Loading...
...

मोटापा कम करने का उपाय

1 month ago By Yogi Anoop

शरीर अपने फैट और वसा को स्वाभाविक रूप से बर्न करता है

शरीर के पास अपनी वसा (फैट) को बर्न करने की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो अधिक प्रभावी और संतुलित होती है। यह प्रक्रिया तब सबसे बेहतर काम करती है, जब शरीर को उसकी स्वाभाविक क्रिया करने दिया जाए। इसके विपरीत, जब हम इसे अपनी इच्छाशक्ति के बल पर भूखा रखते हैं या अत्यधिक शारीरिक श्रम से दबाव में लाते हैं, तो यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इसे बेहतर समझने के लिए दो दृष्टिकोणों पर विचार करना ज़रूरी है।

पहला दृष्टिकोण: इच्छाशक्ति और ज़बरदस्ती से फैट बर्न करना

यह तरीका तब अपनाया जाता है, जब व्यक्ति अपनी खाने-पीने की आदतों में अचानक बदलाव करता है। व्रत या फास्टिंग करना, खाने के बीच लंबा अंतराल रखना, बहुत कम मात्रा में खाना या अत्यधिक शारीरिक अभ्यास करना इस श्रेणी में आते हैं। इस प्रक्रिया में व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति के बल पर शरीर को भूखा रखता है और उसे अधिक मेहनत के लिए मजबूर करता है।

शुरुआत में यह तरीका काम करता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन इसके गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं। इससे मन पर तनाव का बोझ बढ़ता है, क्योंकि देह स्वाभाविक रूप से कुछ नहीं कर रही होती है। मन हर समय शरीर को नियंत्रित करने की कोशिश करता है, जिससे मानसिक थकावट और तनाव बढ़ता है। लंबे समय तक ऐसा करने से डिप्रेशन और मानसिक कमजोरी के खतरे बढ़ जाते हैं। यह प्रक्रिया इसलिए खतरनाक होती है क्योंकि इसमें शरीर अपनी स्वाभाविक क्षमता का उपयोग नहीं कर पाता। इसके परिणामस्वरूप, कुछ महीनों के बाद व्यक्ति की इच्छाशक्ति टूटने लगती है और खाने की आदतें वापस पुराने ढर्रे पर लौट आती हैं। इस कारण से यह तरीका शरीर को लंबे समय तक स्थिर परिणाम नहीं दे पाता।

दूसरा दृष्टिकोण: रिलैक्सेशन के माध्यम से स्वाभाविक फैट बर्न करना

इस दृष्टिकोण में शरीर को स्वाभाविक रूप से अपनी वसा को बर्न करने का अवसर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में मुख्य ध्यान रिलैक्सेशन पर होता है। जब शरीर और दिमाग गहरी रिलैक्सेशन की अवस्था में होते हैं, तो खाने की इच्छा स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है। इस दौरान यकृत और लिवर अपनी ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने लगते हैं, जिससे बार-बार खाने की आदत में कमी आती है। एक बार खाना खाने के बाद 8 से 12 घंटे तक भूख महसूस नहीं होती। जब खाने के बीच लंबा अंतराल होता है, तो शरीर अपने अंदर जमा वसा (फैट) को ऊर्जा में बदलने लगता है।

यह प्रक्रिया मेडिटेशन और रिलैक्सेशन तकनीकों के माध्यम से और भी प्रभावी हो जाती है। यह न केवल दिमाग को शांत करती है, बल्कि शरीर को स्वाभाविक रूप से अपनी चर्बी जलाने का अवसर भी देती है। इसका एक बड़ा लाभ यह है कि यह मानसिक शांति प्रदान करने के साथ-साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है।

क्या यह तरीका वास्तव में कारगर है?

पुराने समय के योग साधक और ध्यान में पारंगत व्यक्ति इसी तकनीक का पालन करते थे। वे शरीर को भूखा रखने या अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने की बजाय अपनी मानसिक और शारीरिक अवस्था को संतुलित करने पर जोर देते थे। जब मन शांत होता है, तो शरीर के सभी अंग बिना किसी हस्तक्षेप के अपना कार्य करते हैं। लिवर और अन्य अंग अपनी ऊर्जा को पुनर्जीवित करते हैं और शरीर के अंदर जमा वसा को ऊर्जा में बदलने लगते हैं।

इस प्रक्रिया में शरीर स्वाभाविक रूप से अपनी वसा को बर्न करना शुरू कर देता है। दिन में दो बार खाने और 12-15 घंटे के अंतराल से शरीर को स्वाभाविक रूप से वसा को जलाने का समय और अवसर मिलता है। इससे न केवल शरीर पर अतिरिक्त दबाव कम होता है, बल्कि शरीर की अपनी क्षमता का भी विकास होता है।

रिलैक्सेशन आधारित तरीका क्यों बेहतर है?

यह तरीका शरीर को अतिरिक्त दबाव से मुक्त रखता है और उसकी प्राकृतिक क्षमताओं को बढ़ावा देता है। जब शरीर स्वयं अपनी क्षमताओं का उपयोग करता है, तो यह मानसिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर संतुलन बनाए रखता है। जैसे गहरी निद्रा से उठने के बाद मन को सुकून और प्रसन्नता का अनुभव होता है, वैसे ही रिलैक्सेशन के माध्यम से शरीर और मन दोनों में शांति और ऊर्जा का संचार होता है।

यह तरीका पूरी तरह प्राकृतिक और टिकाऊ है, जिससे भविष्य में किसी भी प्रकार की मानसिक विकृति का खतरा नहीं होता। यदि आप अपनी वसा को नियंत्रित करना चाहते हैं, तो जबरदस्ती भूखा रहने या अत्यधिक व्यायाम करने के बजाय रिलैक्सेशन आधारित तकनीकों को अपनाएं। मेडिटेशन और मानसिक शांति के माध्यम से न केवल वसा को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य और प्रसन्नता भी पाई जा सकती है।

Recent Blog

Copyright - by Yogi Anoop Academy