Loading...
...

माँसपेशियों की हीलिंग

8 months ago By Yogi Anoop

एक माँसपेशी दूसरे माँसपेशी को कैसे हील करती है 

यह शवासन & योगनिद्रा टीचर ट्रेनिंग कोर्स का हिस्सा है ।(Teacher Training Course

एक माँसपेशी दूसरी माँसपेशी को कैसे ठीक करती है , वह भी बिना किसी तनाव दिये । इसी प्रकार एक अणु व परमाणु दूसरे अणु और परमाणु को आकर्षित व हील करता है । इसी तरह एक विचार दूसरे विचार को आकर्षित करता है । कहने का मूल अर्थ है कि यही आकर्षण उनके मध्य संबंध बनाने में कारगर सिद्ध होती है । यही सिद्धांत इस देह के सभी अंगों पर लागू होता है । मस्तिष्क की एक विशेष माँसपेशी देह के एक विशेष माँसपेशी को आकर्षित करता है । इसी के विपरीत देह का वह विशेष अंग मस्तिष्क के विशेष भाग को भी प्रभावित करता हुआ मिलता है । 

इसीलिए जब किसी व्यक्ति को किसी एक विशेष शारीरिक अभ्यास से गुज़ारा जाता है तो तो उसका प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता हुआ दिखता है और मस्तिष्क का अभ्यास देह के अंगों पर भी दिखता है । 

किंतु यहाँ पर मेरा उद्देश्य उन माँसपेशियों को बिना क्रियान्वित किये अन्य माँसपेशियों को हील करने से है । जैसे शवासन और योग निद्रा में होता है । ये दोनों एक ऐसे अभ्यास हैं जिसमें बिना क्रिया के देह के अंगों व माँसपेशियों के हिस्से को बहुत अच्छी तरह से प्रभावित किया जाता है । वह भी सिर्फ़ और सिर्फ़ अनुभव के द्वारा । एक माँसपेशी को दूसरे माँसपेशी के साथ जोड़ने में बेहतरी करने लगती है ।  ध्यान दें यहाँ पर हम बिना किसी प्रयास के माँसपेशियों के मध्य समन्वय स्थापित करते हैं । मैं इसे हीलिंग का सबसे अच्छा तरीक़ा मानता हूँ । 

जब एक माँसपेशी दूसरी माँसपेशियों को बिना किसी भी प्रकार के तनाव दिये उसे अनुभव करना प्रारंभ करनी शुरू करती है तब उसी समय वह अपनी हीलिंग शुरू कर देती हैं । देह के अंग दो तरह से अपने स्वयं की  हीलिंग करते हैं -एक देह को भुला देने से , दूसरा देह को अनुभव कर लेने से  । योग निद्रा और शवासन के अभ्यास में देह को अनुभव किया जाता है । देह जैसे है वैसे ही उसे अनुभव कर लेना हीलिंग का सबसे बेहतर तरीक़ा है , ऐसा मेरा अनुभव है  । मैं तो कहता हूँ कि उसी क्षण उसकी हीलिंग शुरू हो जाती है । इस अभ्यास में एक माँसपेशी दूसरे मांसपेशियों को अनुभव करते हुए स्वयं को हील करती हुई दिखती है । 

जैसे आँखों की माँसपेशियाँ मस्तिष्क के विशेष हिस्से की और मस्तिष्क, आँखों के एक विशेष हिस्से की माँसपेशी को ठीक कर रहा होता है । हर प्रमुख माँसपेशियाँ एक दूसरे को ठीक कर रही होती हैं । उधर मस्तिष्क का एक विशेष हिस्सा आँतों को ठीक कर रहा होता है । वह भी बिना किसी तनाव दिये और आँतें मस्तिष्क को हील कर रही होती हैं । वो भी सिर्फ़ अनुभव करके ।  जब सुबह सुबह उठते ही पेट साफ़ हो जाता है तब वही आँतें मस्तिष्क को ख़ालीपन का अनुभव करवा रही होती हैं । कितना सुंदर संबंध है एक दूसरे माँसपेशियों का । 

इसी को मैं देह की आदर्श सामाजिक व्यवस्था कहता हूँ । यदि व्यवस्था ऐसी ही रहती है तब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य है अन्यथा उसे रोग कहते हैं । इसका अर्थ है कि रोग के दौरान माँसपेशियाँ एक दूसरे के सहायक नहीं होती हैं । जो माँसपेशियाँ टूट रही हैं , जो अणु परमाणु टूट रहे हैं उनको कोई अन्य सहायता नहीं दे रहा है इसीलिए भविष्य में रोग होना निश्चित ही है । 

मेरी कोशिश रहती है कि शवासन और योग निद्रा के माध्यम से इन्हें एक दूसरे के सहायक बनाया जाये और न सिर्फ़ दैहिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर लिया जाये । बिना किसी तनाव के अंतर्मन अपने मस्तिष्क की भिन्न भिन्न माँसपेशियों के माध्यम से देह के लगभग सभी अन्य माँसपेशियों तक पहुँचने में कामयाब हो जाता है और उसे हील भी कर देता है ।

🙏

Recent Blog

Copyright - by Yogi Anoop Academy