आज के समय में अधिकतर लोगों में धीरे-धीरे मांसपेशियों को तनाव देने की आदत (लत) बन जाती है। यह लत प्रायः अनजाने में विकसित होती है। दैनिक क्रियाकलापों में मस्तिष्क, इन्द्रियों और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तनाव की आदत अनायास ही समाविष्ट हो जाती है। यह तनाव केवल शरीर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि मस्तिष्क और इन्द्रियों को भी प्रभावित करता है।
यदि गहराई से देखें तो, सबसे पहले मन के माध्यम से मस्तिष्क और इन्द्रियों में खिंचाव की प्रवृत्ति जन्म लेती है, और इसके बाद यह शरीर के अन्य अंगों और मांसपेशियों में स्थानांतरित हो जाती है। धीरे-धीरे यह आदत इतनी स्वाभाविक हो जाती है कि मन और शरीर एक निरंतर तनाव की स्थिति में रहने लगते हैं।
प्रारंभिक अवस्था में, मांसपेशियों में तनाव डालने से लोग अपने भीतर ऊर्जा और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि मस्तिष्क तनाव के दौरान कुछ विशेष हार्मोन स्रावित करता है, जिससे क्षणिक स्फूर्ति और उत्साह का अनुभव होता है।
आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि मांसपेशियों को खींचने या तनाव देने से शरीर में कुछ सकारात्मक हार्मोन (Positive Hormones) स्रावित होते हैं। ये हार्मोन शरीर और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। लेकिन जब यह तनाव दैनिक जीवन की आदत बन जाता है, तो यह एक विकृति का रूप ले लेता है।
तनाव की यही आदत धीरे-धीरे भविष्य में शरीर और मस्तिष्क पर सदा के लिए हावी हो जाती है। ध्यान दें दैनिक जीवन के मानसिक तनाव इस शारीरिक खिंचाव को और अधिक बढ़ा देते हैं। इसी के विपरीत शारीरिक खिंचाव की लत व आदत दानिक जीवन में हो रहे मानसिक तनाव को और भड़का देता है । परिणामस्वरूप, व्यक्ति शांत रहने के बजाय और ही अशांत हो जाता है । कई बार यह देखा गया है कि ऐसे व्यक्तित्व बिना किसी कारण बहस, झगड़े या अन्य तनावपूर्ण गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। उनका मन मस्तिष्क इस तनाव में ही शांत होना महसूस करने लगता है ।
तनाव का व्यापक प्रभाव
यह तनाव केवल मांसपेशियों तक सीमित नहीं रहता। यह हमारी इन्द्रियों—आंख, कान, नाक और त्वचा को भी प्रभावित करता है। यही नहीं उनका यकृत व लिवर भी तनावग्रस्त हो सकता है । इसके पीछे के कारण में यह देखा गया है कि इस प्रकार के लोगों को तनाव व दर्द पैदा करने में ख़ुशी प्राप्त होने लगती है । जैसे इस पार्कर के लोगों में टैटू व त्वचा पर गोदवाने वाला दर्द का छा लगना , दूसरों से स्वयं को पिटवाने में अच्छा लगना , सेक्स के समय स्वयं को शारीरिक रूप पीटना व पिटवाना इत्यादि अनेकों ऐसे उदाहरण के पीछे का कारण मुझे यही दिखता है । यहाँ तक कि इसके पीछे के कारण में मैं उन लोगों को भी सम्मिलित करता हूँ जो बाते करते हुए बीच बींच में गालियों का बहुत उपयोग करते हैं । जो बातें करते हुए मुँह में कुछ रखे हुए रहते हैं , जैसे पान, सुपारी, चिंगम इत्यादि ।
तनाव की लत से उत्पन्न कुछ प्रमुख समस्याएं
मांसपेशियों में तनाव की लत कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकती है:
. नींद की कमी (स्लीप डिसऑर्डर) ।
• उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) का असंतुलन ।
• शारीरिक थकान और मानसिक असंतुलन का हमेशा बने रहना ।
• कई अन्य बीमारियों की संभावना बढ़ सकती है , जैसे स्मृति का धीरे धीरे कम होते जाना व भूलने की बीमारी । माइग्रेन , इत्यादि अनेकों मनोरोगों की संभावनाएं प्रबल रूप से बढ़ जाती हैं ।
• पेट में हमेशा तनाव का बने रहना । कब्ज़ का भी बने रहना ।
• सिर में भारीपन , भय, डकार, छाती में भारीपन का हमेशा बने रहना इत्यादि ।
ध्यान दें इन समस्याओं के निरंतर बने रहने से मस्तिष्क से संबंधित अनेकों गहरे रोगों के होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं इसलिए इन तानों से बचने की आवश्यकता है । ध्यान दें इसमें से कई ऐसी समस्याएं हैं जो रोगों में चिह्नित नहीं हैं किंतु व्यक्ति को किसी चिह्नित रोगों से कहीं अधिक मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ देती हैं ।
समाधान: मांसपेशियों को आराम देना सीखें
मांसपेशियों को तनाव देने की आदत से छुटकारा पाने के लिए, यह आवश्यक है कि आप व्यायाम, योग, प्राणायाम, ध्यान तथा दैनिक गतिविधियों के दौरान उन्हें आराम देना सीखें। शिथिलता (रिलैक्सेशन) का अभ्यास इस आदत को दूर करने में पूर्ण सहायक हो सकता है। ध्यान दें जैसे दर्द या तनाव को समाप्त करने के लिए किसी अन्य तनाव की नहीं बल्कि शिथिलता का अभ्यास आवश्यक होता है वैसे ही विचारों को समाप्त करने के लिए अविचार की आवश्यकता होती है । इसके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं हो सकता ।
मांसपेशियों की शिथिलता के लिए तकनीकें
मेरी योग-पद्धति में, योग और प्राणायाम के दौरान शरीर और इन्द्रियों को पूरी तरह से शिथिल करना अनिवार्य माना जाता है। यदि अभ्यास के दौरान मस्तिष्क और मांसपेशियों में शिथिलता का अनुभव नहीं होता, तो मैं इसे प्रभावी व्यायाम नहीं मानता। इसके लिए आप निम्नलिखित तकनीकों को अपनाएं:
1.धीमी गति से आसन का अभ्यास करें
किसी भी आसन को करते समय जल्दबाजी न करें। आसन का अर्थ ही है स्थिरता । किसी भी आसन (पॉस्चर) के अभ्यास के माध्यम आसन (स्थिरता) को प्राप्त करना उद्देश्य है । प्रत्येक मुद्रा को धीरे-धीरे और नियंत्रित गति से करें। मांसपेशियों में उत्पन्न होने वाली संवेदनाओं को अनुभव करने का प्रयत्न करें ।
2.सांस लेने की तकनीक (प्राणायाम)
अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें। सांसों को जबरन नियंत्रित करने के बजाय उनके प्राकृतिक प्रवाह को समझें और अनुभव करें। उस सांस की प्राकृतिक प्रवाह ही मस्तिष्क को सर्वाधिक शती और ऊर्जा देती है ।
3.मांसपेशियों को विश्राम दें
रीढ़, कमर, और छाती तथा रिब की मांसपेशियों पर विशेष ध्यान दें। तनाव को धीरे-धीरे दूर करें और गहरी विश्रांति का अनुभव करें।
4.धीमी और सतर्कता के साथ चलना (Slow Walk)
प्रतिदिन 40 मिनट तक धीमी गति और सतर्कता के साथ से टहलें। यह न केवल मांसपेशियों को आराम देता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करता है। साथ साथ देह के सभी अंगों को जैसे प्रमुख रूप से लिवर को आराम देता है ।
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