कम बोलने का वात-पित्त पर प्रभाव
बोलने की प्रक्रिया में मन, मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र और हार्मोनल सिस्टम के बीच गहराई से समन्वय स्थापित होता है। इसमें कई न्यूरॉन्स, न्यूरोट्रांसमीटर्स और हार्मोन्स शामिल होते हैं।
भाषा और शब्दों के निर्माण के लिए मस्तिष्क का फ्रंटल भाग उपयोग में लाया जाता है और उस भाषा और शब्दों के अर्थ को समझने के लिए मस्तिष्क के टेम्पोरल भाग का उपयोग किया जाता है।
अब ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब कोई व्यक्ति बहुत तेजी से और अधिक मात्रा में बोलता है, तब उसके अंदर भाषा और शब्दों के अर्थ के विश्लेषण की समझ में कहीं न कहीं कमी दिखती है। इसका कारण यह है कि बोलने की गति बहुत तेज होती है। बहुत तीव्र गति से बोलने पर सजगता को बहुत अधिक समय तक कायम रखना संभव नहीं होता। स्वाभाविक है कि बोलते समय अति करने पर समझने वाला हिस्सा भ्रमित हो उठता है। यहाँ तक कि बोलते समय सोचते कुछ हैं और मुँह से निकलता कुछ और है।
इसके अतिरिक्त, बोलते समय मस्तिष्क को लार की मात्रा को अधिक उत्पन्न करना पड़ता है, जो कि बोलने की अति के कारण संभव नहीं हो पाता। कहा जाता है कि एड्रेनालिन (एड्रिनल) और कार्टिसोल हार्मोन्स का असामान्य रूप से प्रवाह बढ़ता और घटता हुआ पाया जाता है।
मेरा आध्यात्मिक अनुभव
यदि मैं अपने आध्यात्मिक अनुभवों के अनुसार अपने तथ्य रखूँ, तो यह कहना चाहूँगा कि बोलने में मात्रा और गति की अति करने पर मन, मस्तिष्क और इन्द्रियों को बहुत अधिक कार्य करना पड़ता है। अधिक कार्य करने से उपर्युक्त वैज्ञानिक दोष स्वाभाविक रूप से हो जाते हैं। इसके विपरीत, कम बोलने से मन, मस्तिष्क और इन्द्रियाँ स्वयं को हील करने में समर्थ हो जाती हैं। इसका मूल कारण यह है कि विचारों पर अधिक नियंत्रण हो जाता है, और विचारों के नियंत्रण से मोटर नर्वस सिस्टम और न्यूरॉन्स पर स्वाभाविक रूप से नियंत्रण स्थापित हो जाता है। यहाँ तक कि इन्द्रियों और मस्तिष्क के न्यूरॉन्स पर भी अधिक नियंत्रण हो जाता है।
ध्यान दें, कम बोलने का अर्थ यह है कि व्यक्ति शब्दों व भाषा को समझकर बोल रहा है। समझने की इस प्रक्रिया में मस्तिष्क के वे सभी भाग समुचित मात्रा में नियंत्रित हो जाते हैं, जो इसके लिए उत्तरदायी होते हैं। इसी कारण ज्ञानयोग के अभ्यास में मैंने सबसे अधिक तंत्रिका तंत्र पर नियंत्रण अनुभव किया है। यहाँ तक कि हठयोग और भक्ति योग में भी उतना समुचित विकास नहीं होता जितना ज्ञानयोग के माध्यम से होता है।
मेरे अनुभव के अनुसार, कम बोलने से सेरोटोनिन पर सबसे अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसका कारण यह है कि विचारों के कम होने पर स्थिरता का बोध अधिक होता है। यहाँ तक कि कम बोलने से स्मरण शक्ति का भी विकास होता है।
शारीरिक लाभ
कम बोलने का अर्थ यह है कि व्यक्ति में समझ अधिक बढ़ जाती है। समय के अनुरूप किससे, कब, क्या और कितनी मात्रा में बोलना है, इसका अनुभव प्राप्त हो जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि मस्तिष्क ही नहीं, बल्कि शरीर के कुछ प्रमुख अंग, जैसे लिवर पर भी अधिक दबाव नहीं पड़ता। अधिक बोलने से साँसों के रेचन में असंगतियाँ देखी जाती हैं। रेचन में अस्थिरता और खिंचाव होने पर वायु और पित्त रोग की समस्याएँ स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो जाती हैं। यहाँ तक कि रक्त संचार और पाचन में भी गड़बड़ियाँ देखने को मिलती हैं। ऐसे लोगों में रिफ्लक्स की समस्या आमतौर पर देखी जा सकती है।
अत्यधिक बोलने पर पेट में खिंचाव अत्यधिक होता है और साथ ही साँसों के बाहर जाने में इतनी अनियमितता होती है कि इससे साँस फूलने जैसा अनुभव होता है। इसके विपरीत, कम बोलने से इन सभी समस्याओं से बचा जा सकता है। ध्यान दें, कम बोलने का अभिप्राय यह है कि विचारों का कम से कम चलना। इस अवस्था में मस्तिष्क और रीढ़ के अंदर स्थिर न्यूरॉन्स को स्थिरता प्राप्त होती है।
अर्थात्, वे न्यूरॉन्स और हार्मोन्स जो तनाव पैदा करते हैं, वे शांत हो जाते हैं। इसके विपरीत, सकारात्मक रसायनों और हार्मोन्स, जैसे सेरोटोनिन, डोपामिन और पैरासिम्पैथेटिक सिस्टम, की सक्रियता बढ़ जाती है।
आकाश तत्व की वृद्धि
कम बोलने का अर्थ है विचारों का ठहराव और विचारों की स्थिरता। विचारों की स्थिरता का अर्थ है दो या दो से अधिक विचारों के बीच आकाश व खाली स्थान की वृद्धि। यह रिक्त स्थान मन, इन्द्रियों और मस्तिष्क के सूक्ष्मतम हिस्सों के विश्राम का समय होता है। विश्राम के इसी आनंददायक पल में स्वयं के होने की अनुभूति होती है। यह क्षण विचारों की अनुपस्थिति का अनुभव नहीं, बल्कि स्वयं की अनुभूति का क्षण बन जाता है।
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