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न सोचने की कला

4 years ago By Yogi Anoop

न सोचने की कला: मस्तिष्क की अनदेखी क्षमता

यदि हमारे भीतर सोचने की सामर्थ्य है, तो स्वाभाविक रूप से न सोचने की क्षमता भी होनी चाहिए। किंतु क्या यह क्षमता हमें बचपन से सिखाई जाती है?

सोचने की कला पर जोर

बचपन से ही माता-पिता, आधुनिक शिक्षा प्रणाली, और समाज हमें केवल और केवल सोचने की कला सिखाते हैं। हमें सिखाया जाता है कि जितना याद कर सको उतना ही अच्छा है , ज्ञान प्राप्त करने, और जीवन में आगे बढ़ने के लिए सोचना जरूरी है। यह सत्य भी है कि सोचने से ही भौतिक जीवन में सब कुछ संभव है किंतु सिर्फ सोचना और सिर्फ सोचते ही रहने की लत बना लेना मस्तिष्क के लिए भविष्य में बहुत ही खतरनाक बन जाता है । सोचने की कला होना बहुत ही उत्तम है किंतु सोचने की लत का होना रोग है इसीलिए न सोचने का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है । माता पिता व किसी परिवार में न सोचने के बारे में कभी विचार ही नहीं किया जाता है । महत्वहीन समझकर इस विषय को छोड़ ही दिया जाता है ।

किंतु बहुत सूक्ष्मता से देखा जाये तो आध्यात्मिक ऋषियों ने न सोचने को सबसे बड़ी कला के रूप में देखा । क्योंकि वही से सोचने की कला की उत्पत्ति होती है । 

न सोचने की अनदेखी महत्ता

सौ में से निन्यानवे लोगों को यह आभास ही नहीं कि न सोच पाना संभव भी है। यहाँ तक की सोचने को स्वभाव के रूप में देखा जाने से लगता है । 

• वे मानते हैं कि जीवन केवल सोचने और सोचते रहने का नाम है । मन को विश्राम नहीं दिया जा सकता है । सिर्फ़ रात में स्वतः जो विश्राम होता है वही संभव है । किंतु सत्य है कि न सोचने की कला ही नई सोचने की शक्ति का स्रोत है। बिना विश्राम के वैचारिक श्रम व्यर्थ है । इसलिए अपने जीवन में प्रत्येक व्यक्ति इसी मानसिक थकान के कारण अपने ही अंतरतम से यह पूंछता हुआ मिलता है कि जीवन व्यर्थ है । 

• मैं तो अनुभव से कहता हूँ कि मस्तिष्क की अपार शक्ति को विकसित करने का एकमात्र तरीका है, “न सोचने” की प्रक्रिया को समझना और अपनाना।

लगातार सोचने की समस्या

एक ऐसा व्यक्ति, जिसने अपने पचास वर्षों के जीवन में केवल सोचना ही सीखा हो और अब उसकी निरंतर सोच उसे थका रही हो, तो उसके लिए न सोच पाना बेहद कठिन हो सकता है। उसकी मानसिक शांति और ठहराव का श्रोत भाव है , विचार ही मात्र है । यही कारण है कि मस्तिष्क में स्थित न्यूरॉन्स को भी कहीं ना कहीं यह एहशाश होने लगता है कि क्रिया ही सब कुछ है । क्रिया में रहने की लत पड़ने से उन न्यूरॉन्स में लचीलापन धीरे धीरे कम होने लगता है । मैं इसी को बुढ़ापन कहता हूँ । मेरे अनुसार न सोचने की क्रिया , व अक्रिय अवस्था से न्यूरॉन्स में उस प्लास्टिसिटी को प्राप्त किया जा सकता है । 

प्रारंभ में न सोचने का अभ्यास उसके लिए असंभव-सा लग सकता है। किंतु वैज्ञानिक अभ्यास से , आध्यात्मिक समझ से इस अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है । यद्यपि इसे एक मानसिक लत व रोग के रूप में देखता हूँ । यह रोग तो है ही किंतु इस रोग से कई अन्य मानसिक और दैहिक  रोग  पैदा हो जाते हैं जिसका निराकरण आधुनिक चिकित्सा से संभव नहीं हो सकता है । 

