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मसल मेमोरी और तनाव प्रबंधन

1 month ago By Yogi Anoop

मसल मेमोरी और तनाव प्रबंधन: एक संतुलित दृष्टिकोण

      मेरे अनुभव अनुसार इस देह और मस्तिष्क में खिंचाव (सेंपेथिटिक) और ढीला (पैरासेंपेथिटिक) करने की यह दो जन्मजात प्रवृत्ति अनैक्षिक रूप से मौजूद होती है ।  खिंचाव से थकने के बाद यह स्वतः ही खिंचाव रहित अवस्था में जाने के लिए प्रयत्न करती है । जैसे गहरी निद्रा में यह जाती है ।जैसे आँखों की पलकों का उठना (क्रिया) और गिरना (क्रियारहित अवस्था) यह दोनों आनैक्षिक है । यह उसके स्वभाव में निहित है । 

ध्यान दें इसी प्रकार इस देह के प्रत्येक अंग कार्य करते हिय दिखते हैं । और इसी को ध्यान में रखते हुए इस देह और मस्तिष्क का अनुभवकर्ता भी कहीं ना कहीं इस स्वभाव के अनुरूप ही चलता है । वह इसलिए कि अनैक्षिक क्रिया को वह स्वभाव के अनुरूप ही देखता है । जिस घर को वह अनुभव करता है , वह उस घर से अवश्य ही प्रेरित होगा । 

इसी आधार पर जब वह कोई मन के द्वारा क्रिया करता है तब भी उसमें उसी ऐक्षिक और आनैक्षिक क्रिया का सिद्धांत प्रयोग करता है । 

जब वह किसी को अपनी आँखों से एकाग्र होते हुए देखता है तो कुछ पल के बाद यही आँखें उसे अप्रत्यक्ष रूप रूप से यह इंगित करती हैं कि अब पलकों को गिराकर शिथिल कर दो । अर्थात् वह स्वयं को यह प्रशिक्षण देता है कि इसके स्वभाव के अनुरूप ही चलो । अन्यथा यह अंग अधिक समय तक सहयोग ना देगा । 

अंततः यह सिद्ध है कि स्वयं के मन को भी देह के स्वभाव के अनुरूप चलना पड़ता है । अर्थात् खिंचाव और ढीलापन के द्वारा मन को भी स्वयं को प्रशिक्षित करना पड़ता है । 

अब समस्या आती कहाँ से है , इस विषय पर ध्यान देना होगा । चूँकि बचपन से मन को देह में खिंचाव की अधिक मात्रा में ट्रेनिंग करवा दिया जाता है इसलिए उन सभी अंगों की मांसपेशियों में खिंचाव की स्मृति की मात्र अधिक हो जाती है । कहीं ना कहीं उम्र के बढ़ने पर यह खिंचाव स्वभाव के रूप में मांसपेशियों के अंदर बैठ जाता है । वह इसलिए क्योंकि माँसपेशियों में शिथिलता का प्रचुर मात्र में आभाव हो गया है ।  और इसी के बाद रोग का प्रारंभ होता है । 

अब इस परिस्थिति में मन देह के उस स्मृति से प्रसन्न नहीं रह पाता है । प्रसन्नता के आभाव में कुछ वर्षों के बाद सभी मानसिक रोगों का जन्म होना कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रारंभ हो जाता है । 

हमारी प्रमुख समस्या तब अधिक खड़ी हो जाती है जब मांसपेशियों में लगातार तनाव की आदत बन जाने से मन त्रस्त हो उठता है , वह स्वयं को थका हुआ अनुभव करने लगता है । ध्यान दें मन की शक्ति का स्रोत दो स्थान से आता है -एक देह की मांसपेशियों की स्मृति में तनाव और शिथिलता से और दूसरा मन का स्वामी जो उसे चलाता है आत्मा । यदि उसमें ज्ञान आ जाय तो वह मांसपेशियों की स्मृति में हुए बदलाव को ठीक कर सकता है । अर्थात् उस मांसपेशियों के स्वभाव में जो शिथिलता पहले से थी उसे पुनः ज्ञानात्मक अभ्यास से वापस जागृत किया जा सकता है । किंतु इसके लिए ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है । 

