मस्तिष्क: इंद्रियों का तनाव और रोगों की उत्पत्ति
इच्छानुसार (Voluntary) और अइच्छानुसार (Involuntary) मांसपेशियाँ
मनुष्य की पाँच ज्ञानेंद्रियों में से तीन – आँख, जिह्वा और त्वचा – ऐसी हैं जिनकी मांसपेशियाँ ऐक्षिक (Voluntary) और अनैक्षिक (Involuntary) दोनों प्रकार की होती हैं। विशेष रूप से, आँखों और जिह्वा की मांसपेशियों पर नियंत्रण ठीक वैसे ही है जैसे हाथ और पैरों की मांसपेशियों पर।
वहीं, कानों और नाक (सुगंध) की मांसपेशियों पर हमारा सीधा नियंत्रण नहीं होता। कान की मांसपेशियाँ आंशिक रूप से नियंत्रित की जा सकती हैं, लेकिन यह बहुत सीमित होता है। यही कारण है कि कानों में तनाव बहुत कम देखने को मिलता है और उनके माध्यम से गंभीर बीमारियों का खतरा अपेक्षाकृत कम होता है। यद्यपि कानों में जो भी तनाव देखा जाता है जैसे कानों में निरंतर आवाजें आते रहना इत्यादि ,यह तनाव का परिणाम होती हैं ।
इंद्रियों में तनाव और रोगों की उत्पत्ति
यद्यपि वही इन्द्रियाँ सबसे अधिक तनावग्रस्त होती दिखती हैं जो ऐक्षिक होती हैं । अर्थात् उन इन्द्रियों को इक्षानुसार गतिशील करने में समर्थ होते हैं । जैसे आँखें और जिह्वा । इन दोनों इन्द्रियों पर सबसे अधिक मन की इक्षा चलती है । इन्हें मनुष्य खुला छोड़ देता है । और इन्हीं से आध्यात्मिक एयर मानसिक रोगों के आने की संभावनाएं सबसे अधिक होती हैं । जैसे :
• आँखों का तनाव: आँखों के माध्यम से अत्यधिक उत्तेजनात्मक दृश्य आँखों की मांसपेशियों के थकान से मस्तिष्क में थकान, स्क्रीन के अनावश्यक उपयोग और मानसिक रूप से थकाने वाले कार्यों के कारण आँखों की मांसपेशियाँ लगातार तनाव में रहती हैं। परिणाम यह होता है कि मन दृश्य बनने के आदमी हो जाता है । यहाँ तक सोते समय भी मन आँखों का उपयोग करता तहता है दृश्य बनाने में । इसका सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है और सिरदर्द, माइग्रेन, अनिद्रा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
• जिह्वा का तनाव: स्वाद की लालसा के कारण बिना जरूरत से अधिक भोजन करते हैं, जिससे पाचन तंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। यह सिर्फ शारीरिक नहीं, मानसिक तनाव भी उत्पन्न करता है, क्योंकि बार-बार भोजन करने की आदतें तृप्ति और असंतोष की मनोवैज्ञानिक स्थिति को प्रभावित करती हैं।
मस्तिष्क पर इंद्रियों के तनाव का प्रभाव
मेरे अनुसंधान और प्रयोगों से यह स्पष्ट हुआ है कि इन दोनों इंद्रियों (आँख और जिह्वा) के द्वारा मस्तिष्क पर सर्वाधिक दबाव और तनाव दिया जाता है । यह तनाव और दबाव मन में एक लत के रूप में घर कर जाती है । और इनके माध्यम से ज्ञानेन्द्रिय ही बल्कि कर्मेन्द्रियाँ भी तनाव में आ चुकी हुई होती हैं । जहाँ पर यह भी ध्यान देना होगा कि ज्ञानेन्द्रिय मस्तिष्क और देह के सूक्ष्म अंगों पर दुष्प्रभाव छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ती और कर्मेंद्रियाँ अपना दुष्प्रभाव शरीर के बड़े गाँव में अपना दुष्प्रभाव छोड़ती हैं । ।
इसी के विपरीत हठ योग इन इन्द्रियों में शिथिलता लाकर शरीर एवं मस्तिष्क के सूक्ष्म हिस्सों को प्रतिक्रिया से बचा लेती हैं । यहाँ पर एक बात और समझना चाहिए कि वे मांसपेशियाँ स्वतः ही स्वयं की हीलिंग करने लग जाती जब इन्द्रियों में शिथिलता आती है तब ।
मैं इसे एक स्वाभाविक उपचार के रूप में देखता हूँ । यद्यपि इन्द्रियों को शिथिल करना व्यक्ति के कार्य में शामिल होना चाहिए , उसके बाद वही शिथिलता से पूरा देह तंत्र स्वयं को हील करने में समर्थ हो जाता है ।
गहरी नींद और ध्यान की भूमिका
स्वस्थ शरीर के लिए मैं उसी अवस्था को उत्पन्न करने का प्रयास करता हूँ जो गहरी नींद में मस्तिष्क और शरीर के बीच बनती है। यदि गहराई से देखा जाए तो, गहरी नींद में हमारा मस्तिष्क ऐक्षिक मांसपेशियों से संबंध तोड़ लेता है, केवल अनैक्षिक मांसपेशियाँ कार्य करती हैं। मृत्यु में तो ऐक्षिक और अनैक्षिक दोनों प्रकार के संबंध समाप्त हो जाते हैं, किंतु गहरी नींद में केवल ऐक्षिक संबंध कुछ समय के लिए स्थगित हो जाता है।
ध्यान और योग के माध्यम से बार बार बिना निद्रा लिए इस गहन अवस्था को प्राप्त कर लिया जाता है । जैसे ही यह अवस्था प्राप्त होती है वैसे ही मस्तिष्क का पूरा तंत्र स्वयं को स्वयं के द्वारा हील करने लगता है । इससे वह स्वयं के अंदर जोतने भी असहजताएँ होती हैं , उन्हें सहज और स्वाभाविक बनाने में मदद करने लग जाती हैं । इसी से समस्त मानसिक और शारीरिक बीमारियों से बचाव संभव हो जाता है।
मस्तिष्क को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाला तत्व
मेरे शोध के अनुसार, मस्तिष्क को सबसे अधिक नुकसान तब होता है जब उसकी मांसपेशियों को अनावश्यक तनाव दिया जाता है। यह तनाव मुख्यतः इच्छाओं (Desires) के कारण उत्पन्न होता है। इच्छाएँ जितनी अधिक होती हैं, मस्तिष्क उतना ही अधिक तनावग्रस्त हो जाता है।
तनाव से मुक्ति का उपाय
यदि इच्छाओं से मांसपेशियों में तनाव उत्पन्न होता है, तो इच्छाओं के सही नियंत्रण से उस तनाव को समाप्त भी किया जा सकता है। इसके लिए सबसे अधिक ध्यान आँखों और जिह्वा की मांसपेशियों पर देना होगा, क्योंकि यही दोनों इंद्रियाँ मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं।
इसलिए, यदि हम अपने अभ्यास में इन इंद्रियों की मांसपेशियों को शिथिल करने और नियंत्रित करने की कला सीख लें, तो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव है।
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