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नेचुरल डीटॉक्सिफ़िकेशन

1 year ago By Yogi Anoop

मस्तिष्क जितना शांत होता जाता है उतना ही तेज़ी से डीटॉक्सिफ़िकेशन करता है । 

यह सत्य है कि अंगों के माध्यम से ही मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है, यदि पाचन और निस्काशन करने वाले समस्त अंग मज़बूत हैं तो वे मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करते हैं ।  मस्तिष्क एक ऐसा यंत्र है जो शरीर के समस्त अंगों को उत्तेजित और शांत करता है । 

ये मेरा अपना स्वयं का अनुभव है कि मन और मस्तिष्क जितना शांत होता जाता है उतना ही तीव्रता से पूरे देह की डीटॉक्सिफ़िकेशन करता है । 

गहरी नींद अर्थात् बिना स्वप्न वाली नींद से उठते ही आपका मस्तिष्क अंतंडियों को, ब्लैडर को , लंग्स को अपने अपने टॉक्सिंज़ निकालने की इजाज़त दे देता है । क्योंकि मस्तिष्क अपने टॉक्सिंज़ मस्तिष्क से तो निकलता नहीं वो अपने टॉक्सिंज़ को कर्मेंद्रियों के माध्यम से निकालता है अर्थात् मल और पेशाब के माध्यम से निकाल देते हैं । यहाँ तक कि गहरी नींद से उठने के बाद आपकी आँखों से भी कीचड़ और नाकों से भी गंदगी निकलने लगती है । 

किंतु समस्या हमारी ये है कि जीवनचर्या इतनी दयनीय होती है कि मन मस्तिष्क और शरीर में अंतरंग सम्बंध नहीं बन पता , यही कारण है कि हम forcefull डीटॉक्सिफ़िकेशन पर बहुत विश्वास  करने लगते हैं । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मल त्याग व किसी भी प्रकार के त्याग में अनावश्यक तनाव देने लगते  हैं ।  

इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपने शरीर के स्वाभाविक स्वरूप पर से विश्वास उठने लगता है 

और प्रत्येक स्थान पर अपनी ईर्षा शक्ति को थोपना प्रारम्भ कर देता है । और समस्या का जन्म यहीं से शुरू होने लगती है । कुछ आयुर्वेदिक ऋषियों  ने यहाँ तक कहा कि मल व पेशाब त्याग में किसी भी प्रकार का दबाव रक्त के दबाव को बहुत घटा बढ़ा देता है । 

इसीलिए शरीर मन मस्तिष्क के स्वाभाविक स्वरूप से छेड़खानी कदापि नहीं करनी चाहिए ।                                    

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