वापस आ जाते हैं ।
इसीलिए प्रातः काल उठने पर वह स्वयं को रात भर पृथक करके बहुत आनंदित अनुभव करता है । यहाँ तक कि गहरी निद्रा लेने वाला व्यक्ति पूरे दिन भर आनंदित अनुभव करता है ।
कुछ लोगों के मन में ये प्रश्न उठ सकता है आख़िर चेतना और प्रकृति के इस क्षणिक अलगाव में आनंद क्यों होता है ?
वो इसलिए कि इस देह में सबसे बड़ी इंद्रिय जिसे त्वचा या स्पर्श कहते हैं, उसे हीलिंग का टाइम मिल जाता है । चूँकि दिन भर में हम दृश्य, श्रवण, स्वाद इत्यादि इंद्रियों से जो भी तनाव अंदर भरते हैं, और उस तनाव को जो केवल और केवल एक ही इंद्रिय सबसे अधिक झेलती है वो है स्पर्श अर्थात् त्वचा या शरीर ।
एक उदाहरण से इसे अधिक समझा जा सकता है । जैसे अति भोजन करने के बाद
पेट में वायु के दबाव से पेट में दर्द होना शुरू होता है यही दर्द का अनुभव जो भी है उसे ही सूक्ष्म रूप से स्पर्श कहते हैं । देह के अंदर तक के हिस्सों को भी अनुभव करना स्पर्श इंद्रिय का ही हिस्सा है ।
गहरी नींद में चेतना अर्थात् आत्मा अपने स्पर्श इंद्रिय को लगभग बंद कर देती है, और वह शरीर को स्वयं से अल्प काल के लिए पृथक कर देती है , परिणामस्वरूप शरीर की प्रकृति जब स्वयं को आत्मा से अलग करने के बाद हीलिंग करना शुरू करना प्रारम्भ करना शुरू कर देती है ।
सत्य ये है प्रकृति चाहती ही है उसे कोई छेड़े नहीं , यदि कोई इसे छेड़ेगा नहीं तो ये स्वयं को स्वयं से ही चार्ज कर लेती है । मैं तो कभी कभी ये भी अनुभव करता हूँ कि ये प्रकृति चाहती है कि मुझसे (आत्मा) थोड़ी देर के लिए अलग हो जाय जिससे उसे पूर्ण शांति मिल जाय ।
पुरुष (आत्मा) और प्रकृति (शरीर) कुछ घंटी के लिए आराम करके पुनः एक नई सुबह के लिए उठते हैं , ऐसे मानो कि फिर से नया जन्म लिए हों
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