कफ जनित सभी बीमारियों को ठीक करने की क्षमता रखता है
अर्थ:
कपालभाति प्राणायाम एक महत्वपूर्ण श्वसन क्रिया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “कपाल” यानी मस्तिष्क का आगे का हिस्सा और “भाति” यानी चमक या सफाई। इसका मूल उद्देश्य मस्तिष्क, मस्तिष्क के आगे के हिस्से तथा चेहरे, जिसमें साइनस का हिस्सा भी सम्मिलित है, को शुद्ध करना है। विषाक्त पदार्थों के निष्कासन के लिए इस देह में प्रमुख इंद्रियाँ कार्य करती हैं। विशेष रूप से यह कपालभाति क्रिया ज्ञानेन्द्रियों में आँखों, नाक, कान, गले के हिस्सों के अंदर जमा पदार्थों को निष्कासित करती है। इसकी उत्पत्ति कर्मेन्द्रियों की सफ़ाई से कहीं अधिक ज्ञानेन्द्रियों की शुद्धता के लिए ही उपयोगी है। यह प्राचीन योगियों द्वारा विकसित एक ऐसी विधि है, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने और मन को शांत व स्पष्ट बनाने में सहायक है।
उद्देश्य:
कपालभाति का सबसे बड़ा उद्देश्य डिटॉक्सीफिकेशन है। जितना ग्रहण करना महत्वपूर्ण है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है शरीर से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन। इस प्रक्रिया के माध्यम से शरीर की ऊर्जा संतुलित होती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। योगियों ने छींकने की प्राकृतिक क्रिया से प्रेरणा लेकर इसे विकसित किया, क्योंकि छींकने से मस्तिष्क और श्वसन प्रणाली स्वतः शुद्ध होती है। इसी आधार पर कपालभाति की विधि बनाई गई, जो नियमित अभ्यास से शरीर को स्वच्छ और रोगमुक्त बनाती है।
कपालभाति के प्रकार और उनकी क्रिया विधि:
कपालभाति को मुख्य रूप से दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। पहला है स्थूल कपालभाति, जो शारीरिक क्रिया पर आधारित है, और दूसरा है सूक्ष्म कपालभाति, जो मानसिक और ऊर्जा स्तर पर कार्य करता है।
स्थूल कपालभाति:
इसकी प्रक्रिया छींकने जैसी होती है। इस विधि में, किसी स्थिर आसन जैसे पद्मासन या सिद्धासन में बैठें और दोनों हाथ घुटनों पर रखें। आँखें बंद कर लें और ध्यान केंद्रित करें। झटके से नाक के माध्यम से श्वास बाहर निकालें, जैसे छींकने की प्रक्रिया में होता है। श्वास निकालते समय पेट को भी अंदर की ओर खींचें। इस दौरान मुंह बंद रखें और श्वास को आराम से अंदर आने दें। शुरुआत में, इसे प्रति सेकंड एक श्वास के हिसाब से बारह बार करें। बारह बार करने के बाद कुछ क्षण आराम करें और पुनः बारह बार दोहराएँ।
प्रारंभिक अभ्यास में इसे चौबीस बार करना पर्याप्त है। पंद्रह दिनों के बाद इसे बढ़ाकर अड़तालीस बार किया जा सकता है। यदि इसे और बढ़ाना हो, तो किसी योग गुरु की सलाह अवश्य लें। यदि क्रिया समझने में कठिनाई हो, तो केवल छींकने की प्रक्रिया का अभ्यास करें।
सूक्ष्म कपालभाति:
इस प्रक्रिया में छींकने जैसी ही क्रिया होती है, किंतु इस प्राणायाम में बहुत आराम से सूक्ष्म रूप में स्ट्रोक करना है। ध्यान दें, इस अभ्यास में बहुत जल्दी-जल्दी नहीं करना होता है। इस क्रिया में आवाज बहुत कम की जाती है और साथ ही बहुत धीरे-धीरे स्ट्रोक किया जाता है। इस प्राणायाम में एक स्ट्रोक के बाद थोड़ा आराम करने के बाद दूसरा स्ट्रोक किया जाता है। स्ट्रोक करने के बाद इस क्रिया में विचारहीनता का अनुभव किया जाता है। इस सूक्ष्म अभ्यास से कई रोगों को मैंने ठीक किया है।
कपालभाति के लाभ:
कपालभाति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ज्ञानेन्द्रियों से लेकर गले तक स्थित म्यूकस व विषाक्त पदार्थ, जो आवश्यकता से अधिक इन स्थानों पर एकत्रित होते हैं, उन्हें निकालने का कार्य करता है। ध्यान दें, ज्ञानेन्द्रियों में विषाक्त पदार्थों के इकट्ठा होने से मस्तिष्क का संचालन बहुत धीमा हो जाता है। अवसाद, सिर में भारीपन, माइग्रेन, मस्तिष्क में होने वाली संभावित गांठें और साइनस से संबंधित कई समस्याएँ, जो ज्ञानेंद्रियों के आस-पास कफ के इकट्ठा होने से उत्पन्न होती हैं, इन्हें कपालभाति के माध्यम से दूर किया जा सकता है।
यह कपालभाति की क्रिया ज्ञानेन्द्रियों से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में बहुत मदद करती है। यह श्वसन तंत्र और मस्तिष्क को भी शुद्ध करती है, जिससे मन शांत और स्पष्ट होता है। कफ रोगों को दूर करने में यह अत्यधिक प्रभावी है और पाचन तंत्र को सक्रिय करती है। इसके नियमित अभ्यास से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, मानसिक शक्ति में सुधार होता है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।
इस प्राणायाम के अभ्यास से केवल रोगियों को ही नहीं, बल्कि स्वस्थ व्यक्तियों को भी लाभ होता है। कपालभाति न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि मानसिक शांति और ऊर्जा संतुलन के लिए भी आवश्यक है। योगियों की यह विधि एक सरल और प्रभावी उपाय है, जो जीवन में संतुलन और आनंद लाने में सहायक है।
इसके लाभ को कुछ इस प्रकार से लिखा जा सकता है:
• समूचे शरीर को शुद्ध करता है क्योंकि यह शरीर से अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालता है।
• मस्तिष्क को ऑक्सीजन अवशोषित करने की क्षमता बढ़ती है, क्योंकि साइनस के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक कफ की मात्रा को निष्कासित किया जाता है। इससे ऑक्सीजन अवशोषण की क्षमता बढ़ती है और व्यर्थ के चिंतन में कमी आती है।
• मस्तिष्क में ऑक्सीजन के बेहतर अवशोषण के कारण चयापचय की शक्ति बढ़ जाती है। इसके साथ-साथ यह कब्ज को भी आसानी से दूर करता है। मेरे अनुभव में, साइनस के क्षेत्र में अधिक मात्रा में म्यूकस के इकट्ठा होने से आँतों की सक्रियता कम हो जाती है और ऐसे लोगों में आरामतलबी देखी जाती है।
• ज्ञानेन्द्रियों में आवश्यकता से अधिक म्यूकस व जल का भराव होने से दमा, कफ, ब्रोंकाइटिस तथा तपेदिक जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस प्राणायाम के अभ्यास से इन सभी समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है। ध्यान दें, इसका अभ्यास किसी अनुभवी साधक के निरीक्षण में ही करना चाहिए।
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