मेरे बहुत अच्छे जानकार हैं , उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत है कि वे किसी भी शादीशुदा स्त्री से मिले नहीं कि उनका तलाक़ निश्चित है । उन्होंने कितनी ही स्त्रियों को पूर्ण रूप से विरक्त (पागल) कर दिया है, यद्यपि वे अपनी इस अद्दभुत और अद्वितीय कला से अभी तक अपरिचित हैं ।अभी तक उन्हें स्वयं में यह पता ही नहीं कि आख़िर वे करते कैसे हैं ! यहाँ तक कि उन्होंने अपनी पत्नी को भी लाइलाज करके छोड़ दिया है । उनके लिए अब तो डॉक्टरों ने भी अपने हाँथ खड़े कर दिये हैं । डॉक्टर तो मरीज़ को तब तक पकड़े रहता है जब तक उसको नुक़सान न हो , किंतु जिस दिन मरीज़ कुछ ज़्यादा ही डॉक्टर के ही नाक में दम करना शुरू कर देता है तब डॉक्टर अपना पल्ला छुड़ा कर किसी अन्य विशेषज्ञ के पास भेज देता है । फिर खुलता है अनेकों विशेषज्ञों के पास जाने का न रुकने वाला मार्ग । इसमें हृदय, लिवर, किडनी , मन , मस्तिष्क वाले विशेषज्ञ इत्यादि सभी अपने अपने प्रयोग करके अंत में उसे उसी स्थान पर लाकर छोड़ देते हैं जहां से वह चला था । ध्यान दें इसमें केवल विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि बल्कि इंश्योरेंस कंपनी, दावा कंपनी, मेडिकल स्टोर, , पता नहीं कितने लोग जुड़ जाते हैं । वे सभी चाह रहे होते हैं कि मृत्युपर्यंत आप इस चक्र से बाहर ना आएँ ।
अब आप सोच रहे होंगे कि आख़िर वे कहते क्या हैं ! आख़िर उनमें कौन सा जादू है जो वो सुँघा देते हैं । बस इतना ही तो कहते हैं कि “आप बहुत बुद्धिमान हैं, “मैं जानता हूँ आप अपने पति किस प्रकार झेल रही हैं” और कोई होता तो यह न कर पाता । आपके समस्त रोगों का कारण आपका पति ही है । इसीलिए आपको अनिद्रा, तनाव और डिप्रेशन आता है” । मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि मूर्खों को कभी ये समस्या नहीं होती है सिर्फ़ बुद्धिमान् को ही होती है । आप इतनी बुद्धिमान हैं कि आप छोटी छोटी बातों को पकड़ लेती हैं, आप ने पूरे घर का भार उठा रखा है, आप परफ़ेक्शनिस्ट हैं । इसीलिए आपको दुख और रोगों ने घेर रखा है ।
मैं तो कहता हूँ कि किसी जानवर को भी यदि उनकी इस प्रकार की सुगंधित बातें उसके कानों में डाल दी जायें तो वह भी पागल हो उठेगा,मनुष्यों की तो छोड़ ही दो ।
मैं अपने अंतरतम के अनुभव से कह सकता हूँ कि जिस भी व्यक्ति में आत्म शक्ति कम होती है उसमें सीधा सीधा बोलने की शक्ति नहीं होती है । थोड़ी देर के शांति के लिए इस प्रकार के मीठे ज़हर की गोलियाँ दे कर उनकी देह और मन ही नहीं बल्कि उसकी आत्मा को ही बर्बाद कर दिया जाता है । आत्म शक्ति बहुत कम होने पर ऐसे गुरु भी जो अपने शिष्यों से यह सीधा सीधा नहीं बोल पाते हैं कि तुम ग़लत हो सुधारों अन्यथा मेरे पास मत आना , नहीं बोल पाते हैं ।
सत्य यही है कि ज़्यादातर व्यक्ति भावनाओं में घुसकर स्वयं को मारना ही चाहता है इसीलिए उसके चक्रों से बाहर आने में असमर्थ होता है । वह वही साधन चुनता है जो उसी स्थान पर लाकर खड़ा कर देता है ।
अंत में जब आप उसी स्थान पर आकर खड़े हो जाते हैं जहां से वर्षों पहले चले थे तो आपके पास वही पुरानी प्रथा को अपनाने की मजबूरी आ ही जाती है । अंततः आप अपने लिए नया द्वार खोल ही लेते हैं जो हज़ारों वर्षों से चला आ रहा है ।
भूत- प्रेत विशेषज्ञ । एस्ट्रोलोजर (ग्रह और नक्षत्रों की दृष्टि का टेढ़ा होना) , वास्तु विशेषज्ञ (घर में वास्तु का न ठीक होना) , तांत्रिक (कुछ ऊपरी शक्तियाँ आप पर दुष्प्रभाव छोड़ रही हैं) । इस मार्ग की तो बात ही क्या है , इसमें तो जाने के मार्ग होते हैं वापस आने के नहीं होते । वैसे ही जैसे शेर की गुफा में घुसने के पद चिन्ह तो दिखते हैं किंतु वापस आने के नहीं दिखते । ध्यान दें अंदर जाते समय इतना दिमाग़ होता नहीं कि वापस आने वाले पद चिन्हों को भी देख कर अंदर जायें ।
ये सिद्धांत भी वैसे भी रोगों और समस्याओं का का कारण किसी न किसी बाहरी प्राकृतिक कारण को बता दिया जाता है । और जब तक बाहर की प्रकृति की सही होती है तब तक आप निपट चुके हुए होते हैं । आप चलने फिरने के लायक़ नहीं होते हैं । सोचने विचरने की शक्ति ही समाप्त हो जाती है क्योंकि कर तो ग्रह और नक्षत्र हैं ।
यदि विचार करें तो उपर्युक्त सभी विज्ञान में किसी में भी देह से देह को ठीक करने की बात ही न थी , किसी में भी मन को मन से इलाज करने की बात ही न थी । स्वयं का प्रयास किसी भी विज्ञान में झलकता हुआ नहीं दिखता । संभवतः इसीलिए अध्यात्म का सबसे अधिक महत्व इस मनुष्य जगत पर पड़ता है । यही उसके मोक्ष का द्वार है । वह कहता है स्वयं की समस्याओं का समाधान स्वयं के द्वारा ही संभव है । अन्य कोई न कर सकेगा । विचार तुम पैदा करो और उसे समाप्त करने कोई अन्य न आएगा ।
अंततः दोष स्वयं में ही है किसी अन्य में नहीं । दुख और रोगों से कोई न सीख सकेगा तो उसको आसमान से कोई आ भी जाए तो नहीं सीखा पाएगा ।
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