‘कपाल’ का अर्थ मस्तक अर्थात् सिर तथा ‘भाति’ का अर्थ सफाई करना होता है । अर्थात सिर को शुद्ध करना । प्राणायाम की इस तकनीक मे हमारे मस्तिष्क का अगला हिस्सा प्रभावित होता है जिससे मस्तक, आँखों के आस पास का हिस्सा, साइनस से सम्बंधित सभी हिस्सों पर इसका प्रभाव पड़ता है । मैंने इसके अभ्यास से बंद नाक को खुलने तथा नाक की बढ़ी हुई हड्डी को भी सामान्य करते हुए पाया है ।
यद्यपि हठयोग में इसे प्राणायाम की संज्ञा नहीं दी गयी है , वर्ष में कुछ महीने ही इसे डीटॉक्सिफ़िकेशन के लिए करने की सलाह दो जाती है । किंतु कुछ वर्षों से इसे हमेशा करने की सलाह दी जाती । जहां तक मेरे अनुभव है इस क्रिया हमेशा नहीं किया जाना चाहिए, विशेश करके वात और पित्त प्रकृति के लोगों को इस प्राणायाम से बचना चाहिए । कफ़ प्रकृति के व्यक्तियों को या उन्हें जिनको जुकाम और साइनस से सम्बंधित समस्या है उन्हें इसका अभय करना बहुत ही लाभदायक है ।
वस्तुतः कपालभाती को 2 भागों मे बिभाजित किया जा सकता है ।
1 स्थूल कपालभाति
2 सूक्ष्म कपालभाति
यहाँ पर स्थूल कपालभाति का ही ज़िक्र किया जाएगा
स्थूल कपालभाति को बिल्कुल वैसे ही किया जाता है जैसे छींक ली जाती है । दूसरे शब्दों मे इसे इस तरह से भी कहा जा सकता है कि छींकने की क्रिया को ही कपालभांति कहतें हैं । छीकने से जो लाभ होता है वही कपालभाति से होता है । चूकि छीकने का कोई निश्चित समय तो होता नही इसीलिये येगियों ने शरीर की नियमित सफाई के लिये छीकने जैसी क्रिया ‘कपालभाति’ को चुना । जिसके प्रतिदिन के अभ्यास से अनेक रोंगों से बचा जा सकता है । जिसे कोई रोग नही उसको भी यह क्रिया अवस्य करनी चाहिये उसकी शकित बढ जायेगी ।
कपालभाति (स्थूल) करने की विधि 🧘♂️
शरीर को स्थिर बनाने वाले किसी भी आसन जैसे पदमासन सिद्धासन सिद्धयोनि आसन मे बैठें । तथा दोनो हाथों को घुटनो पर रखें । आंखे बन्द कर लें ।
अब जैसे हम छींकतें है वैसे ही कपालभाति करना प्रारम्भ करें । झटके से स्वाश को नाक से आवाज के साथ बाहर निकाला जाता है । जब झटके से श्वाश बाहर निकले तब पेट भी पिचक जाना चाहिये । इस समय मुह बन्द होना चाहिये । श्वाश को अन्दर आराम से आने दें । प्रति शेकेन्ड एक श्वाश के हिसाब से 12 चक्र कपाल भाति करिये अर्थात छींकिये ।
12 बार करने के बाद आराम कर लें इस समय भी आंखें बन्द होनी चाहिये ।आराम करने बाद 12 बार फिर से कपालभाति दोहरायें । प्रत्येक 12 चक्र के करने के बाद आराम करना आवस्यक है ।
प्रथम अभ्यासी को कपालभाति मात्र 24 बार करना चाहिये । 15 दिनो के बाद इसे 48 बार बढा देना चाहिये । इसके बाद यदि और बढाना चाहतें हैं तो किसी यौगिक गुरू से सलाह अवस्य ले लें । जिन्हें न समझ मे आता हो वे केवल छींकने का अभ्यास करें ।
लाभ
• समूचे शरीर को शुद्ध करता है क्योंकि शरीर से अधिक मात्रा मे कॉर्बन की मात्रा निकालता है ।
• मस्तिष्क को ऑक्सिजन की आपूर्ति आसानी से करता है अतः व्यर्थ का चिन्तन धटाता है ।
• मस्तिष्क मे ऑक्सिजन की आपूर्ति आसानी से होने के कारण चयापचय की शक्ति बढ जाती है ।
• कब्ज को आसानी से दूर कर देता है ।
• तथा पाचनशकित को भी बढा देता है ।
• दमा कफ ब्रोंकाइटिस ताथा तपेदिक की शिकायत को आसानी से दूर करता है ।
• अम्ल पित्त तथा डकार नियन्त्रित हो जाती है ।
• हदय की शक्ति को बढा देता है ।
• बडी आंत मे रूकी हुई गैस आसानी से निकल जाती है ।
इस क्रिया के अच्छे अभ्यास से मोटापा भी बहुत जल्दी दूर होता देखा गया है ।
सावधानियां
किसी भी प्राणायाम को करने के पूर्व उसकी सावधानियों पर नजर अवस्य रखना चाहिये । ताकि उससे लाभ पूरी तरह से हम लें सकें ।
• उच्च रक्तचाप मे इस क्रिया को नही करनी चाहिये ।
• हार्निया से ग्रस्त लोग इस क्रिया को करने से बचें ।
• अभ्यास के दौरान सिर मे चककर आये या सिर मे भारीपन हो जाय तो तत्क्षण प्राणायाम को करना रोक दें । 5 मिनट के लिये आंख बन्द कर लेट जांय । सिर मे भारीपन बन्द हो जायेगा । साथ साथ किसी अनुभवी योग व आध्यात्मिक गुरू से प्राणायाम की जांच करवा लें ।
• बिल्कुल खााली पेट मे ही यह क्रिया करनी चाहिये ।अतः सुबह का समय ही इसके लिये चुनना चाहिये ।
ध्यान
प्राणयाम के अन्त मे अपनी इंद्रियों को बहुत सावधानी पूर्वक ढीला और शांत करें , इसके लिए ‘योग निद्रा’ की सहायता अवस्य ही लेनी चाहिये । 5 मिनट के लिये पीठ के बल आंख बन्द करके लेट जांय । आँखों को, माथे को पूरी तरह से ढीला करने का अभ्यास करे । फिर उसके बाद सामान्य काम कर सकतें हैं ।
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