क्रिया योग विधि का वैज्ञानिक आधार
शिष्य: आप के अनुसार यह क्रिया योग विधि विज़ूलाइज़ेशन और प्राणायाम को जोड़कर बनाया गया है । किंतु इसका वैज्ञानिक आधार क्या है ?
योगी अनूप: इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयत्न करते हैं ; जब कोई भी व्यक्ति अपनी मान्यताओं के आधार पर किसी भी परमात्मा पर मन ही मन भावनाओं को प्रकट करके प्रसन्न होता है तब उसके अंदर डोपामिन जैसे हार्मोन्स का श्राव होता है । वह इसलिए क्योंकि जब किसी भी कार्य के पहले भावनाओं को प्राथमिकता देते हैं तो उसकी एकाग्रता उस भावनाओं के इंटेंसिटी पर निर्भर हो जाती है । और उसके परिणाम उसके भावनाओं के आधार पर उसके देह और मस्तिष्क में दिखने लगते हैं । यह वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध् पाया गया है ।
बिल्कुल वैसे ही देह के अंदर किसी स्थान विशेष पर के ऊर्जा को जागृत करने के लिए विज़ूलाइज़ेशन किया जाता है तब उसके बाद स्वतः ही एकाग्रता प्राप्त हो जाती है । यह एकाग्रता विज़ूलाइज़ेशन के साथ व्यावहारिक प्राणायाम के द्वारा किया जाता है तब उसके अनुरूप व्यावहारिक और वैज्ञानिक रूप से परिणाम प्राप्त होने लगते हैं । ज्यादातर क्रिया योग के अभ्यासियों में अभ्यास के दौरान एड्रिलाइन हार्मोन्स का स्राव होने लगता है क्योंकि उनके अभ्यास के पीछे अनंत ऊर्जा के बढ़ाने की चाहत होती है । यही चाहत उन्हें हाइपर व उत्तेजित कर देती है जिससे अन्य स्ट्रेस वाले हार्मोन्स का अति स्राव होने लगता है । किंतु गुरु के संरक्षण में यदि इस क्रिया योग की विधि का अच्छी तरह से अभ्यास किया जाये तो ऊर्जा का संयमन करके स्थिरता की वृद्धि की जाती है जिससे सेरोटोनिन की मात्रा में संतुलन स्थापित किया जाता है ।
इस अभ्यास में परिणाम सेरोटोनिन रसायन की समुचित वृद्धि के रूप में प्राप्त होने लगता है । इस क्रिया विधि के अभ्यास में स्थिरता की वृद्धि के बढ़ने पर स्वाभाविक रूप से कुछ विशेष रसायन की मात्रा बढ़ती है जो मस्तिष्क ही नहीं बल्कि देह के लिए भी बहुत ही लाभकारी होती हुई पायी जाती है ।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमिटर है जो मूड, नींद, भूख, और स्मृति को नियंत्रित करता है। इसका सीधा सा अर्थ है कि क्रिया योग के अभ्यास से यदि स्थिरता बढ़ती है और स्थिरता के बढ़ने पर यदि सेरोटोनिन बढ़ता है तब देह में ये सभी सकारात्मक लक्षण दहने को मिलने लगते हैं । यहाँ तक कि विज्ञान के अनुसार भी सेरोटोनिन जिसका 90% हिस्सा आँतों और रक्त प्लेटलेट्स में पाया जाता है, उससे शरीर की डिटॉक्सीफिकेशन की प्रक्रिया बहुत ही तीव्र हो जाती है । मेरे अनुसार आँतों में भी अतिसक्रियता का आभाव हो जाता है वह इसलिए कि आंतों के स्वभाव में अतिसक्रियता है नहीं । वैज्ञानिक रूप से देखा जाये तो वह इसलिए नहीं क्योंकि आँतों और प्लेटलेट्स में सेरोटोनिन की मात्रा कहीं ना कहीं सर्वाधिक रूप में पायी जाती है । इसका अभिप्राय है कि मन मस्तिष्क की तरह आँतों को भी स्थिरता ही सबसे अधिक पसंद बनिस्बत इर्रिटेशन के ।
मेरे अपने अनुभव में सेरोटोनिन से मेरा कोई मतलब नहीं , मेरा सिर्फ़ एक ही ध्येय है कि मैं स्थिर कैसे रह सकूँ । यदि स्थिरता का अनुभव अच्छी मात्र में होता है तब देह में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया स्वतः ही होने लगेंगीं । यह एक अखंड सत्य है । यही आध्यात्मिकता शरीर और मस्तिष्क को हील करने में कामयाब होती है ।
मेरे स्वयं के आध्यात्मिक अनुभव में क्रिया योग में आरोह और अवरोह ही महत्वपूर्ण होता है । अवरोह की प्रक्रिया में सेंसरी न्यूरॉन्स शरीर के विभिन्न हिस्सों (जैसे त्वचा, आँखें, कान, जीभ आदि) से मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी तक संदेश (sensory information) पहुँचाने का काम करते हैं। इन्ही संदेशों के माध्यम से ऊर्जा को ठंडा या कंप्रेस करने का कार्य किया जाता है । अवरोह की प्रक्रिया में ऊर्जा को जितना शांत और स्थिर किया जाता है उतना ही जीवनी शक्ति बढ़ने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं । साथ साथ अनुभव की अवधि बढ़ती है । ध्यान दें अनुभव की अवधि केवल स्थिरता में इच्छानुसार बढ़ायी जा सकती है । इसी अवस्था में मैंने कई रोगों के निदान पर भी कार्य किया है ।
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