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मानसिक बोझ एक रोग है

3 years ago By Yogi Anoop

मानसिक बोझ एक बहुत बड़ी बीमारी है (Mental Burden)

जो हमारी आवश्यकता है , need है उसे हम अपना मेंटल बर्डेन मानते हैं । जो वास्तव में मेंटल बर्डेन है उसे हम अपनी मूल आवश्यकता बना लेते हैं । 

जब भी अपने स्टूडेंट से मैं बात करता हूँ तो उसके कुछ कहते हैं कि समय न मिलने से योग , walk या अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए समय नहीं मिल पाया । 

कुछ लोग तो इतना भी महान है कि वे पानी भी पीना भूल जाते है , और उन्हें ये दूसरों से कहने में गर्व महशश होता है । कि मुझे तो पानी पीने का भी समय नहीं । 

मुझे ये नहीं समझ नहीं आता  कि विश्व के सबसे  अधिक अमीर लोग पानी पीते भी होगे या कुछ और । 

कुछ लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ भोजन पर ही टिके है । उन्हें और अन्य भोजन से आनंद की कल्पना ही नहीं है । पानी पीने से , गहरी साँस लेने से भी आनंद आता है । एक्सर्सायज़ करने से आनंद आता है , उन्हें पता ही नहीं । आवश्यकताओं को घटाया नहीं जा सकता , केवल इक्षाओं को घटाया जाता है । 


      इस शरीर के ऊपर रखे शिर को थोड़ी हटा सकते हो , शिर बोझ नहीं है , बोझ तो वो है जो सिर के ऊपर रखा है । मन को थोड़े ही हटा सकते हो , मन के अंदर जो भरे हुए हो उसे हटाना है , पर नहीं मन को ख़त्म करके मानेगे । हटाना है तो उसे हटाओ । लेकिन नहीं । जैसे - भोजन , पानी , साँस ,नींद  और इन सभी को बेहतर करने के लिए कुछ योगिक क्रियायें , walk या कुछ और ऐक्टिविटी को क़तई नहीं घटाया जा सकता है । ये आपकी मूल आवश्यकता हैं ।


    अधिकतर बीमार व्यक्ति मुझसे पूछते हैं अब तो ठीक हो गया हूँ , क्या अभी भी योग  प्राणायाम जीवन भर करना पड़ेगा ? 

मुझे दुःख होता है उनकी समझ पर । अंदर से सोचता हूँ कि ये बीमार ही रहते तो ठीक रहता , कम से कम अपनी दिनचर्या तो ठीक रखते । 

 जो भी क्रियायें भोजन पानी नींद और साँसों को बेहतर कर  सके उसको आप हटाने की बात नहीं , आप चिनमात्र घटा भी नहीं सकते , 

 

    साँसों को बेहतर करने के लिए क्या आप प्राणायाम नहीं कर सकते , आपके छाती की आवश्यकता भला  क्या है ?

 साँसो को स्वाभाविक रूप में अंदर भरना  या inhalaer लेना । पर नहीं inhalaer लेना आपको  सरल  दिखता है । 


इन्हेलर आपको सरल और अधिक महत्वपूर्ण दिखता है , वो इसलिए कि पैसे से ख़रीदा जाता है । उसका इसीलिए महत्व है । 

वो साँस जो इस पूरे वातावरण में मौजूद है , बस थोड़ी मेहनत  करने से अंदर आ जाएगी । किंतु नहीं इन्हेलर ठीक है । 

पानी और भोजन को बेहतर तरीक़े से पचने के लिए क्या आप कुछ घंटे भर के लिए शरीर का अभ्यास नहीं कर सकते । 

नींद को बेहतर करने के लिए क्या आप ध्यान नहीं कर सकते ,

   

    ये सभी आपके बर्डेन नहीं हैं , ये सभी आपकी आवश्यकताएँ हैं । नींद में सबसे अधिक क्या  ज़रूरत होती है , 6 -7 घंटे के लिए पूरी दुनिया से मुक्त रहना  किंतु आप ध्यान व प्राणायाम करके नींद नहीं चाहते हैं , आप दवा लेकर ही नींद लेते हैं , क्योंकि वो आसान दिखता है , आसान है नहीं ।  

जो खाना खाते है उसको पचाने के लिए पचाने की गोली लेंगे या थोड़ा वॉक करेंगे । पर नहीं हम पचाने के लिए दवा लेना अधिक पसंद करते है । 

और ध्यान दें इन्ही सभी चीज़ों को बर्डेन मानते हैं किंतु दवा लेना बर्डेन नहीं मानते 


बर्डेन भला क्या है ? जो आपने अपनी आँतों में मल इकट्ठा किए हो क्या वह बर्डेन नहीं है । pregnant विमन की तरह बड़ा भारी पेट लिए घूमते रहते हैं और यह कहते फिरते रहते हैं कि त्याग कैसे किया जाय । मल त्याग तो हो नहीं पा रहा है इक्षा का त्याग कैसे हो पाएगा ! 

धार्मिक लोग भी महान हैं , बर्डेन दिमाग़ के अंदर है और सिर डुबोया जा रहा गंगा जी के अंदर । उन्हें पता ही नहीं कि व्यवहार से वो बर्डेन जाएगा किंतु नहीं गंगा जी में सिर को डुबो कर ही मानेगे । रोज़ घंटों घंटों प्रार्थना किए जा रहे हैं । 


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