ज़्यादातर माँसाहारी व्यक्ति उन जानवरों का ही माँस खाते हैं जो स्वयं में मांसाहारी नहीं होते हैं । और ऐसी धारणा प्रचलित है कि उनके माँश खाने से वसा (फैट) और प्रोटीन देह को अच्छी तरह से मिल जाती है । इसका अर्थ है कि फैट और प्रोटीन का सबसे अधिक स्रोत जानवरों का माँस ही है । किंतु प्रश्न यहाँ पर यह है कि मनुष्य के फैट का स्रोत जानवरों का माँस है और उन जानवरों के फैट और प्रोटीन का मुख्य श्रोत हरी घास और भूसा , ख़ली और चोकर इत्यादि है । वे सभी जानवर पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं । यहाँ तक कि मुर्गियाँ कौन सा माँसाहारी होती हैं , आख़िर वे सिर्फ़ कुछ दाने ही तो खाती हैं । क्या वे दाने व बीज उनके अंदर प्रोटीन और फैट का निर्माण कर देते हैं । क्या उनका लिवर उन दानों व बीजों से फैट और प्रोटीन को निकालने में समर्थ होती हैं !
आख़िर वे सभी जानवर जो माँश नहीं खाते वो भला कहाँ से फैट और प्रोटीन लाते हैं । जैसे बकरी गाय भैंस, मुर्गी इत्यादि जितने भी जानवर हैं इनके प्रोटीन और फैट का सोर्स कहाँ से आता है । मुझे तो ऐसा कोई स्रोत नहीं दिखता सिवाय घास और भूसे के खाने के । ये सभी जानवर इन्ही खानों से फैट निकाल लेते हैं । एक बकरी का प्रमुख भोजन पत्तियाँ ही होती हैं । यदि बहुत सूक्ष्म दृष्टि से देखो तो उन्हीं पत्तियों में से वे फैट भी निकाल लेती हैं और साथ साथ प्रोटीन इत्यादि अनेकों आवश्यक चीजें भी निकाल लेती हैं । यहाँ तक कि उनके दूध में भी वे सारे तत्व मौजूद दिखते हैं जो एक मनुष्य के लिए कितना उपयोगी होता है । यदि कोई दूध पीता है तो इसका अर्थ है कि उसका लिवर उस दूध में से घी भी निकाल रहा है ।
मैं कहता हूँ कि लिवर को सीधा घी व फैट देने के बजाय उसे अप्रत्यक्ष रूप से फैट दिया जाना चाहिए । बिलकुल वैसे ही जैसे जानवर फैट और प्रोटीन, घास और भूसे या चोकर इत्यादि से निकाल लेते हैं । एक घोड़े में कितनी शक्ति होती है , आख़िर उसका प्रमुख भोजन चना ही तो है । उसका लिवर उसी भोजन से फैट भी निकालने की क्षमता रखता है । किंतु यह मनुष्य जो बहुत बुद्धिमान है वह चाहता है कि इंजेक्शन की तरह रक्त में ही फैट को सीधा इंजेक्ट कर दिया जाये । सीधा जानवरों के माँस को खाकर उसका फैट लेने के बजाय हमें अप्रत्यक्ष रूप से फैट और प्रोटीन लेने की आवश्यकता अधिक है । मैंने प्रोटीन पाउडर लेने वालों की बुरी हालत देखी है । कुछ वर्षों के बाद उनका पाचन इतनी बैरी हालत से गुजरता है कि कोई डॉक्टर उसे ठीक नहीं कर पाता है ।
यदि सीधा प्रोटीन और फैट को पीला भी दिया जाये तो इससे लिवर का कार्य कम नहीं होगा बल्कि लिवर अपने ही कार्य को भूलने लगेगा । लिवर का स्वभाव फैट से फैट निकालना नहीं है , उसका स्वभाव भोजन से फैट निकालना है । ऐसे भोजन जिसमें कई तत्व होते हैं, उसमें से वह अपने अपने तरीक़े से फैट प्रोटीन इत्यादि निकालता है । वह लिवर जो सूखे बीज से भी फैट निकालने की क्षमता रखता है किंतु तेल से तेल भला कैसे निकलेगा , यदि उसे सीधा तेल दिया गया तो वह अपनी क्षमता को वह भूल जाएगा ।
एक बीज से फैट निकालना लिवर के लिए बहुत बेहतर है बजाय कि सीधा उस बीज का तेल पीने के । वह इसलिए क्योंकि लिवर वस्तुओं से तेल निकालने में माहिर है । मैं लिवर को एक कोल्ड प्रेस्ड जूसर कहता हूँ जिसका काम बहुत धीरे धीरे वस्तुओं से तेल व अन्य महत्वपूर्ण तत्वों को निकालना और साथ साथ सम्पूर्ण देह को आवश्यकतानुसार बाँटना । यदि कोल्ड प्रेस्ड जूसर को बजाय कि पाचन के लिए वस्तु देने के बजाय सीधा प्रत्यक्ष रूप में तेल दिया जाएगा वह भला क्या कार्य करेगा । तेल निकालने वाली मशीन में तेल डालने से कोई लाभ न होगा क्योंकि वह वस्तु व बीज से तेल निकालने माहिर है तेल से तेल निकालने में नहीं । इसीलिए यह स्वतः सिद्ध है कि इस देह को यदि सीधा प्रत्यक्ष रूप में बहुत फैट दिया गया तो संभावनाएँ बहुत अधिक हैं कि वह इस देह इंफ्लेमेशन कर दे ।
इसीलिए ज़्यादातर लोगों को जब किसी तेल को पिलाया जाता है तो एसिड reflux के बढ़ने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है । यह भी सत्य है किसी विशेष काल व विशेष अवस्था में किसी रोगी को इसे पिलाया जा सकता है किन्तु वह बहुत कम समय के लिए ही होना चाहिए । अन्यथा इंफ्लेमेशन बढ़ने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं ।
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