न सोचने की कला का विकास

न सोचने की कला को अपनाने के लिए व्यक्ति को चरणबद्ध तरीके से अभ्यास करना होगा।

  1. समझ का विकास: सबसे पहले व्यक्ति को यह समझना होगा कि मस्तिष्क को आराम देना क्यों आवश्यक है। क्रिया के पीछे अक्रिया के महत्व को समझने के महत्व पर बल देना आवश्यक है । महत्व को समझने से मन उस विषय की तरफ़ आकर्षित होगा । साथ साथ आकर्षण से न्यूरॉन्स की स्मृति में न सोचने की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी । 
  • यह समझना जरूरी है कि न्यूरोंस व इस देह में छोटी से छोटी इकाई को विश्राम देना आवश्यक है । यह विश्राम व अक्रिया जो बाहर से दिखायी देती हुई मालूम चलती है वह तो उस छोटी इकाई का परिणाम है । इसलिए उसे अपनी स्वाभाविक अवस्था में आना चाहिए, जहाँ भावों, विचारों का कुछ पलों के लिए कोई स्थान नहीं होता है । 
  • ध्यान दें जीवन सोचने और न सोचने के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है । इसके लिए कुछ आध्यात्मिक क्रियाओं का जैसे, योग, ध्यान का अभ्यास अत्यंत आवश्यक हो जाता है ।    

• ध्यान के माध्यम से व्यक्ति विचारों को शांत करना सीखा जा सकता है।

• यह मस्तिष्क को गहराई से विश्राम देने का साधन है। शुरुआत में केवल कुछ मिनटों के लिए न सोचने का प्रयास करें। धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ। कुछ दिनों महीनों के बाद ही यह प्रक्रिया मस्तिष्क को नई ऊर्जा प्रदान करती हुई मिलेगी । ध्यान रहे सोचने की प्रक्रिया दैनिक जीवन पर इतना प्रभावी हो चुकी हुई होती है कि अनुशासन का महत्व नहीं रह जाता है । किंतु अनुशासन और धैर्य का इस अक्रिया की अवस्था को प्राप्त करने में बहुत बड़ा महत्व दिखता है । 

न सोचने की कला के लाभ ; 

आत्म संतोष के रूप में सर्वोत्तम लाभ मिलता है । जिस आत्म संतोष के लिए सोचने की प्रक्रिया की लत लगायी थी उसी को इस अक्रिया से बहुत आसानी से प्राप्त किया जा सकता है । यह एक ऐसा मानसिक विश्राम है जिसकी व्याख्या सोचने की प्रक्रिया से कर पाना संभव नहीं हो पाता है । यही मूल ऊर्जा का स्रोत है इसलिए इसे न्यूरॉन्स की ऊर्जा का मूल स्रोत भी माना जा सकता है । 

मानसिक विश्राम की इस अवस्था में रचनात्मकता का विकास स्वाभाविक रूप से होता हुआ देखा जा सकता है । विचारों का थमना मानसिक तनाव को कम करता है और व्यक्ति को शांति प्रदान करता है।

इस प्रक्रिया से न केवल आत्मशांति बल्कि मानसिक और दैहिक स्वास्थ्य को भी प्राप्त किया जा सकता है । जैसे सभी मानसिक दोषों जैसे चिंता कम क्रोध , तनाव , इत्यादि । मस्तिष्क से संबंधित कई रोगों को मैंने ठीक करने का प्रयास भी किया है । न सोचने की प्रक्रिया से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

न सोचने की कला न केवल एक महान क्षमता है, बल्कि यह मस्तिष्क और मन को शक्ति और शांति प्रदान करती है। यह प्रक्रिया सोचने की शक्ति को नई दिशा देती है और मस्तिष्क की अपार क्षमता को उजागर कर सकती है। हमेशा सोचते रहना मस्तिष्क को थका देता है, लेकिन न सोचने का अभ्यास उसे पुनर्जीवित करता है। इसे अपनाएँ, क्योंकि यह न केवल आपकी मानसिक शांति का आधार है, बल्कि यह जीवन को समझने और आनंदित करने का एक श्रेष्ठ मार्ग भी है।

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