चिकित्सीय दृष्टि से प्राणायाम का प्रारंभिक अभ्यास
मैं चिकित्सीय दृष्टि से दैहिक और मानसिक रोगियों को प्राथमिक तौर पर सीधे बैठकर प्राणायाम करने की सलाह नहीं देता। इसका कारण यह है कि बैठने की अवस्था में रीढ़ की हड्डी पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे मन और मस्तिष्क को उस दबाव और दर्द को सहन करना पड़ता है। इस स्थिति में व्यक्ति साँसों के अनुभव पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता और शरीर की मांसपेशियों व इन्द्रियों को ढीला करने के बजाय तनाव उत्पन्न कर लेता है।
रीढ़ और बैठने की सीमा
यदि रीढ़ पर्याप्त मजबूत नहीं है, तो लंबे समय तक बैठने से दर्द की समस्या हो सकती है। ऐसे में, लेटकर प्राणायाम करना एक बेहतर विकल्प है, विशेष रूप से उनके लिए, जिनकी शारीरिक संरचना या स्वास्थ्य सीधे बैठने की अनुमति नहीं देता।
पारंपरिक दृष्टिकोण और आधुनिक प्रयोग
पारंपरिक रूप से प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास बैठकर करने की सलाह दी जाती है। किंतु मेरे अनुभव में, जिन रोगियों का तनाव स्तर मस्तिष्क और रीढ़ तक गहराई से पहुँच चुका है, उनके लिए लेटकर प्राणायाम अधिक प्रभावी साबित हुआ है। इस विधि से रोगियों ने अल्प समय में ही तीव्र लाभ प्राप्त किया है।
पीठ टिकाकर प्राणायाम
कुछ विशेष बीमारियों के लिए, जैसे मांसपेशियों की कमजोरी या तनाव, पीठ को जमीन पर टिकाकर प्राणायाम करना उपयुक्त होता है। यह विधि शरीर को विश्राम देती है और प्रारंभिक स्तर पर साँसों की गति को तनावरहित करने में बहुत मदद करती है । जबकि बैठकर प्राणायाम करने पर साँसों की गति में अस्थिरता बहुत देखी जाती है । इसीलिए प्रारंभिक स्तर पर मैं लेटकर ही प्राणायाम की सलाह देता हूँ ।
पित्त प्रधान व्यक्तियों और वायुरोगियों के लिए समाधान क्षेत्र में लेटकर प्राणायाम की तकनीक अत्यंत प्रभावी रही है। बैठकर प्राणायाम करना उनके लिए प्रारंभ में कठिन हो सकता है, इसीलिए मैंने यह विधि विकसित की। विशेषकर कुछ महीनों के अभ्यास के बाद 30 डिग्री पर लेटकर प्राणायाम का लाभ अत्यंत ही लाभकारी रहा । जैसे खर्राटों और मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं जैसे रोगों में अत्यधिक प्रभावी पाई गई है।
लेटकर प्राणायाम के लाभ
1. रीढ़ पर दबाव कम: लेटकर प्राणायाम करने से रीढ़ पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं पड़ता।
2. मस्तिष्क विश्राम की अवस्था में: रीढ़ पर तनाव न होने से मस्तिष्क विश्राम की स्थिति में रहता है, और रक्त का प्रवाह सहजता से मस्तिष्क तक पहुँचता है।
3. मांसपेशियों को विश्राम: इस विधि से मांसपेशियाँ जल्दी आराम की स्थिति में पहुँचती हैं।
4. हीलिंग प्रक्रिया में मदद: प्राणायाम के दौरान शरीर और मस्तिष्क में रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह सुचारू रूप से होता है, जिससे तीव्र गति से हीलिंग होती है।
5. इन्द्रियों को विश्राम: रीढ़ की सहज स्थिति के कारण इन्द्रियाँ शांत हो जाती हैं, और प्राणायाम का अनुभव गहरा होता है।
6. मन की शून्यता: यह विधि मन को शून्यता की अवस्था तक पहुँचाने में सहायक होती है।
7. गहरी नींद में सुधार: इस प्रकार के प्राणायाम से गहरी नींद की गुणवत्ता में सुधार देखा गया है।
लेटकर प्राणायाम के नुकसान
1. अनुभव की गहराई का अभाव: लेटकर किए गए प्राणायाम में अनुभव की गहराई का विकास अपेक्षाकृत धीमा होता है।
2. नींद की प्रवृत्ति: साधक या रोगी इस अभ्यास के दौरान नींद में चले जाते हैं, जिससे अभ्यास में बाधा उत्पन्न होती है।
3. आध्यात्मिक उन्नति में बाधा: कई बार रोगी इसे आध्यात्मिक अभ्यास के बजाय केवल विश्राम का साधन मानने लगते हैं।
4. आलस्य की संभावना: लेटकर प्राणायाम करने से कुछ लोगों में आलस्य बढ़ने की प्रवृत्ति देखी गई है।
प्राणायाम की सही दिशा
शुरुआती स्तर पर लेटकर प्राणायाम करना अधिक उपयोगी और प्रभावी होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति अपने मन और शरीर के भीतर के अनुभवों को गहराई से समझने लगता है, वैसे-वैसे उसकी रीढ़ मजबूत होती जाती है। इसके बाद, प्राणायाम और ध्यान को बैठकर करना अधिक लाभकारी होता है।
यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि प्राणायाम के दौरान किसी विशेष शक्ति, मुद्रा, या ऊर्जा की कल्पना पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, मैंने साधकों को केवल अनुभव पर केंद्रित रहने की शिक्षा दी है। लेटकर प्राणायाम की तकनीक विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो शारीरिक या मानसिक कारणों से बैठकर प्राणायाम करने में सक्षम नहीं हैं। यह विधि शरीर और मस्तिष्क को विश्राम देते हुए, साँसों के अनुभव को गहराई से महसूस करने का अवसर प्रदान करती है। हालाँकि, दीर्घकालीन अभ्यास के लिए, प्राणायाम को बैठकर करना सर्वोत्तम है, क्योंकि यह अनुभव की गहराई और मानसिक एकाग्रता को बढ़ाता है।
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