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क्रिया योग से रोगों का समाधान

3 weeks ago By Yogi Anoop

क्रिया योग से रोगों का समाधान: एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

क्रिया योग, अपने गहन आध्यात्मिक अभ्यास और वैज्ञानिक प्रभावों के साथ, केवल शारीरिक और मानसिक समस्याओं का समाधान नहीं है, बल्कि यह मानव अस्तित्व के गहरे रहस्यों को समझने का माध्यम भी है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव में, क्रिया योग की आरोह (ऊपर उठने की प्रक्रिया), अवरोह (नीचे उतरने की प्रक्रिया), और उनके मध्य स्थित स्थिरता की अवस्थाएं, देह और मस्तिष्क के रोगों के निदान और समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह शशक्त मन के द्वारा मस्तिष्क और रीढ़ में उन सभी न्यूरॉन्स को संतुलित करके एक दूसरे को बेहतर तरीके से जोड़ते हैं । 

आरोह और ऊर्जा का संचार

आरोह की प्रक्रिया ऊर्जा के तीव्र और सजीव संचार का अनुभव करवाती है। रक्त में ऑक्सीजन के स्तर की वृद्धि की जाती है साथ साथ हृदय के कार्य को बढ़ाया जाता है जिससे मस्तिष्क में रक्त और ऑक्सीजन का संचार बढ़ सके ।  यह  प्रणाली जिसमें सेंसरी न्यूरॉन्स को और बेहतर करने का प्रयत्न किया जाता है ।  इस प्रक्रिया में शरीर और मस्तिष्क के भीतर विभिन्न जैव-रासायनिक प्रक्रियाएँ सक्रिय हो जाती हैं। उदाहरण के लिए:

1. एड्रिनल ग्रंथियों का सक्रिय होना – एड्रिनल ग्रंथियों से एड्रेनालिन का स्राव होता है, जो शरीर को अलर्ट और ऊर्जावान बनाता है।

2. पिट्यूटरी और थायरॉइड ग्रंथियाँ – पिट्यूटरी ग्रंथि से ग्रोथ हार्मोन का स्राव और थायरॉइड ग्रंथि का संतुलित सक्रियण, शरीर की ऊर्जा का प्रबंधन करता है।

3. तंत्रिका तंत्र का उत्तेजन – यह प्रक्रिया मस्तिष्क की कोशिकाओं में ऊर्जा का तीव्र प्रवाह सुनिश्चित करती है, जिससे शरीर में तापमान वृद्धि होती है।

इन प्रक्रियाओं का प्रभाव शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर स्पष्ट रूप से दिखता है। किंतु यदि गति का वेग असंतुलित हो जाए, तो यह ऊर्जा हानिकारक हो सकती है। बिना गहन योगिक मार्गदर्शन के, इस प्रक्रिया का अभ्यास करना मस्तिष्क और शरीर के लिए खतरनाक हो सकता है। 

अवरोह और ऊर्जा का अवशोषण

अवरोह की प्रक्रिया, आरोह के द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को अवशोषित और संतुलित करती है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क और रीढ़ में उत्तेजित किया गए न्यूरॉन्स से सभी अंगों में ऊर्जा की अतिरिक्त वृद्धि को धीरे-धीरे शांत करती है , अवशोषित करती है । साथ साथ ऊर्जा को नीचे मूलाधार चक्र की तरफ़ ले जाकर प्रत्येक प्रत्येक चक्र व ऊर्जा स्थल को शांत करती है । 

1. मूलाधार चक्र की भूमिका – यहाँ पर यह समझना आवश्यक है कि मूलाधार देह की भौतिक ऊर्जा का स्रोत है और मस्तिष्क ज्ञान की ऊर्जा का श्रोत । क्रिया योग की विधि से मूलाधार अपनी भौतिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति के माध्यम से ऊर्जा को नियंत्रित और अवशोषित करता है, जिससे शरीर के अंगों का तापमान सामान्य किया जा सके ।

