शिष्य: गुरुदेव, नाभि का शरीर में क्या महत्व है, और इसका मणिपुर चक्र या एंटरिक नर्वस सिस्टम से क्या संबंध है?
योगी अनूप: नाभि मानव शरीर का केंद्र बिंदु है। यह केवल शारीरिक अंग नहीं है, बल्कि ऊर्जा, तंत्रिका तंत्र, और पाचन तंत्र का भी मुख्य आधार है। इसके पीछे मणिपुर चक्र स्थित होता है, जिसे ऊर्जा का स्रोत और धातु बल का केंद्र माना गया है। नाभि से जुड़े एंटरिक नर्वस सिस्टम (ENS) को आधुनिक विज्ञान में “दूसरा मस्तिष्क” कहा गया है।
जब आप नाभि के माध्यम से तंत्रिका तंत्र की यात्रा को समझते हैं, तो आपको पता चलता है कि यह छोटी और बड़ी आँत, लिवर, और पाचन तंत्र पर सीधा प्रभाव डालता है। मणिपुर चक्र का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव नाभि से निकलने वाली हर प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह प्रभाव इतना सटीक है कि लिवर, जो शरीर का सबसे सक्रिय अंग है, नाभि के गुरुत्वाकर्षण के कारण ही अपना कार्य सुचारू रूप से कर पाता है।
आधुनिक विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि नाभि और एंटरिक नर्वस सिस्टम का सीधा संबंध मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से है। जब नाभि का संतुलन बिगड़ता है, तो इसका प्रभाव पूरे पाचन तंत्र, तंत्रिका जाल और यहाँ तक कि आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इसलिए, नाभि को केवल शरीर का केंद्र नहीं, बल्कि आपके जीवन के संचालन का आधार समझा जाना चाहिए।
शिष्य : गुरुदेव, एंटरिक नर्वस सिस्टम (ENS) और मस्तिष्क के बीच संबंध को विज्ञान में गट-ब्रेन एक्सिस कहा गया है। कृपया इसे सरल भाषा में समझाएँ।
योगी अनूप: बहुत अच्छा प्रश्न। गट-ब्रेन एक्सिस का अर्थ है कि हमारा पाचन तंत्र और मस्तिष्क एक-दूसरे से निरंतर संवाद करते हैं। इसे आप शरीर के अंदर मौजूद दो प्रमुख केंद्रों के रूप में देख सकते हैं।
नाभि के आसपास स्थित एंटरिक नर्वस सिस्टम, जो पाचन तंत्र को नियंत्रित करता है, मस्तिष्क से सीधे संवाद करता है। यदि नाभि असंतुलित (तंत्रिका जाल में दोष) हो जाती है, तो इसका पहला प्रभाव आपके मस्तिष्क पर दिखाई देता है। वह इसलिए कि पाचन और निष्कासन पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता है । ध्यान दें चिंता, तनाव, और भावनात्मक असंतुलन पाचन तंत्र को बाधित करते हैं, जिससे कब्ज, गैस, या दस्त जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
अब यदि आप इसे गहराई से समझें, तो नाभि और मस्तिष्क के बीच यह संबंध केवल शारीरिक नहीं है बल्कि मानसिक रूप से अत्यंत सूक्ष्म भी हैं । योग और प्राणायाम के अभ्यास से मैं नाभि के इन तंत्रिकाओं को सक्रिय कर, न केवल पाचन सुधारता हूँ, बल्कि मानसिक शांति भी लाता हूँ। जब नाभि संतुलित होती है, तो आपका मस्तिष्क भी स्थिर रहता है।
शिष्य : गुरुदेव, आपने आयुर्वेद में नाभि के महत्व की चर्चा की है। क्या इससे जुड़े कुछ विशेष उपचार या प्रथाएँ भी हैं जो नाभि के माध्यम से स्वास्थ्य में सुधार कर सकती हैं?
