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मन को मशीन की तरह मत बनाओ

4 years ago By Yogi Anoop

जीवन में मन को मकैनिकल मत बनाओ । मन को जितना मकैनिकल बनाते हैं उतना ही मस्तिष्क अपनी शक्ति कम कर देता है । जैसे पूजा, शुरुआत में ये सभी को अच्छा लगता है, क्योंकि ये एक पूरी प्रक्रिया है । प्रक्रिया को पूरी करते-करते मन किसी एक विषय पर एकाग्र हो जाता है और मन-मस्तिष्क को शांति मिल जाती है । किंतु कुछ ही वर्षों में वही पूजा पद्धति अत्यंत उबाऊ लगने लगती है, जो सिर्फ़ काम चलाऊँ मात्र रह जाती है । यहाँ तक पूजा करते-करते मन अन्यत्र घूमता रहता है । थोड़े ही वर्षों में ये खानापूर्ति मात्र रह जाता है । जैसे ही ये खानापूर्ति हुआ मन-मस्तिष्क दोनों का विकास रुक गया , रुक ही नहीं गया बल्कि मन और मस्तिष्क की अपार शक्तियों का तेज़ी से ह्रास होने लगता है । 


और ये पूजा ही नहीं, बल्कि ऑफ़िस में काम करने वाले लोगों में भी होता है। जैसे बैंक में काम करने वाले लोग , वे ऑफ़िस में बैठे बैठे कम्प्यूटर पर ताश खेलते हैं , क्योंकि मन मस्तिष्क मैकिनिकल होता जाता है । कुछ नया करना चाहता है । और मन को जब नयापन नहीं मिलता तब उसका सबसे बड़ा ह्रास होता है ।



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