योग, आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से मानव देह में दो प्रमुख “ब्रह्म स्थान” होते हैं। ये स्थान न केवल हमारे शारीरिक और मानसिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि हमारे आध्यात्मिक उत्थान की कुंजी भी हैं। इन दो ब्रह्म स्थानों को नाभि केंद्र और सहस्रार चक्र के रूप में जाना जाता है।
1. नाभि केंद्र: शक्ति और ऊर्जा का स्रोत
नाभि केंद्र, जिसे मणिपुर चक्र अर्थात मणि स्थल (ऊर्जा स्रोत) के रूप में जाना जाता है, शरीर के मध्य में स्थित गुरुत्वाकर्षण के केंद्र के रूप में जाना जाता है। यह गुरुत्वाकर्षण केंद्र शक्ति और ऊर्जा का भंडार है, जो स्थिर होती है। यही स्थिरता शरीर की समस्त परिधि (देह) का नियंत्रण करती है। इस केंद्र को पाचन और निष्कासन का मुख्य स्थान माना गया है। ध्यान देने योग्य है कि यह ऊर्जा स्थल इन्द्रियों से दृश्यमान नहीं होता, बल्कि इसे केवल अनुभव और व्यवहार के माध्यम से ही समझा जा सकता है।
आयुर्वेद, जो मानव शरीर को चिकित्सीय दृष्टिकोण से देखता है, नाभि को “जठराग्नि” के रूप में मान्यता देता है। आयुर्वेद के अनुसार, यह शरीर का मुख्य स्थान है, जो पाचन और ऊर्जा निर्माण के लिए जिम्मेदार है। जठराग्नि शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करती है और पूरे शरीर को शक्ति प्रदान करती है। किसी भी रोग को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद इस केंद्र पर विशेष ध्यान देता है।
समान प्रकाश (वायु) का प्रसार
योग के अनुसार, नाभि केंद्र सूर्य के समान है, जो समान वायु का प्रतीक है। समान वायु का तात्पर्य स्थिर मध्य से है—एक ऐसा केंद्र जिसमें कोई गति नहीं होती, परंतु वह अन्य को गति प्रदान करता है। इसी सिद्धांत के आधार पर मैं सामान्य व्यक्तियों की चिकित्सा करता हूँ। मेरे अनुभव में, जब समान वायु को साध लिया जाता है, तो शरीर की अन्य सभी गतिशील वायु लयबद्ध हो जाती हैं। यह नाभि केंद्र पूरे शरीर में ऊर्जा और प्रकाश को समान रूप से प्रसारित करता है।
इसी कारण यह केंद्र पाचन और उत्सर्जन को नियंत्रित करता है। यह क्षेत्र लिवर और आंतों के माध्यम से पाचन और विषाक्त पदार्थों के निष्कासन को संचालित करता है। नाभि क्षेत्र का संतुलन बनाए रखना शरीर के समग्र स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है।
आधुनिक विज्ञान का दृष्टिकोण
यद्यपि आधुनिक विज्ञान नाभि को उसी रूप में नहीं देखता जिस रूप में योग और आयुर्वेद इसे परिभाषित करते हैं, फिर भी वह इस क्षेत्र में स्थित एंटरिक नर्वस सिस्टम को “पेट का मस्तिष्क” मान्यता देता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह क्षेत्र शरीर की स्वायत्त प्रक्रियाओं—जैसे पाचन, हार्मोनल संतुलन, और ऊर्जा प्रवाह—को नियंत्रित करता है।
यह क्षेत्र तंत्रिका तंत्र के सोलर प्लेक्सस से जुड़ा होता है, जिसे शरीर के ऊर्जा प्रवाह का केंद्र माना जाता है। सोलर प्लेक्सस मस्तिष्क और आंतों के बीच संचार का माध्यम है, जिससे शरीर और मन के बीच संतुलन बना रहता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, नाभि क्षेत्र शरीर के चयापचय (मेटाबोलिज्म) का प्रमुख नियंत्रण केंद्र है। यह शरीर की ऊर्जा आवश्यकताओं को संतुलित करता है और कोशिकाओं को आवश्यक पोषण प्रदान करता है।
आध्यात्मिक महत्व
नाभि केंद्र को शक्ति और क्रियात्मक ऊर्जा का स्रोत माना गया है। यह “ओज” (जीवन शक्ति) और “तेज” (ऊर्जा) को उत्पन्न करता है, जो साधक को जीवन में स्थिरता और सक्रियता प्रदान करते हैं। इस ऊर्जा के प्रवाह का उपयोग साधक के स्वभाव पर निर्भर करता है। इसका आधार व्यक्ति का स्वभाव—सत, रज, और तम—होता है। आध्यात्मिक यात्रा तम से सत तक की मानी जाती है।
इसीलिए आध्यात्मिक परंपरा में नाभि की अनंत ऊर्जा को संयमित करने के लिए चेतन ज्ञान का महत्व बताया गया है, जिसमें सहस्रार चक्र का महत्वपूर्ण स्थान होता है। नाभि को “दूसरा मस्तिष्क” कहा जाता है, और यह दूसरे मस्तिष्क से पहले मस्तिष्क (सहस्रार चक्र) की यात्रा का माध्यम बनता है।
सहस्रार चक्र, ज्ञान और चेतना का केंद्र है। यह जल तत्व का प्रतीक है, जबकि नाभि केंद्र अग्नि तत्व का। ध्यान देने योग्य है कि मैं जल को अधिक महत्व देता हूँ, क्योंकि यह शांति का प्रतीक है। जल अग्नि को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है। जल में स्मृति होती है, जबकि अग्नि में स्मृति का अभाव होता है। यही कारण है कि अनियंत्रित अग्नि मृत्यु का कारण बन सकती है।
योग और आयुर्वेद इस स्थान को शून्यता और ध्यान का शिखर मानते हैं।
सहस्रार चक्र: ज्ञान और चेतना का केंद्र
सहस्रार चक्र मन और इंद्रियों की शून्यतम अवस्था है। यहाँ साधक सभी भौतिक अनुभवों से परे जाकर आत्मा से जुड़ता है। यह अवस्था नवजात शिशु के समान होती है, जहाँ मन और इंद्रियाँ बाहरी दुनिया से निष्क्रिय रहती हैं।
सहस्रार क्षेत्र जल तत्व से युक्त है। इसे नवजात शिशु के सिर के ऊपर कोमल और गीला स्थान (ब्रह्मरंध्र) के रूप में देखा जाता है। जल तत्व मस्तिष्क को शीतलता और मन को स्थिरता प्रदान करता है। इसी जल तत्व में ज्ञान का कमल उत्पन्न होता है। सहस्रार को हजार पंखुड़ियों वाले कमल के रूप में दर्शाया गया है, जो ज्ञान, प्रकाश, और आत्मिक जागरूकता का प्रतीक है।
आधुनिक विज्ञान में सहस्रार चक्र को पीनियल ग्रंथि (Pineal Gland) से जोड़ा जाता है। मस्तिष्क के शीर्ष पर स्थित यह ग्रंथि मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव करती है, जो नींद, जैविक घड़ी, और मानसिक शांति को नियंत्रित करता है।
सहस्रार क्षेत्र मस्तिष्क के सेरेब्रल कॉर्टेक्स से भी जुड़ा है। यह हिस्सा तंत्रिका गतिविधियों का मुख्य केंद्र है और रचनात्मकता, चिंतन, और आत्म-जागरूकता को नियंत्रित करता है।
Copyright - by Yogi Anoop Academy