ब्रम्हचर्य दो शब्द से निर्मित हुआ है, ब्रम्ह+चर्य जो मिलकर ब्रम्हचर्य कहलाता है । ब्रम्ह का मूल अर्थ ‘स्वयं’ अर्थात् चेतन आत्मा होता है और आचरण का अर्थ व्यवहार से लगाया जाता है । इस दृष्टि से देखा जाए तो स्वयं अर्थात् आत्मा का ज्ञान करने के लिए जो आचरण व व्यवहार किया किया जाता है उसे ब्रम्हचर्य कहा जाना चाहिए ।
किंतु सामान्य एवं धार्मिक समाज में वीर्य के स्खलन को सदा के लिए रोक देना ही ब्रह्मचर्य कहलाया है । ऐसे लोगों के द्वारा कहा जाता है कि वीर्य एक ऊर्जा है जिसको स्खलित करने पर आध्यात्मिक ऊर्जा समाप्त हो जाती है । इसलिए उसके संचय की सलाह दी गयी ताकि बढ़ी हुई ऊर्जा के माध्यम से आत्म ज्ञान को प्राप्त किया जा सके ।
किंतु मेरे अनुभव में यह देह की स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसको किसी भी तरह से पूर्ण रूप से रोकना सम्भव नहीं है । देह में वीर्य की मात्रा के बढ़ने पर मन मस्तिष्क में सेक्स से सम्बंधित विचार स्वतः ही जागृत होने लगते हैं । जैसे शरीर को भोजन व प्यास की आवश्यकता है तो वह भूख व प्यास के रूप में मन और मस्तिष्क को बताता है, यदि उसे न पूरा किया गया तो वह दैहिक आवश्यकता स्वप्न के रूप में मन से करवाता है ।
मैंने अपने प्रयोग के दौरान रात में स्वयं को प्यासा रखा, सोने के पहले प्यास लगने के बावजूद पानी नहीं पिया और परिणाम यही हुआ कि स्वप्न में पानी पीता था । यहाँ तक कि रात में पेशाब को भी रोक करके देखा तो रात में स्वप्न में पेशाब करते हुए पाया । उसी प्रकार आवश्यकता से अधिक समय तक वीर्य को रोकने पर वह रात में स्वप्नदोश करवा देता है ।
मैंने स्वयं की ब्रम्म्ह्चर्य साधना में स्वप्नदोस को रोकने में सफलता पायी थी, विचारों और दृश्यों पर नियंत्रण स्थापित किया था किंतु कुछ वर्षों के बाद मूत्र मार्ग के माध्यम से वीर्य को निकलते हुए पाया । वह इतनी सूक्ष्मता से निकलता था कि उसका अंदाज़ा कुछ वर्षों के बाद लगा । परिणाम यह निकला कि धातु शरीर के मूत्र मार्ग के माध्यम से सूक्ष्म रूप से निकलता है ।
इस प्रश्न के उत्तर में कि क्या ब्रम्म्ह्चर्य आवश्यक है, यह कहना महत्वपूर्ण होगा कि मैं इसे उसी तरह से आवश्यक मानता हूँ जैसे भूख और प्यास है । किंतु इसका अर्थ यह बिलकुल भी नहीं कि दिन भर कुछ न कुछ खाते रहें । मैंने अपने खोज में यह पाया कि जैसे तनाव के दौरान लोग बार खाने और पीने की तरफ़ आकर्षित होते हैं वैसे ही तनाव के दौरान लोग सेक्स के प्रति आकर्षित होते हैं । जब बहुत अधिक तनाव होता है तब उन्हें सेक्स की इक्षा बहुत अधिक होने लगती हैं , यह तक कि 99 फ़ीसदी लोग नींद न आने पर सेक्स करते हैं और गहरी नींद में चले जाते हैं ।
इस प्रकार की स्थिति में ब्रम्म्ह्चर्य बहुत आवश्यक दिखता है । मेरे अपने अनुभव में यह धातु को सदा के लिए रोकना नहीं सिखाता बल्कि मन को कैसे शांत और स्थिर रखा जा सके जिससे शरीर और अंतर्मन को ढीला करने के लिए सेक्स की हमेशा आवश्यकता न हो । देह, मस्तिष्क और इंद्रियों में खिंचाव को दूर करने के लिए सेक्स एक बहुत बड़ा साधन के रूप में देखा जाता है किंतु धीरे धीरे यह हवस के रूप में आ जाती है । इसी से मन को बचाना होता है । यहीं पर ऋषियों ने यम नियम आसान प्राणायाम और ध्यान इत्यादि पर केंद्रित किया जिससे मन को शांत रखा जा सके और मन हवस का शिकार न बन सके ।
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