चूँकि कछुआ अत्यंत धैर्यशील होता है, अपनी समस्त इंद्रियों को अंदर समेटने में समर्थ होता है और साथ साथ उसकी ऊम्र बहुत लम्बी होती है, इसीलिए भारतीय ऋषियों ने उसे पवित्र माना । जन जन की आत्मा में उसकी पवित्रता को स्वीकार्य करवाने के लिए उन्हें विष्णु का अवतार कहलवाना पड़ा । ध्यान दें जिस जीव में बहुत स्थिरता होती है उस जीव से जो भी वायब्रेशन निकलती है वह भी बहुत ही शांत कर देने वाली ही होती है । यदि उस जीव को आदर किया जाय, उस पर श्रद्धा किया जाय तो स्मृति के अंदर स्थिरता की वृद्धि स्वाभाविक रूप से होने लगती है । उस आदर व श्रद्धा को और कैसे बढ़ाया जाय इसके लिए ऋषियों ने धार्मिक और वास्तु का दृष्टिकोण भी दे दिया ।
धार्मिक और वस्तु शास्त्र के दृष्टि से घर व घर के उत्तर दिशा में इसके प्रतीकों को रखने मात्र से घर में रहने वालों के मध्य शान्ति बनी रहती है और साथ साथ उन्हें दीर्घायु को प्राप्त होता हैं । यद्यपि प्रतीकों में उतनी शक्ति नहीं कि वे मनुष्यों को दीर्घायु कर दें किंतु ऋषियों का प्रमुख उद्देश्य उस कछुए के चित्र के माध्यम से मनुष्यों की स्मृति में स्थिरता का बोध कराना था साथ साथ उसके माध्यम से एक सामान्य व्यक्ति अपनी इंद्रियों को हाइपर नहीं होने देता जिससे उनकी उम्र का लम्बा होना स्वाभाविक होता है ।
इसीलिए ऋषियों ने कछुए में भगवान विष्णु को अवतार के रूप में भी आरोपित किया जिससे जनमानस की आत्मा में उस जीव के प्रति बहुत अधिक श्रद्धा और आदर बढ़ जाय ।
ध्यान दें सभी के घर के अंदर कहीं न कहीं कोई प्रतीक, चिन्ह, चित्र इत्यादि दीवारों पर लटके देखा जा सकता है, यदि दीवार पर कोई नग्न चित्र लटका हुआ हो तो देखने वाले के अंदर कैसा भाव पैदा होगा ! स्वाभाविक रूप से वासना व सेक्स से सम्बंधित भाव ही पैदा होंगे । व्यक्ति किसी को आँखों के माध्यम से देखता है तब उसी से सम्बंधित भाव पैदा होना प्रारम्भ हो जाता है ।
इसी प्रकार यदि घर के अंदर कोई भी व्यक्ति कछुए व हाथी के प्रतीकों अथवा किसी स्थिर स्वभाव वाले जीव को प्रतीकात्मक रूप में रखता है और साथ साथ उसमें परमात्मा का भी बोध करता है तब उसके अंदर स्थिर भावों का जन्म होना स्वाभाविक होता है । जब घर में रहने वाले व्यक्ति की आँखें उस स्थिर शांत कछुए की ओर जाती है तो उस क्षण वह अपने मन के अंदर स्थिर स्वभाव को remind कराता है । वह अपनी स्मृति में कहीं न कहीं उस प्रकार के भावों की वृद्धि करवाता है । उन भावों की वृद्धि से मन के अंदर अप्रत्यक्ष रूप से धैर्य की वृद्धि स्वतः ही हो जाती है ।
ऐसे ही घर के अंदर बहुत सारे प्रतीक होते हैं जिससे कारण घर में रहने वाले लोगों की इंद्रियाँ शांत होती रहती हैं भले ही एक पल व क्षण भर के लिए ही क्यों न हो । किंतु मन के अंदर उन शांत और स्थिर तरंगों का अप्रत्यक्ष रूप जाना होता रहता है ।
यदि व्यावहारिक दृष्टि से चिंतन किया जाय तो इन प्रतीकों के reminding से किसी की उम्र नहीं बढ़ सकती है , ऐसा नहीं हो सकता कि कछुए को रखने मात्र से जीवन लम्बा हो जाएगा । कछुए में इतनी शक्ति नहीं कि वह किसी की उम्र बढ़ा दे व किसी के मन स्थिर कर दे किंतु यह इसलिए कहा गया कि एक सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति अपने घर में नग्न चित्र, शेर की खाल, मरे हुए जीवों की सींगे इत्यादि के लटकाने के बजाय कुछ ऐसे प्रतीकात्मक चिन्हों को घर में रखें जो इंद्रिय व मन को आराम दें । शांति दें , जिनके दर्शन मात्र से स्मृति में स्वाभाविक रूप से शांति व स्थिरता बढ़े ।
इसीलिए मूर्ति व देवी देवताओं के चित्रों को घर में रखने की भी सलाह दी गयी । यहाँ पर सामान्य व्यक्ति जब इन चित्रों को देखता है तब उस एक क्षण के लिए अपने मन को शून्य कर लेता है । यह सत्य है कि उसे उस शून्यता का अनुभव व आभाष नहीं हो पाता किंतु वह क्षण भर की शून्यता जो उसे स्वतः ही मिल गयी, उसके मस्तिष्क के जीवन के लिए बहुत उपयोगी होती है । इसी प्रकार कछुए को घर प्रतीकात्मक रूप में रखने से उसी प्रकार की शून्यता व स्थिरता का भी अभाष किया जा सकता है । यह सभी स्मृति में बार बार remind करवाने की एक अचूक विधि है ।
अंततः यह कहना ग़लत नहीं होगा कि जीवन में शांति व स्थिरता का बोध जितना अधिक बढ़ता जाता है जीवन उतना ही पूर्ण संतुष्ट तथा तथा लम्बा भी होता जाता है ।
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