नाभि चक्र का रहस्य : वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टि से यौगिक समाधान
1. नाभि चक्र का परिचय
नाभि चक्र, जिसे मणिपुर चक्र (Manipura Chakra) या सौर जालिका चक्र (Solar Plexus Chakra) भी कहा जाता है, योग की परंपरा में शरीर का तीसरा ऊर्जा केंद्र है। इसका स्थान नाभि क्षेत्र में माना जाता है, और यह शरीर की ऊर्जा का शक्तिकेंद्र (powerhouse) की तरह कार्य करता है । यह ऊर्जा केंद्र हमारे शारीरिक और मानसिक स्वरूप दोनों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, यह आत्म-सम्मान, उद्देश्य की भावना, व्यक्तिगत पहचान और इच्छाशक्ति जैसे मनोवैज्ञानिक पहलुओं से जुड़ा होता है, साथ ही पाचन और चयापचय (मेटाबॉलिज़म) जैसी शारीरिक प्रक्रियाओं से भी इसका गहरा संबंध है । सरल शब्दों में, नाभि चक्र संतुलित रहने पर व्यक्ति स्वयं को ऊर्जावान, आत्मविश्वासी और केंद्रित महसूस करता है, जबकि असंतुलन की स्थिति में कमजोरी, संकोच या क्रोध की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है ।
2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विज्ञान की दृष्टि से नाभि चक्र के क्षेत्र को समझने के लिए हमें मानव शरीर की शारीरिक संरचनाओं को देखना होगा। नाभि के पीछे पेट के ऊपरी हिस्से में तंत्रिकाओं का एक जटिल जाल स्थित होता है, जिसे सौर जालिका (Solar Plexus) कहते हैं। यह सौर जालिका तंत्रिकाओं का एक समूह (प्लेक्सस) है जो सूर्य की किरणों की तरह चारों ओर फैला होता है । इस नाड़ी-जाल का संबंध स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (autonomic nervous system) से है और यह पेट के अंगों से लेकर मस्तिष्क तक संदेश संप्रेषित करने में अहम भूमिका निभाता है। वास्तव में, आंत और मस्तिष्क के बीच सक्रिय संचार मार्ग – जिसे गट-ब्रेन अक्ष (Gut-Brain Axis) कहा जाता है – में वैगस तंत्रिका और सौर जालिका जैसे तंत्रिका केंद्रों का महत्वपूर्ण योगदान होता है । यही कारण है कि पेट में तनाव या उत्साह महसूस होना (“तितलियाँ उड़ना” जैसी भावना) वास्तविक न्यूरोलॉजिकल घटना है, जो नाभि क्षेत्र की नसों और मस्तिष्क के बीच संबंध को दर्शाती है।
इस क्षेत्र में स्थित प्रमुख अंगों में अग्न्याशय (Pancreas) और अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) शामिल हैं, जो पाचन एंजाइम और हार्मोन का स्राव करते हैं। अग्न्याशय पाचन के लिए आवश्यक एंजाइम के साथ-साथ इंसुलिन जैसे हार्मोन रिलीज़ करता है जो शरीर में रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है, जबकि अधिवृक्क ग्रंथियाँ एड्रेनालिन और कॉर्टिसोल जैसे fight-or-flight प्रतिक्रिया से जुड़े तनाव हार्मोन का उत्पादन करती हैं । यदि नाभि क्षेत्र की यह प्रणाली संतुलन में हो, तो पाचन क्रिया सुचारू रहती है और शरीर ऊर्जा को ठीक से उपयोग में ला पाता है। दूसरी ओर, अत्यधिक तनाव या असंतुलन इस केंद्र को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप गैस्ट्रिक अल्सर, कब्ज, अथवा मधुमेह जैसी पाचन एवं चयापचय संबंधी समस्याएँ उभर सकती हैं । वैज्ञानिक अनुसंधानों ने भी संकेत दिया है कि शरीर के ये ऊर्जा केंद्र (चक्र) वास्तव में हमारे स्नायुतंत्र और मनोभावों से जुड़े सूक्ष्म नेटवर्क का हिस्सा हो सकते हैं । अर्थात्, नाभि क्षेत्र की स्वस्थ कार्यप्रणाली केवल पाचन तंत्र ही नहीं बल्कि व्यक्ति के भावनात्मक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है – उदाहरणस्वरूप, निरंतर तनाव न केवल पाचन बिगाड़ सकता है बल्कि आत्मविश्वास को भी कमज़ोर कर सकता है ।