2. सेरोटोनिन का संतुलन – अवरोही प्रक्रिया के दौरान मस्तिष्क और रीढ़ में न्यूरॉन्स को समुचित मात्रा में सक्रिय और संतुलित किया जाता है जिससे मस्तिष्क, आँतों और रक्त के प्लेटलेट्स में सेरोटोनिन का की वृद्धि कर दी जाती है । इससे न केवल ऊर्जा का अवशोषण होता है बल्कि उस ऊर्जा का रूपांतरण (ट्रांसफॉर्मेशन) होता है स्थिरता के रूप में ।  ऊर्जा के इस रूपांतरण से प्राप्त स्थिरता आत्म ज्ञान का अनुभव करवाती है ।  

यह प्रक्रिया न केवल मानसिक विकारों को नियंत्रित करती है, बल्कि पाचन तंत्र और मल-निष्कासन की क्रियाओं को भी संतुलित करती है।

लय और स्थिरता का अनुभव

आरोह और अवरोह के बीच एवं उसके बाद, एक ऐसी स्थिति व पल आता है जिसे लय कहते हैं। यद्यपि इसे कुछ क्रिया योग के अभ्यासी शून्यता में विलय कहते अहीन किंतु मेरा अनुभव। भिन्न है । यह न तो विलय , नहीं ही प्रलय है , यह मात्र लय है । जिसमें ऊर्जा का , उत्तेजना का तापमान का , विचारों समापन हो जाता है । इसे ही लय कहते हैं । इस लय में शून्यता का अनुभव तो होता ही है साथ साथ शून्यता के बाद स्वयं के अस्तित्व अर्थात् आत्मा का अनुभव हो जाता है ।  

यह वह अवस्था है जब साधक अपने भीतर पूर्ण स्थिरता का अनुभव करता है। यह स्थिति ही पूर्ण स्वास्थ्य और परम ज्ञान की स्थिति है।

लय का अनुभव मस्तिष्क और शरीर में संपूर्ण संतुलन लाता है। यह वह क्षण है जब ध्याता (साधक) और ध्येय (ध्यान का विषय) दोनों समाप्त हो जाते हैं, और साधक आत्मा की गहराइयों में स्थित हो जाता है।

वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

1. तापमान नियंत्रण – आयुर्वेद में अपानवायु को तापमान का अप्रत्यक्ष नियंत्रक माना गया है। क्रिया योग की अवरोही प्रक्रिया, अपानवायु को सक्रिय करती है, जो शरीर से अशुद्धियों को निकालने और तापमान संतुलन में सहायक है।

2. मानसिक विकारों का समाधान – आधुनिक अनुसंधान के अनुसार, आँतों में सेरोटोनिन का स्तर गिरने से दैहिक समस्याएं जैसे IBS, हाइपरटेंशन, इत्यादि अनेकों और मानसिक विकारों में अवसाद, चिंता तनाव ओवरथिंकिंग हाइपरएक्टिव माइंड इत्यादि अनेकों मानसिक समस्याएँ बढ़ सकती हैं। क्रिया योग की अवरोही प्रक्रिया इस समस्या को संतुलित करने में सहायक है।

स्थिरता ही समाधान है

क्रिया योग का सार यही है कि ऊर्जा का प्रवाह और उसका अवशोषण, दोनों संतुलित हों। यह संतुलन ही शरीर और मस्तिष्क के रोगों का समाधान है और साथ साथ स्वयं के स्वरूप में स्थित होने का एक बहुत उत्तम और तीव्र माध्यम है ।  ध्यान की इस पद्दति से न केवल स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि यह साधक को परमात्म में स्थित करने में भी सहायक है । मेरे अनुभव में वह क्रिया सर्वोत्तम है जो आत्मा स्थिति , स्थिरता मन और देह सभी पक्षों को एक साथ बेहतर करे । अर्थात् एक साधे सब सधे । 

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