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क्या मन में निर्मित चित्र का वजन होता है?

2 weeks ago By Yogi Anoop

क्या मन में निर्मित चित्र का वजन होता है? और क्या मस्तिष्क के लिए घातक हो सकता है ? 

शिष्य: गुरुजी, क्या मन निर्मित चित्र, भावनाओं, कल्पनाओं व विचारों का भी कोई वजन हो सकता है? यह सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन आपका दृष्टिकोण जानना चाहूँगा।

योगी अनूप: यह प्रश्न जितना साधारण दिखता है, उतना है नहीं। यह उतनी ही गहरी समझ की ओर संकेत करता है। वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो तत्व और पदार्थ, जो रूप, रंग और आकार धारण करते हैं, उनमें कहीं न कहीं भार और वजन होता है। यौगिक दृष्टि से भी देखें तो चार तत्व—पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि—में भी कहीं न कहीं वजन है। मेरे स्वयं के अनुभव में आकाश, अर्थात रिक्त स्थान में, वजन संभव नहीं है, किंतु मान्यता के अनुसार उसे एक तत्व के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। आकार ही तो रिक्त स्थान को घेरता है।

यहाँ पर प्रश्न बाह्य तत्वों के वजन का नहीं, बल्कि मन में निर्मित चित्रों के वजन का है। वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि से यह सत्य प्रतीत नहीं होता है, किंतु आध्यात्मिक दृष्टि से देखने पर यह अनुभव होता है कि मन में निर्मित चित्रों का वजन भले ही मापा नहीं जा सकता हो, किंतु उनमें कहीं न कहीं वजन भौतिक तत्वों के समान ही होता है।

स्वप्न में सिर के ऊपर उठाया हुआ भार वास्तविक भार ही प्रतीत होता है। स्वप्न में ही पसीने से तर हो जाते हैं, और स्वप्न में किसी के द्वारा पत्थर मारे जाने पर व्यक्ति डर के मारे उठ जाता है। मस्तिष्क में उसकी पूरी प्रतिक्रिया हो उठती है। हृदय की धड़कन तेज हो जाती है। यह सत्य है कि उस पत्थर की चोट भौतिक रूप से नहीं दिखती है।

कहने का मूल अर्थ यह है कि मन में किसी चित्र के निर्माण का अर्थ है कि उसमें रूप, रंग और आकार है। और आकार के निर्माण का अर्थ है कि उसने मस्तिष्क के अंदर स्थान को घेरना प्रारंभ कर दिया है। जैसे वस्तु स्थान को घेरती है, वैसे ही मन के द्वारा बनाया गया चित्र भी मस्तिष्क में स्थान घेरता है, स्मृति में स्थान को घेरता है।

उस स्थान को घेरने से मस्तिष्क में स्थित सूक्ष्मतम कोशिकाओं में दबाव और विस्तार होना प्रारंभ हो चुका होता है। यहाँ तक कि मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र, न्यूरॉन्स, हार्मोन्स और मांसपेशियों में दबाव और प्रसार का होना प्रारंभ हो चुका होता है। यदि उस आकार में कोई वजन न होता, तो तंत्रिका तंत्र में दबाव और प्रसार नहीं होता। इसके विपरीत, यदि मन में किसी भी प्रकार का चित्र ही न निर्मित हो, तो मस्तिष्क के अंदर घेरने की प्रक्रिया संभव नहीं हो सकती। इससे यह भी सिद्ध होता है कि मस्तिष्क और देह में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं हो सकती।

ध्यान दें, इससे यह तो सिद्ध होता है कि यदि मन में निर्मित उन चित्रों के आकार में भार (वजन) न होता, तो उसका दबाव मस्तिष्क और देह पर नहीं होता। मेरी आध्यात्मिक दृष्टि से यह सिद्ध हुआ कि मन द्वारा निर्मित चित्र में वजन होता है। यद्यपि वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित नहीं है क्योंकि उन चित्रों को मापने का कोई भी मापदंड नहीं है।

शिष्य: तो क्या यह अभौतिक एवं ज्ञात वजन नुकसान दे सकता है?

योगी अनूप: इसे थोड़ा और गंभीरता से समझने का प्रयास करें। मस्तिष्क के अंदर मन के द्वारा निर्मित चित्र के आकार का वजन कितना होगा, यह उस चित्र के पीछे के भाव पर निर्भर करता है। जैसे दीवार पर टंगे चित्र का भौतिक रूप से वजन बहुत कम होता है—कुछ लकड़ी, काँच, और उस कागज का हिस्सा जिसमें कुछ रैग छिड़के गए हैं , और वह किसी एक चित्र के रूप में दिख रहा है । 

किंतु उस चित्र को देखने वाला जब स्वयं के मन में उस चित्र को रूपांतरित करता है, तब वह उस चित्र के माध्यम से भाव उत्पन्न करता है। केवल चित्र ही रूपांतरित करे तो उसके वजन से मस्तिष्क में उसका आकार घेरेगा ।  किंतु यदि उस चित्र में नकारात्मक भाव डाले गए हैं, तो मस्तिष्क के तंतुओं को उस चित्र के आकार में कितना अधिक वजन डाला गया जिसे मस्तिष्क को ही सहना पड़ेगा । और यदि इसके विपरीत उस चित्र में सकारात्मक भाव डाले गए हैं, तो भी उसी के अनुरूप मस्तिष्क के तंतुओं पर दबाव झेलना पड़ेगा ।  यह भी सत्य है कि नकारात्मक के अपेक्षाकृत  चित्र के आकार में सकारात्मक भाव डालने में कम भार का अनुभव होता है ।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि चित्र के आकार में भाव व अर्थ जितना अधिक प्रभावशाली होगा उतना ही मस्तिष्क के सूक्ष्म तंतुओं पर अधिक भार सहन करना पड़ेगा । उतना ही रासायनिक प्रक्रियाओं पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। यह पूरी तरह निर्भर करता है कि मन द्वारा निर्मित चित्र में कितना प्रभावशाली अर्थ और भाव छिपा है।

एक उदाहरण से इसे और स्पष्ट किया जा सकता है। दीवार पर टंगा हुआ चित्र यदि प्रभु राम का है, तो उसमें कितने पवित्र भाव छिपे हैं। और यदि वही चित्र रावण का हो, तो उसमें बिल्कुल भिन्न भाव छिपे हैं। चित्र का भौतिक भार तो वही लकड़ी, काँच और कागज और उसमें कुछ भिन्न भिन्न रंग गूँथे हुए हैं । यह मात्र एक छोटा टुकड़ा ही तो है । किंतु इस टुकड़े में भाव अर्थ इत्यादि भार व वजन डालते हैं जो मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव छोड़ते हैं । 

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