3. योगिक दृष्टिकोण
योग के दृष्टिकोण से, नाभि चक्र को संतुलित रखने में शारीरिक अभ्यास (आसन) और श्वसन तकनीक (प्राणायाम) दोनों महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। योग में ऐसे अनेक आसन बताए गए हैं जो पेट एवं मध्य भाग पर केंद्रित होकर इस चक्र को सक्रिय व संतुलित करने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, सूर्य नमस्कार (Sun Salutations), वीरभद्रासन (Warrior Pose), नौकासन (Boat Pose) जैसे आसन और विभिन्न कोणों में शरीर को मोड़ने वाले ट्विस्ट आसन पेट क्षेत्र की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं एवं पाचन अंगों की मालिश करते हैं, जिससे नाभि चक्र की ऊर्जा संतुलित होती है । इस प्रकार के आसनों से न केवल शरीर की मुद्रा सुधरती है बल्कि व्यक्ति में आंतरिक साहस एवं स्थिरता का विकास होता है।
प्राणायाम की दृष्टि से विशेषकर उदर श्वास (diaphragmatic breathing, यानी पेट तक गहरी सांस भरना) को नाभि चक्र के लिए अत्यंत लाभदायक माना गया है। गहरी पेट श्वसन करने से डायफ्राम विस्तृत होता है और फेफड़ों में अधिक ऑक्सीजन जाती है, जिससे पेट के आसपास के अंगों और तंत्रिकाओं को भी अधिक रक्त एवं ऑक्सीजन मिलता है । वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध हुआ है कि नियमित गहरी श्वसन से तनावरहित अनुभव होता है, हृदयगति एवं रक्तचाप नियंत्रित होते हैं तथा पाचन तंत्र बेहतर कार्य करता है । योग में कुछ ऊर्जावर्धक प्राणायाम तकनीकें भी हैं जो विशेष रूप से नाभि क्षेत्र को उद्दीप्त करती हैं। उदाहरण के लिए, कपालभाति प्राणायाम (तेज़ गति से क्रियात्मक उदर श्वसन) नाभि स्थान की अग्नि को प्रज्वलित करने वाली तकनीक मानी गई है, जो शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने और मन-शरीर को पुनर्जीवित करने में सहायता करती है । इस प्रकार के योगिक अभ्यास नाभि चक्र में स्थिर हुई ऊर्जा को गति देते हैं और वहाँ संचित तनाव या अवरोध को दूर करने में मदद करते हैं।
4. नाभि चक्र ऊर्जा चिकित्सा
योग एवं विज्ञान के साथ-साथ वैकल्पिक उपचार पद्धतियों में ऊर्जा चिकित्सा के जरिये भी नाभि चक्र को संतुलित करने के तरीके प्रचलित हैं। ऊर्जा चिकित्सा का आशय ऐसे उपचारों से है जो शरीर के ऊर्जा क्षेत्र (biofield) पर कार्य करते हैं, जैसे योग में कई क्रिया विधियां , क्रिया योग विधि, सूक्ष्म प्राणायाम, एक्यूप्रेशर आदि। नाभि चक्र की अत्यधिक सक्रियता (overactive chakra) के कुछ लक्षणों पर ध्यान दें तो पता चलता है कि जब यह चक्र अति सक्रिय होता है, तब व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक प्रभुत्व