योगी अनूप के अनुसार नाभि: ऊर्जा संतुलन, शरीर विज्ञान और ध्यान का केंद्र
क्या आपने कभी सोचा है कि नाभि केवल एक जैविक संरचना ही नहीं, बल्कि शरीर और मन की स्थिरता का केंद्र भी हो सकती है? योग, आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के संदर्भ में नाभि का विशेष महत्त्व है। योग और प्राचीन चिकित्सा शास्त्रों में इसे ऊर्जा संतुलन का आधार माना जाता है, जबकि विज्ञान इसे पाचन और तंत्रिका तंत्र के प्रमुख केंद्रों में से एक मानता है।
दिल्ली स्थित योग विशेषज्ञ योगी अनूप से जब इस विषय पर बातचीत हुई, तो उन्होंने बताया कि नाभि केवल एक शारीरिक अंग नहीं है, बल्कि यह शरीर की जैविक क्रियाओं के साथ-साथ मानसिक और ऊर्जात्मक संतुलन को भी नियंत्रित करती है। उनका कहना है कि यदि नाभि का संतुलन बिगड़ जाए, तो न केवल पाचन विकार होते हैं, बल्कि मानसिक तनाव, थकान और ऊर्जात्मक असंतुलन भी महसूस किया जा सकता है।
योग विज्ञान में नाभि को “मणिपूर चक्र” कहा जाता है, जो शरीर में ऊर्जा (प्राण शक्ति) का प्रमुख भंडार है। जब यह संतुलित होता है, तो व्यक्ति ऊर्जावान, आत्मविश्वासी और मानसिक रूप से स्थिर रहता है। आधुनिक चिकित्सा भी इस बात की पुष्टि करती है कि नाभि क्षेत्र में स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomic Nervous System) की जटिल संरचना होती है, जो पाचन, रक्त संचार और आंतरिक अंगों के कार्यों को नियंत्रित करता है। हालाँकि, आधुनिक विज्ञान इसे विशुद्ध रूप से एक जैविक प्रक्रिया के रूप में देखता है, जबकि योग और आयुर्वेद इसे ऊर्जा और मनोवैज्ञानिक संतुलन से भी जोड़ते हैं।
नाभि विस्थापन (Navel Displacement) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें नाभि अपने प्राकृतिक स्थान से थोड़ा हट जाती है। योगी अनूप बताते हैं कि यह समस्या आमतौर पर तब उत्पन्न होती है जब पेट की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं या आंतरिक अंगों पर असंतुलित दबाव पड़ता है। इस स्थिति के कारण शरीर में असंतुलन उत्पन्न होने लगता है और व्यक्ति विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का अनुभव करने लगता है। योग और आयुर्वेद के अनुसार, नाभि विस्थापन के कुछ प्रमुख लक्षण होते हैं – पेट में भारीपन, ब्लोटिंग, अत्यधिक डकारें आना, कब्ज, अपच और शरीर में ऊर्जा की कमी।
आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से, यह समस्या पाचन तंत्र और नाड़ी तंत्र की अस्थिरता के कारण उत्पन्न होती है। जब पेट में अत्यधिक वायु जमा हो जाती है, तो यह वेजस नर्व (Vagus Nerve) पर प्रभाव डालती है, जिससे पाचन और आंतरिक संतुलन प्रभावित होता है।
योग और ध्यान के गहरे अभ्यास से जुड़ी इस जिज्ञासा का उत्तर देते हुए योगी अनूप स्पष्ट करते हैं कि ध्यान शरीर के प्राकृतिक संतुलन को पुनः स्थापित करने में सहायता कर सकता है। ध्यान करने से स्व-चिकित्सा प्रणाली (Self-Healing System) सक्रिय होती है, जिससे आंतरिक अंगों की स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो सकती है।
लेकिन क्या केवल ध्यान से नाभि विस्थापन ठीक हो सकता है? इस प्रश्न के उत्तर में योगी अनूप बताते हैं कि यदि नाभि विस्थापन हल्का हो, तो ध्यान और प्राणायाम से इसे संतुलित किया जा सकता है। लेकिन यदि यह समस्या अधिक गंभीर हो, तो केवल ध्यान से इसे ठीक करना संभव नहीं होगा। क्योंकि जब पेट की मांसपेशियाँ बहुत अधिक तनाव में होती हैं, तो व्यक्ति ध्यान में सहजता से बैठ ही नहीं सकता।
