मन जब मस्तिष्क को सोचने के ऐडिक्ट बनाने लगता है तो कुछ वर्षों के बाद सबसे बड़ी समस्या आती है जो हमारी और मेडिकल साइंस के समझने के बस के बाहर होता है । । पहले मन का इस्तेमाल होता है मस्तिष्क को ट्रेन करने के लिए, कुछ वर्षों के बाद मस्तिष्क की उसी तरह से क्रिया करने की आदत बन जाती है । और वो आदत जब देखो अपने आप स्वतः मन को चलाना शुरू कर देता है और उस क्रिया को मन ज़्यादा दिनों तक बर्दाश्त नहीं कर पाता ।
जैसे आप ने शराब पी लिया तो उसका नशा आप के मस्तिष्क पर चढ़ जाता है और कुछ दिनों तक, मन ने ट्रेन किया उस मस्तिष्क को शराब पीने के लिए । पर कुछ महीनों के बाद अब मन का कोई कार्य नहीं रह गया , अब मस्तिष्क ही अपना कार्य करने लगा , वह मस्तिष्क ज़बरन मन को मजबूर कर देता है शराब पीने के लिए। शराबी समझ रहा होता है कि मैं शराब पीने की अति कर रहा हूँ पर वो छोड़ नहीं पाता । अब मस्तिष्क को उस नशे में रहने की आदत पड़ गयी है । मस्तिष्क स्वयं ही हार्मोंस पैदा करने लगता है और यही कारण है कि मन उस कार्य को करने के लिए मजबूर हो जाता है । कुछ वर्षों के बाद मन बहुत खिन्न रहने लगता है वह चाहता है कि मस्तिष्क का दास न बने , किंतु उसे ज़बरन उसका मस्तिष्क शराब पिलवा रहा है ।
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