किसी एक स्थान पर सुखपूर्वक बैठकर अपनी साँसों के धीरे धीरे भरते समय नासिका के अंदर के आबले हिस्से में सेन्सेशन को आभा करने का प्रयास करें । साँसों को थोड़ी देर के लिए अंदर रोकें , इसी को अंतर कुम्भक कहते हैं । उसके बाद आराम से साँसों को बाहर मुँह के द्वारा धीरे धीरे प्रयास रहित अवस्था में छोड़ें । ध्यान दें स्वाँस और प्रस्वाँस की प्रक्रिया में चेहरे और सभी इंद्रियों में किसी भी प्रकार का तनाव नहीं दिखना चाहिए ।
सबसे अधिक ध्यान देने योग बात है कि नासिका से धीरे धीरे साँसों को अंदर लेते हुए नाक के अंदर स्पर्श का अनुभव करना । यदि नाक में अधिक सूखापन है तब उँगली में पानी लेकर नाक के अंदर लगा लें जिससे रूखापन कम हो जाय , और स्वाँस को अंदर लेते समय अंदर के पूरे हिस्से में स्पर्श का अनुभव करें । जितना स्पर्श का सूक्ष्म अनुभव होता जाएगा उतना ही साँस धीरे धीरे और शांत तरीक़े से अंदर जाएगी और साथ साथ चेहरे और इंद्रियों में ढीलापन आता जाएगा ।ध्यान दें इस प्राणायाम में अनुभव पर ज़ोर देना है न कि साँस को अंदर लेते समय गिनती पर ।
अब जब साँस अंदर चली जाय तब उसे 2 से 3 सेकंड के लिए आराम से रोकें, इस रोकने की प्रक्रिया को ही कुम्भक कहते हैं और उसके बाद मुँह से साँस को बिना कोई प्रयत्न के बाहर निकाल कर साँस को बाहर 2 से 3 सेकंड के लिए रोक लें । पुनः नाक से स्वाँस को लेकर मुँह से निकल दें । यह एक चक्र कहलाता है । इस प्राणायाम को कम से 11 मिनट तो अवश्य किया जाना चाहिए ।
नाक के अंदर का अग्र भाग मस्तिष्क के अगले हिस्से को बहुत अधिक शांत करने के साथ साथ दोनों आँखों और साइनस के हिस्से को भी बहुत अधिक प्रभावित करता । चूँकि सबसे अधिक तनाव का स्रोत दोनों आँखे ही होती है , और इनहि आँखों के माध्यम से मस्तिष्क का अगला हिस्सा तनाव ग्रस्त हो जाता है जिससे सिर दर्द और आँखों में दर्द इत्यादि कई लाइलाज रोग होने लगते हैं । । इस प्राणायाम के माध्यम से स्वाँस को नासिका के आबले हिस्से पर स्पर्श करवाया जाता है जिससे मस्तिष्क और आँखों को आसानी से तनाव रहित किया जा सके ।
इसका अभ्यास किसी गुरु के निर्देशन में ही किया जाना चाहिए । 🙏
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