योगी अनूप और शिष्य के मध्य संवाद: क्रिया योग के रहस्य
शिष्य: गुरुदेव, क्रिया योग क्या है? क्या इसका अर्थ केवल कुछ तकनीकों का अभ्यास है?
योगी अनूप: नहीं, मेरे बच्चे। क्रिया योग का अर्थ केवल तकनीकों तक सीमित नहीं है। ‘क्रिया’ का अर्थ है विशेष कर्म, और ‘योग’ का सामान्य अर्थ जुड़ने से है। किंतु गूढ़ अर्थों में इस योग का उद्देश्य है—क्रिया से अलगाव। जब कर्ता किसी क्रिया को करते हुए उससे अलग होकर अकर्तापन का अनुभव करने लगता है, तो वही वास्तविक योग है।
इसका अर्थ है कि वह कर्ता क्रिया के माध्यम से अपने मूल स्वभाव, अर्थात् अकर्ता, में स्थित हो गया। इसे इस प्रकार भी कह सकते हो कि अकर्ता अब स्वयं को कर्ताभाव से अलग करके क्रिया योग के माध्यम से अक्रिय में स्थित हो जाता है। यह स्थिरता की अवस्था है, जिसमें चित्त पूर्णतः स्थिर और शांत हो जाता है।
शिष्य: क्या क्रिया योग के माध्यम से हार्मोनल इम्बैलेंस को नियंत्रित किया जा सकता है?
योगी अनूप: तार्किक दृष्टि से देखें तो स्थिरता का अनुभव प्राप्त करना इस बात का संकेत है कि इन्द्रियाँ (कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियाँ) शांत और स्थिर हो गई हैं। इनकी स्थिरता और शांति का सीधा अर्थ है कि मस्तिष्क और रीढ़ के भीतर होने वाले रासायनिक व तंत्रिका तंत्र से जुड़े अनावश्यक ऐच्छिक परिवर्तन काफी हद तक रुक गए हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि विचार ही न्यूरॉन्स को अति सक्रिय होने के लिए प्रेरित करते हैं। जब विचार समाप्त हो जाते हैं और स्थिरता का बोध होता है, तो भावनात्मक दबाव भी लगभग समाप्त हो जाता है।
इस अवस्था में एड्रिनल ग्लैंड से होने वाला अनावश्यक हार्मोन स्राव नियंत्रित हो जाता है। यह स्थिरता फाइट और फ्लाइट प्रतिक्रियाओं को भी नियंत्रित कर लेती है और साथ ही डोपामिन की अतिसक्रिय माँग को भी संतुलित कर देती है। इस प्रकार, क्रिया योग के अभ्यास से न केवल मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है, बल्कि हार्मोनल असंतुलन भी स्वाभाविक रूप से संतुलित हो जाता है।
शिष्य: क्या क्रिया योग के माध्यम से भावनात्मक और किसी भी प्रकार की लत (एडिक्शन) को समाप्त किया जा सकता है?
योगी अनूप: मेरे स्वयं के अनुभव में, स्थिरता (गतिविहीनता) का अनुभव सभी प्रकार की भावनात्मक सुख और दुख की लतों को समाप्त कर देता है। एक सामान्य अवयस्क मन के लिए खुशी का मूल स्रोत भावनाएं ही होती हैं, और इन्हीं भावनाओं से उसके अंदर डोपामिन, एड्रेनालिन, ऑक्सीटोसिन जैसे हार्मोनों का स्राव होने लगता है। इन हार्मोनों के अत्यधिक स्राव से व्यक्ति में खाने-पीने या किसी ड्रग को लेने की लत बढ़ सकती है, जैसे मीठे खाने की लत।
एक उदाहरण से इसे समझने का प्रयास करते हैं: यदि किसी भी व्यक्ति में किसी भी प्रकार की भावनात्मक सुख की लहर उठती है, तो उसके अंदर डोपामिन जैसे हार्मोन का स्राव प्रारंभ हो जाता है। यह स्राव उसे मीठा भोजन करने के लिए प्रेरित करता है। यहाँ तक कि फाइट और फ्लाइट अवस्था में एड्रेनालिन हार्मोन के अत्यधिक स्राव के कारण मीठे खाने की इच्छा स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। मीठा खाने, शराब पीने, ड्रग लेने, सेक्स, या मास्टरबेशन के बाद उसे अल्पकालिक शांति का अनुभव होता है। इससे उसकी खुशी चरम पर पहुँचती है। किंतु, जब यह “नशा” समाप्त होता है, तो व्यक्ति अत्यधिक उदासी और लो फीलिंग मोड में चला जाता है। परिणामस्वरूप, वह फिर से वही कार्य दोहराता है, और यह उसकी लत बन जाती है।
किंतु, यदि क्रिया योग के अभ्यास से वह स्थिरता का अनुभव करे और स्थिरता के साथ भावनाओं के परे होने का बोध प्राप्त करे—वह भी बिना किसी ड्रग के—तो उस अवस्था में भावनाओं के प्रभाव से मुक्त होने के कारण हार्मोनों का अनावश्यक स्राव बंद हो जाएगा। यह सत्य है कि स्थिरता का अनुभव कराने वाला रसायन, जिसे सामान्यतः सेरोटोनिन कहा जाता है, अधिकतम रूप से संतुलित हो जाता है।
मेरे अनुभव में, स्थिरता का अनुभव इस रसायन को और संतुलित करता है और इसी के विपरीत इस रसायन के बढ़ने व संतुलित होने पर स्थिरता का बोध स्वाभाविक रूप से होने लगता है । भावनाओं से ऊपर और गति से परे होने का अनुभव भी प्रदान करने लगता है। यह गति वाले सभी हार्मोनों का अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण करता भी होगा । जब कोई व्यक्ति स्थिरता और विचारों से परे होने का अनुभव करता है, तब उसकी प्रसन्नता और मानसिक व शारीरिक ऊर्जा में स्वाभाविक वृद्धि होती है। साथ ही, उसकी इन्द्रियों से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया न होने के कारण उसकी प्रसन्नता में स्थिरता बनी रहती है। इस अवस्था में, व्यक्ति के अंदर किसी भी प्रकार के रोगों से लड़ने की शक्ति स्वतः आ जाती है।
शिष्य: गुरुदेव, क्रिया योग का अभ्यास न्यूरॉन्स को कैसे सक्रिय करता है, और इसका शरीर और मन पर क्या प्रभाव होता है?