जमाने की इच्छा, क्रोध एवं आक्रामकता, अत्यधिक महत्वाकांक्षा या हठीलापन जैसे स्वभाव देखने को मिल सकते हैं । इसके विपरीत, यदि यह चक्र अवरुद्ध या कमजोर (underactive) हो तो आत्मविश्वास की कमी, निरंतर थकान, निर्णय लेने में कठिनाई और हताशा जैसे भाव सामने आते हैं । ऊर्जा चिकित्सक मानते हैं कि इस प्रकार के असंतुलन के पीछे अक्सर भावनात्मक कारण होते हैं – जैसे बचपन का कोई गहरा आघात, अत्यधिक सख्त पालन-पोषण, या दीर्घकालिक तनाव जो अंदर ही अंदर सौर जालिका की ऊर्जा को बाधित करता है । विशेषकर लगातार रहने वाला मानसिक तनाव तीसरे चक्र को असंतुलित कर देता है, जिससे शरीर लगातार ‘फाइट-या-फ्लाइट’ अवस्था में रहकर अधिवृक्क से अत्यधिक तनाव-हार्मोन निकालता है और पाचन क्रिया दबाव में आ जाती है ।
5. प्रायोगिक समाधान
नाभि चक्र को संतुलित रखने या असंतुलन दूर करने के लिए कई सरल, वैज्ञानिक रूप से समर्थित तथा योगिक रूप से मान्य उपाय उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं:
1. उदर श्वसन तकनीक (Abdominal Breathing Exercises): पेट से स्वसन लेने और छोड़ने की तकनीक के अभ्यास से मैंने नाभि जैसी भयानक से भयानक समस्या का समाधान करते हुए देखा है । इसके साथ साथ डायफ्रामेटिक ब्रीदिंग या अनुलोम-विलोम (वैकल्पिक नासिका श्वसन), शारीरिक व मानसिक दोनों स्तरों पर लाभकारी हैं। प्रयोग और गंभीर अध्ययन से मैंने पाया है कि उदर प्राणायाम में श्वसन की क्रिया से पेट के मध्य भाग में तनाव तो कम होता ही है साथ साथ मस्तिष्क में तनाव-हार्मोन कम होते हैं, हृदय की धड़कन व रक्तचाप संतुलित रहता है और ध्यान क्षमता में वृद्धि होती है । योग में यह प्रचलित तकनीक है जिसे प्राणायाम कहते हैं, और इससे न केवल तुरंत शांति अनुभव होती है बल्कि नाभि क्षेत्र में रक्त-संचार सुधरने से पाचन शक्ति भी बढ़ती है । दैनिक 11 मिनट उदर-श्वसन का अभ्यास नाभि चक्र को संतुलित रखने में बहुत सहायक हो सकता है।
2. सूर्य नमस्कार एवं योगासन: यद्यपि यह एक प्रचलित सर्वमान्य आसन का एक समूह है जो नाभि चक्र को मजबूत करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है । किंतु मेरे प्रयोगों में यह इस समूह के अभ्यास से विपरीत प्रभाव देखे गए । प्रभावी उपायों में ऐसे आसन का अभ्यास सर्वोत्तम परिणाम वाला दिखा जो बहुत धीरे धीरे और मांसपेशियों में शिथिलता प्रदान करता हो , जैसे पवन मुक्त आसन , ताड़ासन , कुर्सी आसन , पंजों पर चलने की प्रक्रिया , सेतु बंध आसन और पवनमुक्त आसन को एक के बाद एक का किया जाना इत्यादि ।
3. संतुलित आहार एवं पाचन सुधार: क्योंकि नाभि चक्र सीधे पाचन-तंत्र से जुड़ा है, आहार में सुधार करना एक तार्किक एवं सरल उपाय है। संतुलित आहार जिसमें उचित मात्रा में रेशे (fiber), प्रोटीन, विटामिन और खनिज हों, अग्न्याशय तथा जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) स्वास्थ्य को सुधारता है। और साथ साथ भोजन की मात्रा का भी बहुत अधिक महत्व होता है । उसमें न तो अधिकता और न ही बहुत कमी होनी चाहिए । वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध है कि