एक उम्र के बाद मस्तिष्क की सूक्ष्म कोशिकाओं को ज्ञान की अधिक आवश्यकता होती है, उसका प्रमुख कारण है कि उसे व्यवहार में अधिक जीना पड़ता है, व्यवहार में जीने के लिए शक्ति और ज्ञान दोनों की आवश्यकता पड़ती है किंतु ज्ञान की सर्वाधिक ज़रूरत पड़ती हैं ।
चूँकि वह स्वयं से लड़ते लड़ते इतना थक चुका हुआ होता है कि उसके अंदर शक्तियाँ लगभग बहुत कम हो चुकी हुई होती हैं । उसके स्मृति में अनेक वर्षों से इतने विचार और भावनाएँ भर चुकी हुई होती हैं कि वह मस्तिष्क की शक्तियों को लगभग समाप्त कर चुकी हुई होती हैं ।
चूँकि मस्तिष्क इतने वैचारिक उथल-पुथल से घिरा हुआ होता है कि शरीर को कितना भी मिनरल और विटामिन खिला दो उसका अच्छा प्रभाव मस्तिष्क पर नहीं पड़ता । उसका प्रमुख कारण यही है कि मस्तिष्क विचारों और भावनाओं के इतना दबाव में है कि शरीर के अन्य सभी प्रमुख अंग उसी दबाव में रहने को मजबूर हो जाते हैं । इसीलिए वे सभी अंग अपने स्वभाव में कार्य नहीं कर पाते हैं । उन्हें कितना ही अच्छे से अच्छा भोजन क्यों न दे दिया जाए वे उस भोजन से सभी प्रमुख तत्व को निकाल पाने में असमर्थ होते हैं । यही कारण है कि ऐसे लोगों के बारे में कुछ अनुभवी लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि उन्हें दवा की नहीं अब दुआ की ज़रूरत है ।
मेरे स्वयं के अनुभव में 20 वर्ष के बाद मस्तिष्क का सर्वाधिक प्रिय भोजन ज्ञान ही होना चाहिए , यदि ऐसा नहीं है तो वह मस्तिष्क किसी काम का नहीं । वह सिर्फ़ इन्फ़र्मेशन व भोजन इत्यादि से घिरा रहकर स्वयं को समाप्त कर देगा । वह सदा असंतुष्ट ही रहेगा । ऐसे लोगों की तंत्रिका तंत्र कभी बाई शांत नहीं पाती हैं ।
ज्ञान ही एकमात्र अंतिम विकल्प है जो उसकी तंत्रिका तंत्र को पूर्णतः शांत और स्थिर कर पाता है । चूँकि मस्तिष्क को एक विशेष प्रकार का विचार परेशान करता है तो योगियों ने उसे बिल्कुल उसके विपरीत विचार वाले भोजन को सुझाया । वह ज्ञानात्मक विचार ही है जो अन्य विचारों को समय करके मस्तिष्क को शांत और स्थिर कर देता है ।
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