योगी अनूप: जब क्रिया योग में प्राणायाम और ध्यान (विज़ुअलाइज़ेशन) का अभ्यास किया जाता है, तो यह मस्तिष्क और रीढ़ में स्थित न्यूरोट्रांसमिटर्स, जैसे सेरोटोनिन, को सक्रिय करता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से रीढ़ के उन सूक्ष्म केंद्रों पर काम करती है, जो विचारों और भावनाओं के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। ये न्यूरोट्रांसमिटर्स ही मस्तिष्क से शरीर और शरीर से मस्तिष्क तक सूचनाओं और भावनाओं के आदान-प्रदान का मूल माध्यम हैं।
जब क्रिया योग के अभ्यास से यह प्रवाह शांत और स्थिर हो जाता है, तो स्वाभाविक तौर पर मस्तिष्क में सेरोटोनिन जैसे कई स्थिरता वाले रसायन अधिक सक्रिय हो होंगे । चूँकि न्यूरोट्रांसमीटर विचारों के प्रवाह से मुक्त हो जाते हैं उसके अंदर न्यूरोप्लास्टीसिटी बढ़ जाती है । इस अवस्था में देह के सभी रसायनिक क्रियाएँ स्वतः स्फूर्ति हो उठती हैं । जैसे गहन निद्रा में ये रसायन स्वतः स्फूर्त हो जाते हैं । ध्यान दें जैसे ही कुछ पालों के लिए मन विचारों से पड़े चला जाता है , उसकी गति क्रिया योग के माध्यम से रोक दी जाती है वैसे ही रीढ़ और मस्तिष्क के अंदर रासायनिक परिवर्तन सबसे अधिक होने लगते हैं । उदाहरण के रूप में कम से कम गहरी नींद को लिया जा सकता ।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें सेरोटोनिन मानसिक स्थिरता, भावनात्मक संतुलन, और मन की शांति के लिए उत्तरदायी है। इसे सक्रिय करने से विचारों और वृत्तियों से परे जाने की अवस्था प्राप्त होती है, जिससे मानसिक शांति और स्पष्टता का अनुभव होता है।
शिष्य: क्या क्रिया योग का अभ्यास हार्मोन्स पर भी प्रभाव डालता है?
योगी अनूप: क्रिया योग का अभ्यास क्रिया के प्रति विज़ुअलाइज़ेशन और प्राणायाम सिखाता है। इसमें किसी प्रकार की भावनाओं का मिश्रण नहीं होता है। उदाहरण के लिए, संगीत सुनने से भावनाएं उत्पन्न होती हैं, किंतु क्रिया योग के अभ्यास में सुखद या दुखद किसी भी प्रकार की भावनाओं का सहयोग नहीं लिया जाता। इसमें क्रिया के प्रति अभ्यास में विज़ुअलाइज़ेशन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे रीढ़ और मस्तिष्क के संदेश वाहकों में एकाग्रता बढ़ सके।
ध्यान दें, जहाँ भी भावनाएं उत्पन्न होती हैं, वहाँ हार्मोन्स का स्राव अधिक होता है। जैसे, संगीत सुनने से हार्मोन्स का स्राव बढ़ जाता है। किंतु क्रिया योग जैसे अभ्यास, जिसमें एकाग्रता के कारण स्थिरता का अनुभव होता है, वहाँ न्यूरॉन्स के अधिक सक्रिय होने की संभावना रहती है। यह भी सत्य है कि स्थिरता प्रदान करने वाला रसायन सेरोटोनिन, जब संतुलित होता है, तो इसका हार्मोन्स पर भी सकारात्मक और संतुलनकारी प्रभाव पड़ता है।
मैं स्थिरता को सबसे अधिक प्राथमिकता देता हूँ क्योंकि इसके सिद्ध होने पर सभी अन्य उपलब्धियाँ स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाती हैं। यहाँ तक कि एड्रेनालिन हार्मोन भी स्वतः नियंत्रित हो जाते हैं। किंतु यह स्थिरता में वृद्धि का परिणाम होता है।
इसलिए मैं कहता हूँ कि क्रिया योग का प्रभाव हार्मोन्स की तुलना में अधिक तीव्र और सटीक होता है क्योंकि यह सीधे तंत्रिका तंत्र और न्यूरोट्रांसमिटर्स को सक्रिय करता है। यही कारण है कि इसका अभ्यास मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए अत्यंत प्रभावी है।
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