लिवर का महत्व और हमारी जीवनशैली का प्रभाव
लिवर हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है, जो न केवल भोजन को पचाने, बल्कि विषैले तत्वों को बाहर निकालने, ऊर्जा उत्पादन और शरीर को संतुलन में रखने का कार्य करता है। लेकिन क्या हम इसे वह देखभाल और सम्मान देते हैं, जो इसे चाहिए? शायद नहीं। हमारी आलसी जीवनशैली, अनुशासन की कमी और उद्देश्यहीनता न केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य, बल्कि लिवर जैसे महत्वपूर्ण अंगों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।
हमारे जीवन की आदतें हमारी सेहत का आईना हैं। जब हम बिना मेहनत किए या बिना ध्यान दिए भोजन करते हैं—टीवी देखते हुए, बेवजह खाते हुए, या आलस्य में डूबे हुए—ऐसा लगता है कि बिना वजह के जी रहे हैं , तो लिवर पाचन की शक्ति तीव्र गति से नीचे की ओर आ जाती है । लिवर ही नहीं सभी बड़े अंग दिशाहीन दिखते हैं । एक कमजोर और एक पैर का व्यक्ति किसी पागल कुत्ते से बचने के लिए भाग रहा हो तो उसके हर अंग उसको बचने के लिए उसका सहयोग कर रहे होते हैं । यहाँ तक कि हृदय भी अपनी उस क्षण के लिए अपनी शक्ति को बढ़ा लेता है ।
मैंने देखा है लिवर के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कार्य करने का जस्बा, अनुशासन , मेहनत इत्यादि । यदि यह सब है तो लिवर की कार्यक्षमता में कोई कमी नहीं दिखती है । यहाँ पर लिवर के किसी विशेष रोग की बात नहीं हो रही है । 100 में 90 लोगों में लिवर से संबंधित ऐसी ही समस्या है । जिसमें भूख का न लगना , पाचन में कमजोरी , इत्यादि । सिर्फ़ मेहनत ही नहीं बल्कि वह मेहनत किस प्रकार से की जा रही है । उसमें कोई दार्शनिक दृष्टिकोण है भी कि नहीं । मेहनत केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक स्पष्टता और आत्मसंतोष के लिए भी आवश्यक है। जैसे खेती की जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत होती है, साथ साथ उसमें अनेकों कारक तथ्य समावेशी होते हैं वैसे ही हमारा शरीर भी मेहनत और अनुशासन से पोषित होता है।
वास्तविक जीवन का एक उदाहरण
एक 24 वर्षीय युवक, 105 किलो वजन , खर्राटे से पूर्ण ग्रसित , देश के भ्रष्ट नेताओं को गालियाँ दे रहा था , नैतिकता के सर्वोच्च तल पर स्वयं को रखे था, जो छोटे शहर से आया था । फैटी लिवर और कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित था। उसने कहा, “मुझे किसी भी काम में मन नहीं लगता।” जब उससे पूछा गया कि वह करता क्या है, तो उत्तर था, “कुछ नहीं।”
यह उसकी समस्या की जड़ थी। बिना कुछ किए, वह यह सोचता था कि किसी भी कार्य में मन क्यों नहीं लगता। उसे बात करने, टहलने, नहाने, यहां तक कि भोजन करने में भी दिलचस्पी नहीं थी। जिस व्यक्ति को भोजन करने की दिलचस्पी नहीं हो फिर भो देह के अति वजन से परेशान हो तो आप सोच सकते हैं कि वह क्या करता होगा । लेकिन नींद में जाना चाहता था किंतु नींद उसे आती नहीं थी ।
उसकी स्थिति उसके सोचने और जीने के तरीके का प्रत्यक्ष परिणाम थी। उसका लिवर और अन्य अंग केवल आलस्य और उद्देश्यहीनता के कारण अपनी कार्यक्षमता खो रहे थे। जब शरीर अर्थ पूर्ण और शांत होकर परिश्रम नहीं करना नहीं सीखता , तो न केवल लिवर, बल्कि पूरे शरीर की ऊर्जा और संतुलन तंत्र बिगड़ जाता है।
इसलिए मैं स्वास्थ्य, अनुशासन और उद्देश्य में गहरे संबंध को स्वीकार करता हूँ । स्वास्थ्य केवल दवाओं या उपचार से नहीं सुधरता। आधुनिक चिकित्सा लक्षणों का उपचार तो कर सकती है, लेकिन जीवनशैली और स्वभाव को नहीं बदल सकती। अनुशासन और उद्देश्य हमारे स्वभाव का वह हिस्सा हैं, जो हमें शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर संतुलित रखते हैं।
लिवर को स्वस्थ रखने के लिए:
1. नियमित शारीरिक और मानसिक गतिविधि: रोजाना चलना, दौड़ना, या योग करना लिवर को सक्रिय और स्वस्थ बनाए रखता है।
2. संतुलित आहार: वसायुक्त और तले हुए भोजन से बचें। ताजा फल, पके हुए भोजन का ही सेवन करें, कच्चे भोजन से बचें और साथ साथ ऐसे भोजन से बचें जो पौष्टिक कम हों । किंतु उस पर रोक लगाने का भी प्रयत्न बहुत न करें ।
3. जल का पर्याप्त सेवन: जीवन शैली इतनी दयनीय होती है कि पानी पीने का मन नहीं करता है । कुछ लोगों का यह भी कहना होता है कि पानी अधिक पीने से किडनी ख़राब हो सकती अहि । किंतु ऐसे दर्शना व्याख्यानों से बचें और पानी की मात्र समुचित मात्र में बढ़ायें । शरीर को डिटॉक्स करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना जरूरी है।
4. जीवन में उद्देश्य: ऐसे लोगों को अपने जीवन का उद्देश्य बनाना चाहिए । यदि ऐसा नहीं है तो इस प्रकार के लोगों को किस उत्तरदायित्व को ले लेना चाहिए । उसे प्राप्त करने हेतु प्रत्येक दिन बढ़ना चाहिए । उस हेतु अपनी जीवन शैली को निर्धारित करना चाहिए ।
5. मानसिक अनुशासन: ध्यान और प्राणायाम जैसे अभ्यास न केवल मानसिक शांति लाते हैं, बल्कि शरीर के अंगों की कार्यक्षमता को भी बढ़ाते हैं।
दार्शनिक दृष्टिकोण से समाधान
जीवन में अनुशासन और उद्देश्य न हो, तो शरीर और मन दोनों कमजोर हो जाते हैं। जब व्यक्ति आलस्य में जीवन जीता है, तो उसका शरीर और आत्मा दोनों असंतुलित हो जाते हैं। लेकिन जैसे ही वह अपने जीवन में मेहनत और अनुशासन को अपनाना शुरू करता है, उसका लिवर और अन्य अंग धीरे-धीरे अपनी स्वाभाविक क्षमता को पुनः प्राप्त करने लगते हैं।
इसलिए, जीवन को स्वस्थ और उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए हमें यह समझना होगा कि अनुशासन केवल एक नियम नहीं, बल्कि हमारी ऊर्जा और आत्मा का हिस्सा है। लिवर को स्वस्थ रखने का अर्थ है, जीवन में अनुशासन और मेहनत को स्थान देना। यही एक सच्चे और स्थायी स्वास्थ्य का मार्ग है।
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