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नाभि ऊर्जा और एंटरिक नर्वस सिस्टम II

1 month ago By Yogi Anoop

नाभि ऊर्जा और एंटरिक नर्वस सिस्टम पर योगी अनूप और उनके शिष्यों के बीच संवाद - II

शिष्य: गुरुदेव, नाभि के हटने या टलने का मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?

योगी अनूप: नाभि के हटने या टलने को शारीरिक रूप से एक साधारण घटना समझा जाता है, लेकिन इसका प्रभाव आपके मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा पड़ता है। नाभि हमारे शरीर का गुरुत्व केंद्र है, और जब यह अपनी स्थिति से हटती है, तो शरीर का ऊर्जा प्रवाह असंतुलित हो जाता है।

नाभि और मस्तिष्क के बीच एक सीधा संवाद है। जब नाभि अस्थिर होती है, तो यह एंटरिक नर्वस सिस्टम को बाधित करती है, जिससे पाचन में समस्याएँ शुरू होती हैं। पाचन की ये गड़बड़ियाँ मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न करती हैं। इससे व्यक्ति अनिद्रा, चिंता, अवसाद और निर्णय लेने की क्षमता में कमजोरी जैसी मानसिक समस्याओं का सामना करता है।

मेरा अनुभव कहता है कि नाभि को उसकी सही स्थिति में लाने के लिए योग और प्राणायाम की विधियाँ अत्यंत प्रभावी होती हैं। एक बार नाभि स्थिर हो जाए, तो मानसिक स्वास्थ्य भी स्वतः सुधरने लगता है।


शिष्य: गुरुदेव, नाभि के हटने से कब्ज और IBS (Irritable Bowel Syndrome) जैसी समस्याएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?

योगी अनूप: जब नाभि अपनी स्थिति से हटती है, तो यह पाचन तंत्र की क्रियाशीलता को सीधे प्रभावित करती है। नाभि के क्षेत्र में स्थित एंटरिक नर्वस सिस्टम, जो पाचन रस और आँतों की गति को नियंत्रित करता है, असंतुलित हो जाता है। इससे आँतों में संकुचन और शिथिलता का तालमेल बिगड़ जाता है।

इस असंतुलन का पहला प्रभाव कब्ज के रूप में दिखाई देता है। आँतों की गति धीमी हो जाती है, जिससे मल निष्कासन कठिन हो जाता है। दूसरी ओर, IBS जैसी समस्याएँ, जहाँ कभी दस्त तो कभी कब्ज की स्थिति बनती है, भी नाभि के टलने का परिणाम हो सकती हैं।

योग में विशेषकर नाभि चक्र साधना और सूक्ष्म कपालभाति जैसे अभ्यास इन समस्याओं को ठीक करने में सहायक हैं। इसके अलावा, आयुर्वेद में नाभि पर घी या तेल लगाने की विधि पाचन को बेहतर करने में अत्यंत प्रभावी है।


शिष्य: गुरुदेव, नाभि के हटने का लिवर पर क्या प्रभाव पड़ता है?

योगी अनूप: लिवर हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जो विषैले पदार्थों को साफ करता है और पाचन के लिए आवश्यक एंजाइम का निर्माण करता है। नाभि के हटने से लिवर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि नाभि का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव लिवर की क्रियाशीलता को सीधे प्रभावित करता है।

जब नाभि असंतुलित होती है, तो यह लिवर के रक्त प्रवाह को बाधित करती है। इससे लिवर अपनी कार्यक्षमता खोने लगता है, जिससे थकान, कमजोरी, अपच, और विषाक्त पदार्थों के संचय जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

नाभि को संतुलित करना, लिवर की कार्यक्षमता को पुनः सक्रिय कर सकता है। मैंने अपने शिष्यों पर इस क्षेत्र में गहन प्रयोग किए हैं, और परिणामस्वरूप लिवर की कार्यक्षमता में सुधार देखा है।


शिष्य : गुरुदेव, क्या नाभि के हटने से व्यक्ति की इच्छाशक्ति समाप्त हो सकती है?

योगी अनूप: यह एक बहुत ही गहन प्रश्न है। नाभि और इच्छाशक्ति के बीच संबंध मणिपुर चक्र के माध्यम से जुड़ा हुआ है। मणिपुर चक्र हमारी आत्मबल, आत्मविश्वास, और निर्णय लेने की क्षमता का केंद्र है। जब नाभि अपनी स्थिति से हटती है, तो मणिपुर चक्र की ऊर्जा कमजोर हो जाती है।

इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति अपनी इच्छाओं को लेकर असमंजस में पड़ जाता है। उसकी निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास और जीवन में आगे बढ़ने का साहस धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। यह केवल शारीरिक कमजोरी का विषय नहीं है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक कमजोरी का भी संकेत है।

नाभि को संतुलित करना और मणिपुर चक्र को सक्रिय करना इच्छाशक्ति को पुनः जागृत कर सकता है। योग और प्राणायाम की साधनाएँ, जैसे नाड़ी शोधन और अग्निसार क्रिया, इसमें अत्यंत सहायक हैं।


शिष्य: गुरुदेव, क्या नाभि को सही स्थिति में लाना इतना महत्वपूर्ण है कि यह संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित कर सके?

योगी अनूप: नाभि को सही स्थिति में लाना केवल महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि अनिवार्य है। नाभि शरीर का वह केंद्र है, जहाँ से ऊर्जा प्रवाह, पाचन, और तंत्रिका तंत्र नियंत्रित होते हैं। यदि नाभि अस्थिर हो, तो यह पूरे शरीर को प्रभावित करती है।

नाभि का हटना न केवल शारीरिक समस्याएँ, जैसे कब्ज, गैस, और अपच उत्पन्न करता है, बल्कि मानसिक अस्थिरता, चिंता, और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याएँ भी लाता है। मेरे अनुभव में, जो लोग लंबे समय से मानसिक और शारीरिक परेशानियों से जूझ रहे थे, उनकी नाभि को संतुलित कर देने मात्र से उनका स्वास्थ्य आश्चर्यजनक रूप से सुधर गया।

इसलिए, नाभि को संतुलित रखना संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। योग, आयुर्वेद, और प्राणायाम की विधियों के माध्यम से इसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

इस प्रकार, नाभि और एंटरिक नर्वस सिस्टम का अध्ययन केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। यह मानसिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक संतुलन का भी आधार है। योग और आयुर्वेद के माध्यम से नाभि को संतुलित कर, जीवन को बेहतर और पूर्णत: संतुलित बनाया जा सकता है।

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