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मन का रात में ही चंचल होना क्यों ?

1 year ago By Yogi Anoop

मन रात में ही सबसे अधिक चंचल होता है क्योंकि चंद्रमा से उसका गहरा संबंध है । विशेषकरके  पूर्णिमा में जब चंद्रमा धरती के सबसे पास होता है तभी धरती के उस क्षेत्र में तूफ़ान आता है जहां पानी की मात्रा सबसे अधिक होता है । 

उसी प्रकार पूर्णिमा के समय मस्तिष्क में भी तूफ़ान सा उठता है , चूँकि मस्तिष्क में सबसे अधिक पानी है और उसमें कुछ परिवर्तन होता है। उसमें परिवर्तन होने के कारण उसका दुष्प्रभाव मन पर अधिक पड़ता है जिससे मन चंचल हो उठता है । 


     उस समय चंद्रमा का प्रभाव रक्त पर सबसे अधिक देखने को मिलता है और रक्त में हलचल का अर्थ है मस्तिष्क में हलचल । रक्त का सबसे अधिक अंतरंग संबंध मस्तिष्क वि इंद्रियों से ही है । यदि रक्त में किसी भी प्रकार से हलचल होती तो मन और इंद्रियों में परिवर्तन होना स्वाभाविक ही है । 


रक्त अर्थात् लाल रंग । चंद्रमा उस समय लाल रंग का ही होता है । उस समय धरती पर पानी (समुद्र) के स्थान पर उसका दुष्प्रभाव देखा जा सकता है । यहाँ तक कि स्त्रियों के मासिक धर्म का 28 दिन के चक्र का सीधा संबंध चंद्रमा से है । 

उसी प्रकार चंद्रमा का प्रभाव इस देह में भी उन्हीं उन्हीं स्थानों पर अधिक पड़ता पड़ता है जिन स्थानों पर पानी की मात्रा सर्वाधिक होती है । 


चूँकि इस शरीर में मस्तिष्क, फेफड़े और हृदय इत्यादि ही सबसे अधिक जल से प्रभावित क्षेत्र है । मस्तिष्क में ही इंद्रियाँ जुड़ी हुई हैं और वे भी सबसे अधिक पानी से प्रभावित होती हैं । पाँचों इंद्रियों में दो इंद्रियाँ आँखें और जिह्वा तो लगभग जल में ही रहती हैं । और यदि गहराईं से देखो तो यही दोनों इंद्रियाँ रात में सर्वाधिक ऐक्टिव हो जाती हैं । यही दोनों इंद्रियाँ रक्त में भी हलचल पैदा करती हैं साथ साथ रक्त में होने वाली हलचल इन दोनों इंद्रियों पर भी पड़ता है । 


यह व्यावहारिक सत्य है कि चंद्रमा का प्रभाव शरीर और उसके प्रमुख अंगों तथा इंद्रियाँ और मन पर बहुत अधिक पड़ता है, किंतु इससे तो मन का सारा दोष चंद्रमा पर मढ़ देना आसान हो जाएगा । इससे बुद्धि की अपनी शक्ति का कोई भी महत्व नहीं रह जाएगा और मनुष्य की आत्मशक्ति का महत्व समाप्त हो जाएगा । 


इस देह में आत्म शक्ति का सबसे अधिक महत्व रखना चाहिए जो स्वभाव पर नियंत्रण लाने के लिए ज़िम्मेदार होता है । जैसे -

ज़्यादातर लोगों को रात में खाने एवं स्क्रीन देखने का मन करता है और वे देखते भी हैं । उन्हें अपने स्वभाव को यह समझना चाहिए कि उनका मस्तिष्क आख़िर चाहता क्या है । 


ध्यान दें न तो चंद्रमा को हटाया जा सकता है और न ही इस शरीर से एवं इन इंद्रियों से जल की मात्रा को सुखाया जा जा सकता है । यदि इंद्रियों में जल को सुखाना तो छोड़ दी जिये थोड़ा जल की मात्रा को कम ही कर दिया जाएगा तो किसी से बात करना भी संभव ना हो पाएगा , क्योंकि बात करने के लिए भी मुँह में पानी की मात्रा का होना आवश्यक होता है । आज बहुत सारे लोग मुँह के सूखने की समस्या से ग्रसित हैं । यहाँ तक कि आज बहुत सारे लोगों की आँखों का पानी सुख जाता है तो उन्हें एक आई ड्राप दिया जाता है जिससे आँखों में प्रॉपर मूवमेंट हो सके । 


इसका समाधान न ही कोई एस्ट्रोलॉजिकल ढंग से निकाला जा सकता है और ना ही  किसी पत्थर के पहनने पर भी इसका समाधान नहीं निकाल पाएगा । 

समाधान केवल केवल एक ही है ज्ञान और आत्म शक्ति । 


समाधान -

शरीर के मस्तिष्क के क्षेत्र में जहां जल सर्वाधिक है उसमें ऑक्सीजन की मात्र को संतुलित ढंग से डाला जाये । यह तभी संभव है जब वैज्ञानिक ढंग से किसी प्राणायाम के अभ्यास के माध्यम से रक्त के अंदर ऑक्सीजन का संचार करवाया जाये । 

दूसरा समाधान उन उन साधनों को रात में नहीं अपनाना चाहिए जिससे मन और इंद्रियों में बहुत अधिक चंचलता बढ़े , 

जैसे-

रात में टीवी वि किसी भी प्रकार का स्क्रीन नहीं देखना चाहिए । अधिक देर रात में भोजन नहीं करना चाहिए । रात्रि में सोने से पहले प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास अवश्य करना चाहिये । रात्रि काल में 8 बजे के बाद भोजन सदा वर्जित होना चाहिये । रात में प्रोटीन से भरपूर भोजन करना बहुत ही उत्तम है । प्रोटीन युक्त भोजन करने से रात में मीठे के खाने का मन नहीं करेगा । 


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