Loading...
...

कमर के दर्द से हो सकती है नपुंसकता !

1 month ago By Yogi Anoop

कमर के दर्द से हो सकती है नपुंसकता !

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

लंबर रीढ़ (lower back) शरीर को गतिशीलता और स्थिरता प्रदान करती है। यह बांस के पेड़ के समान ही होता है । जितना यह तना मजबूत होता है उतना ही पेड़ का ऊपरी हिस्सा टिका हुआ होता है । उसी प्रकार  मनुष्यों की रीढ़ होती है जो झुकने, मुड़ने और उठाने जैसे कार्यों को संभव बनाती है और साथ ही शरीर के वजन को पैरों तक पहुंचाती है। विशेष रूप से अंतिम दो कशेरुकाएं (L4 और L5) व इसके निचले के हिस्से के क्षेत्र में सबसे अधिक भार और दबाव झेलती हैं। यही कारण है कि यह क्षेत्र डिस्क हर्नियेशन, आर्थराइटिस और स्पोंडिलोसिस जैसी समस्याओं का शिकार होता है । 

तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव: 

कमर (लंबर) रीढ़ में लंबोसैक्रल प्लेक्सस (नसों का जाल) होता है, जो निचले अंगों, श्रोणि (pelvis,मूत्र मार्ग, मलाशय, गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब, अंडाशय), और पेट के बहुत सारे हिस्सों को नियंत्रित करता है। यदि इस क्षेत्र में कोई संरचनात्मक असंतुलन या गिरावट होती है, तो यह नसों को दबा सकती है, साथ साथ कब्ज़ और पेशाब से संबंधित समस्याओं तो बहुत आसानी से देखी जा सकती हैं । इसके कारण अन्य समस्याएं भी जैसे ; 

• सेक्स में कमी का आभाव,

• लगातार कमर दर्द।

• पैरों में कमजोरी या सुन्नता।

• श्रोणि अंगों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।

नसों के दबाव या श्रोणि क्षेत्र में रक्त प्रवाह बाधित होने से प्रजनन और यौन अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो नपुंसकता जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

रीढ़ की हड्डी केवल शरीर का आधार नहीं है, मन का मस्तिष्क के माध्यम से शरीर के अंगों तक और अंगों का संकेत मस्तिष्क तक पहुँचाने में मुख्य भूमिका निभाता है । यह ऊर्जा प्रवाह का मुख्य मार्ग है। योग के अनुसार, रीढ़ में सुषुम्ना नाड़ी होती है, जो रीढ़ के मूल (मूलाधार चक्र) से मस्तिष्क (सिर) के शीर्ष (सहस्रार चक्र) तक जाती है। इस मार्ग पर छह मुख्य ऊर्जा केंद्र या चक्र स्थित हैं। ये चक्र शरीर के शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं से जुड़े हैं। इन मुख्य बिंदुओं में नाभि चक्र के पीछे मणिपुर चक्र कमर के हिस्से का द्योतक है । 

इसका न केवल धातु निर्माण बल्कि मस्तिष्क की ऊर्जा की वृद्धि में भी विशेष महत्व होता है। 

1. पाचन तंत्र को नियंत्रित करता है और शरीर में भोजन और ऊर्जा (प्राण) के अवशोषण में मदद करता है।

2. ऊर्जा प्रवाह को बनाए रखते हुए लिवर को संतुलित किए रखता है, साथ साथ इक्षा-शक्ति व दृढ़ता को बढ़ावा देता है। 

3. यौन स्वास्थ्य को नियंत्रित करता है और प्रजनन अंगों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करता है।

इसी क्षेत्र की उपेक्षा करने से मणिपुर चक्र और आसपास के ऊर्जा प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। यह न केवल पाचन और ऊर्जा अवशोषण को प्रभावित करता है, बल्कि प्राण के प्रवाह को भी स्वाधिष्ठान चक्र (जो श्रोणि क्षेत्र में स्थित है) तक रोक देता है, जो प्रजनन स्वास्थ्य से सीधे जुड़ा हुआ है। समय के साथ, यह ऊर्जा की कमी, यौन क्षमता में गिरावट और यहां तक कि नपुंसकता का कारण बन सकता है।

विज्ञान और आध्यात्म का समन्वय

1.रक्त प्रवाह और ऊर्जा प्रवाह का संबंध:

वैज्ञानिक दृष्टि से, बैठने की खराब मुद्रा, लंबे समय तक तनाव या गतिहीन जीवनशैली से कमर क्षेत्र में खराब रक्त प्रवाह होता है, जिससे श्रोणि (मूत्र मार्ग, मलाशय, गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब, अंडाशय) अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती । उन हिस्सों की मांसपेशियों में पर्याप्त शक्ति नहीं रहती है ।   आध्यात्मिक दृष्टि से, मणिपुर या निचले चक्रों में प्राण का ठहराव यौन अंगों में ऊर्जा की कमी का कारण बनता है।

2. हार्मोनल संतुलन:

कमर (लंबर) क्षेत्र एंडोक्राइन सिस्टम (हार्मोन ग्रंथियों) को सहारा देता है, विशेष रूप से यौन हार्मोन (अंडाशय और वृषण) का संचालन। लंबर क्षेत्र में गड़बड़ी से इन ग्रंथियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आध्यात्मिक रूप से, यह मणिपुर और स्वाधिष्ठान चक्र में असंतुलन का कारण बनता है, जो यौन ऊर्जा को कम करता है।

3.दर्द और भावनात्मक तनाव:

लगातार कमर दर्द अक्सर मनोदैहिक विकारों (psychosomatic disorders) से जुड़ा होता है, जिसमें भावनात्मक तनाव शारीरिक दर्द को बढ़ा देता है। योग के अनुसार, यह तनाव मणिपुर चक्र में प्राण के प्रवाह को रोकता है, जिससे मानसिक स्पष्टता, भावनात्मक स्थिरता और शारीरिक कार्यक्षमता प्रभावित होती है।

यौगिक उपचार

1.कमर (लंबर) क्षेत्र को मजबूत बनाना:

नियमित योगाभ्यास जैसे भुजंगासन (Cobra Pose) और शलभासन (Locust Pose) लंबर रीढ़ को मजबूत करते हैं, रक्त प्रवाह में सुधार करते हैं, और सेंसरी और मोटर नर्व को बहुत अच्छी तरह से बेहतर करके सेंसरी और मोटर न्यूरॉन्स को स्वस्थ करता है । साथ साथ रीढ़ के कई ऐसे अभ्यास हैं जो डोपामाइन और सेरोटोनिन को भी बेहतर करता हुआ पाया जाता है । एकमात्र योग के आसन के अभ्यास से स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया जा सकता है  । इसे ही कहते हैं मणिपुर का सक्रिय होना । इसमें आसन तो कारगर होता ही है साथ साथ प्राणायाम और चक्रों पर एकाग्रता भी बहुत कारगर साबित होती है । 

 3.शारीरिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखना:

शारीरिक व्यायाम, तनाव प्रबंधन, और ध्यान व वैज्ञानिक तरह से मंत्र जाप का अभ्यास जैसी आध्यात्मिक प्रथाओं को अपनाकर शरीर और आत्मा दोनों के संतुलन को बनाए रखा जा सकता है।

Recent Blog

Copyright - by Yogi Anoop Academy