उच्च-रेशेयुक्त भोजन लेने से कब्ज और अपच जैसी समस्याओं में राहत मिलती है, तथा रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रित रहता है – ये दोनों ही नाभि क्षेत्र के संतुलन हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। योग एवं आयुर्वेद में भी पाचन को मजबूत रखने के लिए सात्त्विक आहार पर जोर दिया गया है, जिसमें ताज़े फल, सब्ज़ियाँ, साबुत अनाज और हल्दी, अदरक जैसे पाचन-सहायक मसाले शामिल होते हैं । विशेष रूप से पीले या सुनहरे रंग की खाद्य वस्तुओं को कुछ मतों में मणिपुर चक्र से साम्यता के आधार पर उपयोग करने की सलाह दी जाती है – जैसे केला, अनानास, मक्का, पीली शिमला मिर्च इत्यादि – हालाँकि रंग-सामंजस्य का यह पहलू प्रतीकात्मक है। फिर भी, इन खाद्यों में मौजूद पौष्टिक तत्व वास्तव में पाचन और ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देते हैं, जिससे चक्र संतुलन में मदद मिलती है ।
4. ध्यान एवं मानसिक व्यायाम: यदि दिनचर्या में कुछ मिनट ऐसे ध्यान किए जाएं जिसमें श्वास पर ध्यान केंद्रित हो तो इंद्रियों और मस्तिष्क का खिंचाव नाभि केंद्र पर कम पड़ने लगता है । चिंकी अवसाद व चिंता स्वभाव के व्यक्तियों में पेट के खींचने की बुरी आदत अत्यधिक होती है इसलिए ध्यान की इस पड़ती से मन इंद्रियों के द्वारा मस्तिष्क में विश्राम की वृद्धि हो जाती है तो उससे पेट में खिंचाव की लत समाप्त हो जाती है ।
कुछ शिक्षक ध्यान के माध्यम से नाभि केंद्र पर एकाग्रता करवाने का प्रयास करते हैं , और उसी के माध्यम से नाभि ऊर्जा के संतुलन पर कार्य करते हुए पाये जाते हैं , किंतु यह विज़ूलाइज़ेशन बहुत अधिक प्रभावी न दिखकर अवसाद में परिवर्तित कर देता है ।
ध्यान से आत्म चेतना (self-awareness) बढ़ती है, जिससे व्यक्ति अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से सँभाल पाता है। योगिक दृष्टिकोण से, यह आत्मचेतना की वृद्धि से देह में अनावश्यक खिंचाव समाप्त हो जाता है । और उसी के माध्यम से देह में चक्रों का संतुलन स्वतः ही हो जाता है ।
5. जीवनशैली में संतुलन: अंत में, एक सरल किंतु प्रभावी उपाय है अपनी रोज़मर्रा की जीवनशैली में समग्र संतुलन बनाना। नियमित योग प्राणायाम और ध्यान , टहलना , समय पर सोना-जागना, पर्याप्त नींद लेना, और तनाव प्रबंधन – ये सभी चीज़ें शरीर के संपूर्ण तंत्र को साम्य में रखती हैं। जब कुल मिलाकर शरीर और मन स्वस्थ रहते हैं, तो सभी चक्रों का संतुलन बनाए रखना सहज हो जाता है। विशेषतः नाभि चक्र के लिए, आत्म-अनुशासन और नियमित दिनचर्या का पालन करना लाभदायक है क्योंकि यह चक्र स्व-शक्ति और स्थिरता से जुड़ा माना जाता है। उदाहरण के तौर पर, यदि व्यक्ति अपने लिए छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें पूरा करता है, समय पर भोजन एवं व्यायाम करता है, तो उसकी इच्छाशक्ति मज़बूत होती है और मणिपुर चक्र संतुलित रहता है। इस प्रकार, आधुनिक विज्ञान की सलाह (जैसे संतुलित आहार-व्यायाम) और पारंपरिक योग-साधना – दोनों मिलकर – नाभि चक्र को संतुलित रखने में हमारी मदद करते हैं।
Copyright - by Yogi Anoop Academy