वे इस स्थिति की तुलना एक अत्यधिक हवा से भरी हुई फुटबॉल से करते हैं – यदि उसमें अधिक हवा भर दी जाए, तो वह ज़रा सा धक्का लगते ही असंतुलित हो जाएगी। ठीक उसी प्रकार, जब पेट में अत्यधिक वायु और तनाव होता है, तो शरीर स्थिर नहीं रह पाता, जिससे ध्यान करना भी कठिन हो जाता है। इसलिए यदि नाभि विस्थापन अत्यधिक हो, तो पहले उसे योग और प्राणायाम से संतुलित करना आवश्यक है, तभी ध्यान का संपूर्ण लाभ मिल सकता है।
योगी अनूप का यह भी कहना है कि नाभि केवल पाचन से जुड़ी नहीं होती, बल्कि यह मानसिक अवस्था से भी गहरा संबंध रखती है। जब व्यक्ति अत्यधिक तनाव में होता है, तो उसकी सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (Sympathetic Nervous System) सक्रिय हो जाती है, जिससे शरीर में ‘फाइट-ऑर-फ्लाइट’ प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। इस स्थिति में पेट की मांसपेशियाँ तनावग्रस्त हो जाती हैं और नाभि असंतुलित हो सकती है।
उन्होंने यह भी बताया कि जो लोग बहुत अधिक बोलते हैं, उनके पेट पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ता है। ऐसे लोगों का पेट अक्सर संकुचित रहता है, जिससे नाभि और पाचन तंत्र पर प्रभाव पड़ सकता है। ध्यान इस वृत्ति को समाप्त कर सकता है, लेकिन ध्यान तभी प्रभावी होगा जब पहले शरीर और पेट की स्थिति को संतुलित किया जाए।
ध्यान से पहले हठ योग और प्राणायाम का अभ्यास क्यों आवश्यक है? इस पर योगी अनूप बताते हैं कि योग के आठ अंगों में ध्यान (ध्यान, धारणा, समाधि) से पहले यम, नियम, आसन और प्राणायाम आते हैं। यदि शरीर असंतुलित हो, तो ध्यान में बैठने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। वे कहते हैं कि ध्यान तभी प्रभावी होगा जब शरीर में स्थिरता होगी। यदि शरीर तनावग्रस्त है, पेट में गैस, ब्लोटिंग या नाभि असंतुलन की समस्या है, तो व्यक्ति ध्यान में टिक ही नहीं सकता। इसीलिए पहले प्राणायाम और हठ योग से शरीर को स्थिर करना आवश्यक है।
योगी अनूप समाधान बताते हुए कहते हैं कि सबसे पहले प्राणायाम और योगिक क्रियाएँ अपनाई जानी चाहिए। नाड़ी शोधन प्राणायाम मानसिक और शारीरिक संतुलन को बनाए रखता है, जबकि कपालभाति और अग्निसार क्रिया नाभि क्षेत्र को मज़बूत करती हैं। नाभि केंद्रित आसन जैसे नौकासन, पश्चिमोत्तानासन और पवनमुक्तासन नाभि को संतुलित करने में सहायक होते हैं।
योगी अनूप का मानना है कि जब तक पेट में अत्यधिक वायु और असंतुलन हो, तब तक ध्यान नहीं करना चाहिए। पहले आसनों और प्राणायाम के माध्यम से पेट और नाभि को संतुलित करना आवश्यक है। जब शरीर थोड़ा संतुलित हो जाए, तो ध्यान का अभ्यास किया जा सकता है। ध्यान से मानसिक तनाव कम होगा, जिससे नाभि क्षेत्र पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव भी कम होगा।
नाभि केवल शरीर का एक हिस्सा नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा संतुलन, मानसिक शांति और स्वास्थ्य का केंद्र है। ध्यान और योग दोनों का संबंध सीधे नाभि से है, लेकिन जब शरीर असंतुलित हो, तो केवल ध्यान से समस्या हल नहीं होगी। योग और ध्यान का सही क्रम अपनाना आवश्यक है – पहले शरीर को हठ योग और प्राणायाम के माध्यम से संतुलित करें, और फिर ध्यान द्वारा आंतरिक चेतना को गहराई तक ले जाएँ। यही योग का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक मार्ग है।
Copyright - by Yogi Anoop Academy