थकान के बाद विश्राम प्राप्त करना बहुत सरल है किंतु यह सरल प्राप्ति अधिक दिनों तक नहीं रहती है । ज्ञान के बाद विश्राम की प्राप्ति सदा के लिए रहती है । वह कभी भी छूटती नहीं है । इसी को मैं पूर्ण स्वास्थ्य कहता हूँ । 

दैनिक जीवन में उस तनाव से हटने के लिए मन को किसी अन्य स्थान अथवा अन्य विषय पर केंद्रित कर दिया जाता है जिससे तनाव में रहने वाली मांसपेशी शिथिल हो जाती है । 

यह प्रक्रिया बिल्कुल ऐसी है जैसे आप किसी छोटे जानवर को पकड़ते हैं और वह फड़फड़ाता है। इसी तरह, जब स्वयं के देह की मांसपेशियों को खींचकर रखते हैं, तो वे और अधिक तनावग्रस्त हो जाती हैं। तनाव तभी खत्म होगा जब हम उसे छोड़ने की कला सीखें। उसे सीखने के लिए ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है । ज्ञान के बाद ही अभ्यास करना उत्तम हो सकता है अन्यथा अभ्यास व्यर्थ ही होता है । 

सजगता और तनाव मुक्त रहने की तकनीक; 

सजगता वह स्थिति है, जहां आप अपने शरीर और मन को रियल-टाइम में नियंत्रण में रखते हैं। उदाहरण के लिए, बातचीत के दौरान यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपका जबड़ा, आंखें, माथा, या आवाज तनावग्रस्त न हो। चलते फिरते उस विश्राम को भी अनुभव करें जो पल भर के लिए आता है । 

इस प्रक्रिया में यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि आप कैसे शब्दों और वाक्यों का चयन करते हैं। नियंत्रित और शांत भाषा का प्रयोग सजगता का एक हिस्सा है। सजगता से मांसपेशियों में शिथिलता को बहुत शीघ्रता से प्राप्त किया जा सकता है । तनाव को बढ़ाने की प्रवृत्ति रखते हैं, तो दो प्रमुख तकनीकों को सीखना बहुत आवश्यक होता है:

1.रियल टाइम में तनाव मुक्त होना 

जैसे ही तनाव महसूस हो, तुरंत उसे छोड़ने का प्रयास करें। इसे सांसों की मदद से या किसी सहज गतिविधि के माध्यम से किया जा सकता है।

2.माइंड स्विचिंग और डायवर्जन

मन को एक गतिविधि से दूसरी गतिविधि में स्विच करना सिखाएं,  यह प्रक्रिया आपके मस्तिष्क को राहत देने और तनाव को कम करने में मदद करती है। और साथ साथ किसी ज्ञानात्मक गुरु के सानिध्य में योग प्राणायाम और ध्यान का भी अभ्यास करें । जिससे जीवन की उन रहस्यों का ज्ञान और अनुभव हो जो आपको अभी तक नहीं हुआ ।

ध्यान दें तनाव प्रबंधन के लिए मांसपेशियों में विश्राम की आदत की प्राथमिकता देना अत्यंत ही आवश्यक है । यदि इसे स्वयं के अभ्यास के माध्यम से नहीं दिया जा सका तो किसी वाह्य साधन के द्वारा दिया जाएगा । जैसे आधुनिक विज्ञान में मस्तिष्क को आराम देने के लिए बहुत सी दवाएं दी जाती है । इत्यादि । तनाव की एक सीमा होती है , अधिक तनाव मांसपेशियों एवं रक्त की नलिकाओं की दीवालों को फाड़ देंगीं । 

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