योगी अनूप: आयुर्वेद में नाभि को “शरीर का केंद्र” कहा गया है। यह मणिपुर चक्र के माध्यम से शरीर की ऊर्जा को संतुलित करता है। आयुर्वेद उस नाभि को जिसे आधुनिक विज्ञान एंटरिक नर्वस सिस्टम के रूप में देखता है और जो पाचन और निष्कासन को नियंत्रित करता, उसको को संतुलित करने के लिए कुछ विशिष्ट उपचार दिए गए हैं, जैसे अभ्यंग (तेल मालिश)। घी, वसा, या तेल का प्रयोग नाभि के क्षेत्र में तथा विशेष काल में उस तेल को पीने के लिए भी कहा जाता है जिसके माध्यम से पेट के मध्य भाग की मांसपेशियों को शिथिल किया जा सके । इससे पाचन तंत्र को राहत मिलती है और संकुचन से हो रहे खिंचाव में शिथिलता आती है। नाभि में घी डालने की परंपरा एक प्राचीन विधि है, जो कब्ज, गैस, और आंतों की अन्य समस्याओं को दूर करती है। यद्यपि घी को पीने के लिए भी प्रेरित किया जाता है जो बहुत ही लाभकारी होता है । किंतु यह सभी अभ्यास किसी अनुभवी गुरु के निरीक्षण में ही करना सर्वोत्तम होता है ।
यहाँ आपको यह भी समझना चाहिए कि मणिपुर चक्र और नाभि के बीच ऊर्जा का संकुचन और विस्तार होता है। जब यह असंतुलित होता है, तो शरीर के अन्य कार्य, विशेषकर पाचन और उत्सर्जन, बाधित हो जाते हैं। योग और आयुर्वेद इस संतुलन को बहाल करने के लिए सहायक हैं।
शिष्य: गुरुदेव, क्या योग की कुछ विशेष विधियाँ हैं जो नाभि और एंटरिक नर्वस सिस्टम को मजबूत करती हैं?
योगी अनूप: बिल्कुल। योग में नाभि और एंटरिक नर्वस सिस्टम को संतुलित करने के लिए कई विशेष तकनीकें दी गई हैं। इनमें मुख्य रूप से नाड़ी शोधन, सूक्ष्म कपालभाति, और नाभि चक्र साधना आती हैं।
नाड़ी शोधन प्राणायाम आपकी तंत्रिकाओं को संतुलित करता है और नाभि के क्षेत्र में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है।
कपालभाति नाभि के आसपास स्थित तंत्रिकाओं को सक्रिय करता है, जिससे पाचन तंत्र बेहतर तरीके से काम करता है।किंतु सावधानी से अथवा किसी परम अनुभवी गुरु से ही उपयुक्त सलाह ले करके इसका अभ्यास करना चाहिए अन्यथा इस क्रिया का अभ्यास वर्जित है ।
नाभि चक्र साधना विशेष रूप से नाभि के विस्थापन (Displacement) को ठीक करने में सहायक है। इस क्रिया का अभ्यास मैं लगभग 24 वर्षों से कर रहा हूँ जिसका परिणाम बहुत अधिक मात्र में बेहतर है ।
इन तकनीकों के माध्यम से नाभि के तंत्रिका जाल को सक्रिय कर, आप न केवल अपनी पाचन समस्याओं को ठीक कर सकते हैं, बल्कि मानसिक शांति और ऊर्जा प्रवाह में भी सुधार कर सकते हैं।
शिष्य: गुरुदेव, आपने नाभि को “दूसरा मस्तिष्क” कहा। क्या इसका मतलब यह है कि नाभि हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी नियंत्रित करती है?
योगी अनूप: हां, बिल्कुल। नाभि को मैं “दूसरा मस्तिष्क” कहता हूँ । उसके कहने का कारण ही यह है कि यह न केवल आपके पाचन तंत्र, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी सीधा गहरा प्रभाव डालती है। नाभि और एंटरिक नर्वस सिस्टम के माध्यम से मस्तिष्क तक कई न्यूरोट्रांसमीटर, जैसे सेरोटोनिन, पहुँचते हैं।
सेरोटोनिन आपकी भावनाओं, खुशी, और मानसिक शांति को नियंत्रित करता है। यदि नाभि का संतुलन बिगड़ता है, तो यह न्यूरोट्रांसमीटर की कार्यप्रणाली को बाधित करता है। परिणामस्वरूप, व्यक्ति तनाव, चिंता, और अवसाद जैसी समस्याओं का सामना करता है।
योग, प्राणायाम, और आयुर्वेद की विधियों के माध्यम से नाभि के तंत्रिका तंत्र को संतुलित किया जा सकता है। इससे न केवल आपका पाचन तंत्र सुधारता है, बल्कि मानसिक शांति और स्थिरता भी आती है।
इस प्रकार, नाभि और एंटरिक नर्वस सिस्टम के बीच संबंध केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि यह मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संतुलन का आधार भी है। योग और आयुर्वेद के माध्यम से नाभि के महत्व को समझकर, इसे संतुलित रखना आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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