सामान्यतः शरीर की मांसपेशियों की ट्रेनिंग को माइंड की ट्रेनिंग समझ बैठते हैं । यद्यपि यह सत्य है कि मांसपेशियों के अभ्यास से मस्तिष्क का अभ्यास होता है और मन प्रफुल्लित रहता है और उसका कार्य में मन लगता है किंतु इसे माइंड की ट्रेनिंग कहना ग़लत है ।
मेरे अपने अनुभव में माइंड की ट्रेनिंग का अर्थ है कि जो भी विषय व विचार इंद्रियों से मन के पास अंदर आ रहे हों उन्हें वह हैंडल कैसे करता है । अर्थात् अंतरतम में चल रहे विचारों को कैसे संयमित करता है । किंतु आधुनिक काल में मांसपेशियों की ट्रेनिंग को माइंड की ट्रेनिंग समझने की बहुत भूल हो रही है । मांसपेशियों की ट्रेनिंग में शरीर डोमिनेंट पार्ट होता है , जैसे पहलवान या बॉक्सर इत्यादि । इन सभी लोगों में शरीर की मांसपेशियों का अभ्यास करवाया जाता है । यदि इन सभी लोगों को के स्वभाव को देखा जाये तो ये बहुत ही हाइपर दिखेंगे । बहुत अधिक मांसपेशियों का अभ्यास मन की बेचैनी को बढ़ देता है ।
मांसपेशियों की ट्रेनिंग का अर्थ -
इसमें मांसपेशियों के अभ्यास से मन को को ख़ुशी होती है । मन को शांति मिलती है ।
मांसपेशियों के अभ्यास शरीर के प्रमुख अंगों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है जिससे मन मस्तिष्क को अच्छा अनुभव होता है । किंतु साथ साथ यहाँ पर यह भी समझना आवश्यक है कि यहाँ मन शरीर के अभ्यास से ख़ुशी ले रहा है ।
मन जब तह शरीर से ख़ुशी ग्रहण कर रहा है तब तक तो ठीक है किंतु जैसे ही मन शरीर की मांसपेशियों का इतना अधिक अभ्यास करवा देता है जिससे माँशपेशियाँ स्वयं ही मन को चलाने लगती हैं । जीतने भी पहलवान वि बॉक्सर इत्यादि लोग होते हैं , इन्हें कुछ वर्षों के बाद शरीर की मांसपेशियों के दर्द का सामना करना पड़ता है ।
ध्यान दें यहाँ पर मेरा यह कहने का अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि शारीरिक अभ्यास नहीं किया जाये । मन मस्तिष्क पर मांसपेशियों के अभ्यास का सात्विक प्रभाव पड़ता है । किंतु शारीरिक अभ्यास में मन का केंद्र विचारों से हटकर शरीर की मांसपेशियों तक ही केंद्रित हो जाता है । उसकी मांसपेशियों के निर्माण पर केंद्रित हो जाता है । इससे उसके मन की ट्रेनिंग नहीं हो पाती है ।
मेरे अपने स्वयं के अनुभव में मांसपेशियों के अभ्यास में अति करने से मन की दशा बहुत ही दयनीय हो जाती है । इसीलिए योग विज्ञान में बहुत अधिक श्रम करने की मनाही है ।
यह मनुष्य मन और इंद्रियों का इस्तेमाल दिन भर करता है इसलिए उसे सबसे अधिक विचारों को नियमित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए । जब मन विचारों को हैंडल करना सीखता है तब मन स्वयं की ट्रेनिंग करता है । जब मन वाह्य समस्याओं का निराकरण अपने सिद्धांतों व चतुराई से करता है तब वह स्वयं का इस्तेमाल करता है । इससे उसके मन का विकास होता है । उसमें परिस्थितियों से सामना करने की शक्ति आती है । जब मन स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए विचारों को नियमित करता है तब यह उत्तम अभ्यास माना जाता है किंतु जब मन स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए शरीर की मांसपेशियों का इस्तेमाल करता है तब अच्छा है किंतु बहुत ज्ञानात्मक नहीं है । इसे मैं बहुत श्रेष्ठ नहीं कह सकता हूँ ।
मैंने यह भी देखा है कि मांसपेशियों के बहुत अधिक अभ्यास से मन की बेचैनी बढ़ जाती है , इसीलिए बहुत सारे शारीरिक अभ्यास में अति करने वाले लोग ड्रग लेते हुए पाए जाते हैं । वे उस बैचैनी को ख़त्म करने के लिए ड्रग लेते हैं । ड्रग से मन और मस्तिष्क को सुन्न करने की कोशिश करते हैं और उससे मन को शरीर के अनावश्यक दर्द का अनुभव नहीं होता है ।
मेरे अनुभव में शरीर की मांसपेशियों का अभ्यास उतना ही उचित जीतने में मस्तिष्क के अंदर नियमित रूप से रक्त एवं प्राण का संचार होता रहे । शरीर के अंग नियमित रूप से रहें और मन के द्वारा दिये गये गये कष्टों को हैंडल कर लें ।
यदि माइंड की ट्रेनिंग की जा रही है तब मन स्वतः ही शरीर के अंगों पर अधिक प्रतिक्रिया नहीं देगा ।
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