मस्तिष्क के जल तत्व, जिसे सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड कहा जाता है, का मानसिक शांति और सोचने की प्रक्रिया में विशेष महत्व है। सामान्य सोच प्रक्रिया के दौरान इस जल तत्व में कमी होने लगती है, जिससे मानसिक थकान और अस्थिरता बढ़ सकती है। जब यह द्रव्य कम हो जाता है, तो नाभि से उत्पन्न ऊर्जा का प्रभाव मस्तिष्क पर अधिक होने लगता है, जिससे मानसिक और शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
यह द्रव्य न केवल मस्तिष्क को ठंडा रखता है, बल्कि मानसिक संतुलन को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस द्रव्य का उचित स्तर मस्तिष्क और मन की स्थिरता के लिए आवश्यक है।
नाभि और सहस्रार का संबंध
योग और आयुर्वेद के अनुसार, नाभि और सहस्रार चक्र का आपस में गहरा संबंध है। इन दोनों के बीच ऊर्जा प्रवाह का संतुलन स्वास्थ्य और आत्मिक उन्नति का आधार है।
• नाभि केंद्र (मणिपुर चक्र):
यह शरीर की ऊर्जा और शक्ति का मूल स्रोत है। नाभि केंद्र भौतिक ऊर्जा प्रदान करता है, जो पाचन और निष्कासन जैसी शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। नाभि केंद्र का अग्नि तत्व शरीर को सक्रियता और स्थिरता प्रदान करता है।
• सहस्रार चक्र:
यह ज्ञान और चेतना का शिखर है। यह केंद्र आत्मा के अनुभव और ब्रह्मज्ञान का स्थान है। सहस्रार चक्र जल प्रधान होता है, जिससे यह स्मृतिवान बनता है। स्मृति (मेमोरी) के कारण यह आत्मज्ञान का स्रोत बनता है। जल तत्व की यह विशेषता सहस्रार को स्थिरता और शांति प्रदान करती है।
मेरे अनुभव के अनुसार, नाभि (अग्नि तत्व) और सहस्रार (जल तत्व) के मध्य संबंध संतुलित होने से पूर्ण स्वास्थ्य और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। नाभि का अग्नि तत्व सहस्रार के जल तत्व को सक्रिय करता है, और यह संयोजन ऊर्जा को आत्मिक जागरूकता में परिवर्तित करता है।
आधुनिक विज्ञान का समन्वय
आधुनिक विज्ञान भी नाभि और सहस्रार के बीच संबंध को कुछ अलग दृष्टिकोण से देखता है:
1. न्यूरो-प्लास्टिसिटी:
मस्तिष्क की न्यूरो-प्लास्टिसिटी, अर्थात मस्तिष्क की नए अनुभवों के आधार पर खुद को बदलने की क्षमता, सहस्रार चक्र से जुड़ी है। यह प्रक्रिया ऊर्जा को आत्मिक ज्ञान और नई समझ में बदलने का माध्यम बनाती है।
2. मस्तिष्क-आंत संबंध:
नाभि क्षेत्र और सहस्रार के बीच का संबंध मस्तिष्क और आंतों के आपसी संवाद पर आधारित है। यह गट-ब्रेन कनेक्शन मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को संतुलित रखने में मदद करता है। नाभि केंद्र जहां ऊर्जा और पाचन को नियंत्रित करता है, वहीं सहस्रार मस्तिष्क की चेतना और स्थिरता को संतुलित करता है।
नाभि और सहस्रार के बीच का संबंध केवल शारीरिक प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक स्थिरता और आत्मिक जागरूकता का भी आधार है। योग, आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान के समन्वय से यह स्पष्ट होता है कि नाभि और सहस्रार चक्र के बीच संतुलन बनाए रखना जीवन में स्वास्थ्य, शांति, और आत्मिक उन्नति के लिए अनिवार्य है ।
Copyright - by Yogi Anoop Academy