यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो स्त्रियों की शरीरिरिक संरचना पुरुषों के अपेक्षाकृत अधिक जटिल होती है जिसके कारण उसे होर्मोनल उथल पुथल से अधिक गुजरना पड़ता है । इस होर्मोनल अस्थिरता से भावनात्मक परिवर्तन में तीव्रता देखी जाती है जिसके कारण अवसाद में जाने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं । विज्ञान कहता है स्त्रियों में विचारों की संख्या अधिक होती है बनिस्बत पुरुषों के ।
यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए स्त्रियों की भावनात्मक और मस्तिष्क की कोशिकीय संरचना पुरुषों से भिन्न होती है । उनका मस्तिष्क शरीर की जटिल प्रक्रिया को नियंत्रित करने की अधिक सामर्थ्य रखता है जैसे दर्द, एवं भावनात्मक दबाव को लम्बे समय तक झेलते रहने की शक्ति स्त्रियों में सभाविक रूप में अधिक देखी जाती है । वह इसलिए कि उनके शरीर में समय समय पर परिवर्तन से उनके मस्तिष्क को दर्द को झेलने की आदत पड़ जाती है । इसीलिए उनमें अवसाद अधिक होने के बावजूद भी हृदय पुरुषों के अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली होता है । उनके हार्ट अटैक का प्रतिशत पुरुषों के अपेक्षाकृत बहुत कम है ।
उनमें शरीर के अंदर परिवर्तन झेलने की आदत पड़ जाती है है जबकि पुरुषों में स्वयं के शरीर में परिवर्तन का सामना न करने से वह अपेक्षाकृत बाह्य समस्याओं को झेलने की शक्ति बढ़ा लेता है । जैसे स्त्रियों में 10 से 13 वर्ष के होने पर उसके अंदर मासिक धर्म की शुरुआत का होना , विवाह के बाद उसमें होर्मोनल परिवर्तन का होना, प्रेग्नन्सी में उसके अंदर परिवर्तन , बच्चे होने के बाद परिवर्तन, 50 वर्ष के बाद मेनपॉज़ इत्यादि अनेको परिवर्तन से गुजरना पड़ता है जिससे उसके अंदर सबसे अधिक होर्मोनल अस्थिरता होती है जिसके कारण भावनात्मक उथल -पुथल (अवसाद) देखने को मिलता है । उनमें यह शारीरिक परिवर्तन समय समय पर इतनी शीघ्रता से होते रहते है कि भावनात्मक और होर्मोनल अस्थिरता आना स्वाभाविक सा हो जाता है ।
ये सभी परिवर्तन पुरुषों में देखने को नहीं मिलते हैं क्योंकि उनकी शारीरिक संरचना में इतनी जटिलता नहीं होती है । वे स्त्रियों की तरह होने वाले दुष्प्रभावों से बच जाते हैं ।
यदि नाड़ियों की दृष्टि से देखा जाए तो स्त्रियाँ चंद्र नाड़ी से अधिक नियंत्रित होती हैं, उनके अंदर पुरुषों के अपेक्षाकृत भावनात्मक भंडार अधिक होता है । वे भावनात्मक रूप से अधिक भूखी भी होती हैं । उनका मस्तिष्क पुरुषों के मस्तिष्क से कहीं अधिक जटिल और सहनशील हैं, क्योंकि मस्तिष्क में उन कोशिकाओं का भी प्रभाव है जो उनके बच्चेदानी और स्तन को नियंत्रित करता है । उनके मस्तिष्क को कहीं अधिक होर्मोनेस का सिक्रीशन करना पड़ता है उनके आने वाले बच्चे के लिए , और उस सिक्रीशन के साथ साथ भाव भी पैदा करना पड़ता है । इन जटिल प्रक्रियाओं से गुजरते हुए उन्हें भावनात्मक अस्थिरता से जूझना पड़ता है जो उनके अवसाद का कारण बनता है । स्त्रियों में ग्रहण करने का स्वभाव जन्मजात रूप से पाया जाता है, इसीलिए वे भावनाओं को भी आवश्यकता से अधिक ग्रहण करती हैं ।
स्वर विज्ञान की दृष्टि से भी देखने पर स्त्रियाँ दाहिने मस्तिष्क और बायीं नासिका से अधिक संचालित होती दिखती हैं , इसके कारण किसी एक विषय पर आवश्यकता से अधिक चिंतन की प्रक्रिया उनमें स्वाभाविक रूप से पायी जाने लगती है । इसीलिए उन्हें ग्रहणी कहा गया , ग्रहणी का अर्थ है ग्रहण करने वाला । उनकी समस्या बस उस चिंतन की प्रक्रिया से न निकल पाने की होती है ।
यदि तीन प्रकृति के दृष्टिकोण से देखा जाए तो इनका स्थान वात पित्त और कफ़ में कफ़ (जल ) और वात (वायु) ही स्वभावगत पाया जाता है । जल का मूल स्वभाव ग्रहण करना होता है , जहां तक कि पानी की बात है , उसमें सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए वह जल भावनात्मकता को भी अब्ज़ॉर्ब करती है । इसीलिए चंद्रमा के उगने पर उस पानी में अस्थिरता पैदा होती है अर्थात् भावनात्मक उथल-पुथल होती है । यदि और वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक 15 दिन पर चंद्रमा के उगने और डूबने पर भावनात्मक उलझाव देखने को मिलता है ।
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