नाभि, हमारे शरीर का केंद्र बिंदु, केवल शारीरिक संरचना का हिस्सा नहीं है बल्कि इसे ऊर्जा का केंद्र भी माना जाता है। आयुर्वेद और योग में नाभि को शरीर के सेंटर ऑफ ग्रेविटी के रूप में देखा जाता है। अगर इसका स्थान बदल जाए तो न केवल पाचन तंत्र बल्कि शारीरिक और मानसिक संतुलन भी प्रभावित होता है।
अगर नाभि का स्थान सही न हो, तो ब्लोटिंग, एसिडिटी, आईबीएस, और पेट में भारीपन जैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं। नाभि का ऊपर खिसकना डायाफ्राम से जुड़ी समस्याएं, नीचे खिसकना आंतों की दिक्कतें, और दाएं या बाएं खिसकना लिवर और स्प्लीन जैसे अंगों को प्रभावित कर सकता है।
योगिक उपाय: नाभि संतुलन का रास्ता
नाभि से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने के लिए योग में कुछ प्रभावशाली उपाय सुझाए गए हैं। इनमें मूल बंध, उड्डियान बंध, और उदर प्राणायाम का अभ्यास विशेष रूप से कारगर है। ये अभ्यास नाभि क्षेत्र को स्थिर करते हैं और पूरे शरीर की कार्यप्रणाली में सुधार लाते हैं।
मूल बंध का अभ्यास
मूल बंध निचली ऊर्जा प्रणाली को मजबूत करने और ब्लड फ्लो को संतुलित करने में मदद करता है।
• कैसे करें: सिद्धासन या पद्मासन में बैठें। सांस को बाहर निकालें (वाह्य कुंभक) और रेक्टम और मूलाधार क्षेत्र को भीतर की ओर खींचें।
• इसे 10-11 सेकंड तक होल्ड करें। ब्लड प्रेशर के मरीज इसे केवल 3-4 सेकंड तक करें।
• यह अभ्यास नाभि के आसपास की मांसपेशियों को सक्रिय करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
उड्डियान बंध का अभ्यास
उड्डियान बंध नाभि के मध्य क्षेत्र और हार्मोनल प्रवाह को संतुलित करता है।
• कैसे करें: गहरी सांस लेकर उसे पूरी तरह मुंह से बाहर छोड़ें। पेट को अंदर की ओर खींचें और इसे 11 सेकंड तक होल्ड करें।
• फिर धीरे-धीरे सांस को आने दें और शरीर को रिलैक्स करें।
• यह अभ्यास पाचन, इमोशनल असंतुलन और शरीर की हार्मोनल प्रणाली को ठीक करता है।
उदर प्राणायाम का अभ्यास
उदर प्राणायाम नाभि के सही स्थान को बहाल करने और पेट से जुड़े विकारों को सुधारने में मदद करता है।
• कैसे करें: सीधे बैठें और आराम से सांस लें। श्वास को धीरे-धीरे अंदर लें और फिर धीरे-धीरे छोड़ें।
• ध्यान दें कि पेट और नाभि क्षेत्र में हलचल हो।
• यह अभ्यास तनाव, इमोशनल डिसऑर्डर्स और ब्लोटिंग जैसी समस्याओं को कम करता है।
प्राणायाम और बंधों के लाभ
इन प्राणायाम और बंधों का नियमित अभ्यास नाभि क्षेत्र के क्षेत्र में रक्त और ऑक्सीजन की मात्र को बढ़ाता है । और साथ साथ नाड़ियों को व्यवस्थित करता है । ये अभ्यास न केवल पाचन को सुधारने में कार्य करता है बल्कि शरीर और मन के बीच एक गहरा संतुलन भी स्थापित करते हैं।
अभ्यास के दौरान सावधानियां
• अभ्यास करते समय चेहरा और शरीर शांत रखें।
• सांस को बाहर निकालते हुए मस्तिष्क पर अनावश्यक दबाव न डालें।
• नियमितता बनाए रखें और हर प्रक्रिया को आराम से करें।
मूल बंध, उड्डियान बंध, और उदर प्राणायाम का नियमित अभ्यास नाभि से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावी है। ये न केवल पाचन तंत्र और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करते हैं, बल्कि मानसिक संतुलन और ऊर्जा प्रवाह को भी नियंत्रित करते हैं। अपनी दिनचर्या में इन उपायों को शामिल करें और शरीर के प्राकृतिक संतुलन का अनुभव करें।
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