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कपालभाती का सूक्ष्म रहस्य

2 years ago By Yogi Anoop

कपालभाती प्राणायाम की उत्पत्ति और उसके प्रभाव का सूक्ष्म रहस्य 


    सामान्यतः शरीर की मांसपेशियों के अभ्यास पर ही ज़ोर दिया जाता है । वह भी हाथों और पैर के अभ्यास तक ही यह मनुष्य सीमित है । किंतु आसन विज्ञान में अभ्यास को अत्यधिक सूक्ष्मता की ओर ले ज़ाया जाता है , इसमें बहुत गहराई से रीढ़ पर ध्यान केंद्रित दिया गया । अंतरतम के अनुभव में मैंने यह पाया कि रीढ़ के जोड़ों में खिंचाव पैदा करके नसों और नाड़ियों तक अपने मन व चेतना को पहुँचाने का प्रयास किया जाता है । इसके द्वारा मन, शरीर के सूक्षतम जोड़ों वाले स्थानों तक जाने में कामयाब हो पाता है किंतु एक सीमा के बाद अभ्यास करने वाले का विकास रुक सा जाता है ।

उसका मन सूक्षतम जोड़ों के अतिरिक्त ज्ञानेंद्रिय तक नहीं पहुँच पाता है । मन ज्ञानेंद्रियों तक पहुँचे इसके लिए प्राणायाम के अभ्यास पर ज़ोर दिया गया । यहाँ पर ज्ञानेंद्रियों तक जाने का अर्थ है उन पाँच इंद्रियों (आँख कान नाक जीभ और त्वचा) तक जिसमें प्राणायाम के अभ्यास से पहुँचा जाता है । 

 

प्राणायाम की प्रक्रिया में कपालभाती जो एक शठकर्म की प्रारम्भिक क्रिया है, पर ज़ोर दिया गया । यदि इस प्राणायाम की गहराई को समझने का प्रयत्न किया जाय तो इसे मैं प्राणायाम की संज्ञा नहीं देना चाहूँगा । इसके अभ्यास में गले से लेकर नासिका के अग्र भाग तक आवाज़ के माध्यम से तनाव पैदा किया जाता है । इसमें स्वाँस की सहायता से साँसों को बाहर निकालते हुए आवाज़ पैदा करनी होती है । ध्यान दें साँसों को झटके से आवाज़ के साथ बाहर निकालकर गले से लेकर नासिका के अंदर वाले भाग तक में तनाव पैदा किया जाता है । यह तनाव साँसों के माध्यम से ही किया जाता है, तथा इसमें इतनी सूक्ष्मता होती है कि अभ्यास करने वाले को इस तनाव का एहसास तक नहीं होता है । वह प्राणायाम समझकर अभ्यास कर रहा होता है किंतु मूल सत्य है कि इस क्रिया में साँसों के अंदर लेने पर ज़ोर न देकर बाहर निकालने पर ज़ोर दिया जाता है । स्वाभाविक सी बात है कि अंदर स्वाँस की वृद्धि न करके बाहर निकालने पर ही ज़ोर दिया जाता है , साथ साथ साँसों को बाहर निकालते समय आवाज़ को निकालने के लिए भी कहा जाता है । 


जब स्वाँस के माध्यम से नाक और गले से आवाज़ निकालने का प्रयत्न किया जाता है तब उस पूरे क्षेत्र में ऊष्मा का पैदा होना स्वाभाविक है । गले से लेकर नाक के अंदर वाले त्वचा के पूरे हिस्सों में साँसों के झटके से और उसमें आवाज़ के माध्यम से झनझनाहट पैदा की जाती है । यह एक तरह से नाक से गले के अंदर की त्वचा का सूक्ष्म अभ्यास है जिसके द्वारा ऊष्मा व गर्मी पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है । 


चूँकि यह अंदर का पूरा क्षेत्र (नाक से लेकर गले तक) बहुत संवेदनशील होता है और इसका अंतरंग सम्बंध मस्तिष्क और इंद्रियों से घनिष्ठ होता है इसलिए इस हिस्से में जब ऊष्मा पैदा किया जाता है तब मस्तिष्क तक मन की पहुँच बढ़ जाती है । यदि इस अंदर के क्षेत्र में ऊष्मा पैदा कर दिया जाए तो मस्तिष्क तथा इंद्रियों होने वाली कई समस्याओं से बचा जा सकता है । 


ध्यान दें बहुत सारे ऐसे भी स्वभाव के व्यक्ति होते हैं जो बोलते समय अपने गले और नासिका में अधिक तनाव देते हैं । कुछ ऐसे भी होते हैं जो नाक से बोलते हैं । ऐसे भी लोग होते हैं जिनके नाक से गले तक की जगह में आवश्यकता से अधिक आर्द्रता होती है जिसके कारण साँसों के आवागमन में दिक़्क़तें होती हैं । यद्यपि इस स्थान में आर्द्रता का होना स्वाभाविक होता किंतु यदि इस स्थान में आवश्यकता से अधिक आर्द्रता व गीलापन होता है तब साइनस वाली जगह भी धीरे धीरे प्रभावित होने लगती है । माइग्रेन , सिर दर्द जैसे अनेको बीमारियाँ स्वतः ही घेरने लगती हैं जिसका आधुनिक विज्ञान में समाधान सम्भव नहीं होता है । किंतु कपालभाती के इस गहन अभ्यास से इन समस्याओं से निदान मिल सकता है । 


यहाँ पर यह भी ध्यान देने योग्य बातें है कि कपालभाती के अभ्यास में कुछ लोग इतनी हदें पार कर देते हैं कि गले से नाक तक के अंदर वाले हिस्सें की आर्द्रता को समाप्त कर देते है जिसके कारण और साइड इफ़ेक्ट होने लगते हैं । इसलिए प्राणायाम के अभ्यास में किसी अनुभवी गुरु की सहायता आवश्यक लें । 

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