कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो हमारा अतीत बता दे तो हम उसके पैरों पर पड़ जाते हैं , उसके अतीत बताते ही अंतरतम में यह आशा भी जागृत हो जाती है कि वह हमारा भविष्य भी बता देगा । आख़िर जिसने बिना देखे अतीत बता दिया उसमें भविष्य को भी बताने की क्षमता अवश्य ही होनी चाहिए ।
चूँकि बिना पूँछे उसने सिर्फ़ चेहरा व इंद्रियों को देखने मात्र अतीत को बताया है और इसलिए उसमें कुछ ऐसी विशेष बात है जो वह भविष्य को भी बता सकता है , ऐसा हमें विश्वास हो उठता है । कहीं न कहीं आंशिक रूप से यह सत्य भी है । किंतु इसे पूर्ण रूपेण सत्य नहीं कहा जा सकता है ।
एक गुरु स्वयं के अंदर ‘अनुमान ज्ञान’ की एक ऐसी ज्ञान शक्ति जागृत करता है जिससे वह इंद्रियों के व्यवहार मात्र को देखकर बहुत कुछ बता सकता है । क्योंकि पूर्व काल में उसने अपनी साधना के दौरान स्वयं के मन और इंद्रियों के व्यवहार को समझा है । उसकी इंद्रियों ने उसे कैसे कैसे सताया है , उसने यह सहा है । यदि उसने बहुत अच्छी साधना की है ओ वह भला किसी अन्य के बारे में कैसे नहीं बता सकता है । ऐसा मेरा अनुभव है ।
यह चमत्कार नहीं है , यह साधना की सत्यता है । ध्यान दें जब किसी व्यक्ति की इंद्रियाँ और मन किसी एक विशेष पैटर्न पर चलने की आदती होती हैं तो उसके अतीत और भविष्य के बारे में बहुत आसानी से बताया जा सकता है । यहाँ पर यह बताना आवश्यक है कि आदतों का अर्थ ग़लत और सही दोनों से ही है ।
जैसे एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है -
आदर्श श्री राम के अतीत (संस्कार) एवं भविष्य को उनके गुरु ने समझ लिया था । उनकी इंद्रियों में स्थिरता और माता पिता एवं मानवता के प्रति प्रेम को देखकर उनके गुरु ने यह बता दिया था कि वे कितना प्रतापी होंगे । इसके साथ साथ गुरु ने बचपन में ही उनकी नेतृत्व क्षमता को पहचान लिया था ।
एक व्यक्ति के स्वभाव को देखकर उसके बारे में आसानी से बताना गुरुओं में एक प्रथा थी । इसीलिए वैदिक काल में गुरु अपने शिष्य को देखकर उसको भविष्य में क्या क्या करना चाहिए यह निर्देशित करता था ।
सामान्य व्यक्ति भी आँख बंद करके श्री राम के स्वभाव का अनुमान लगा सकता था ।
यहाँ तक कि सभी को पता था कि नैतिकता इनकी सबसे बड़ी शक्ति है , वह इसे छोड़ नहीं सकते ।
कुछ वैसे ही युधिष्ठिर के बारे में भी उनके गुरु ने पहचान की थी कि वह सत्यवादी होगा । भविष्य में तो उनकी सत्यता के बारे में पूरे समाज को ज्ञान हो गया था । उनके विरोधियों में भी उनकी सत्यता को लेकर तनिक भी संदेह नहीं था ।
किंतु वहीं पर श्री कृष्ण एक चरित्र थे जो अन्प्रेडिक्टबल थे , उन पर किसी को भी भरोसा नहीं होता था , उनकी इंद्रिय कुछ कहती थीं , और मन कुछ , और बुद्धि निर्णय कुछ और ही लेती थी । उनके बारे में यहाँ तक कि सिद्ध गुरुओं को भी अनुमान लगाना मुश्किल होता था कि वह भविष्य में करेंगे । ऐसे चरित्र का अनुमान लगाना लगभग असम्भव होता है । क्योंकि ऐसे लोगों की इंद्रियाँ और मन किसी एक विशेष पैटर्न से नियंत्रित नहीं होती हैं । ऐसे महापुरुषों की एकाग्रता सिर्फ़ और सिर्फ़ उद्देश्य पर ही टिकी हुई होती है, उस नैतिक उद्देश्य को पाने के लिए किसी भी साधन का इस्तेमाल कर सकते हैं । इसलिए उन्हें समझना , या इनके भविष्य के बारे में बता पाना अत्यंत ही कठिन होता है । किंतु श्री राम जैसे चरित्र के लोगों में नैतिक कर्म अधिक महत्वपूर्ण होता है , उनके लिए उद्देश्य मायने नहीं रखता है , उनके लिए कर्म में नैतिकता मायने रखता है , इसीलिए इनकी इंद्रियों में एक पैटर्न देखने को मिलता है , इसीलिए इनको समझना आसान होता है किंतु इस प्रकार के लोगों को पराजित कर पाना असम्भव होता है । इस प्रकार के व्यक्तित तो पराजय को को पराजय के रूप में न लेकर उससे अनुभव के रूप में लेते हुए अपने चरित्र का महा निर्माण करते हैं और समाज में नैतिकता की स्थापना करते हैं ।
वह इसलिए कि उनका मस्तिष्क चंद्रमा से अधिक आकर्षित था जब कि श्री राम का चरित्र प्रिडिक्टबल था । उनका चरित्र सूर्य से आकर्षित था । सूर्य में बदलाव बहुत कम होता है । किंतु चंद्रमा में बदलाव की तीव्रता बहुत तेज होती है ।
इसीलिए उन व्यक्तियों को जिनका मस्तिष्क चंद्रमा से अधिक नियंत्रित होता है उनको समझना आसान नहीं होता है , यदि वे बहुत नकारात्मक दृश्यों लिए होते हैं तब तो गुरुओं के लिए भी एक समस्या बन बैठते हैं । किंतु जिनका मस्तिष्क सूर्य से अधिक गवर्न है उसके भूत और भविष्य को बताना बहुत आसान होता है ।
Copyright - by Yogi Anoop Academy