कम व आराम-आराम से बोलना आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट माना जाता है । यद्यपि सामाजिक दृष्टि से भी इस प्रकार के स्वभाव के लोगों को बहुत इज्जत से देखा जाता है । वह इसलिए कि आराम और शांतिपूर्वक बोलने वालों के चेहरे व ज्ञानेंद्रयों और कर्मेंद्रियों के भाव बहुत चंचल नहीं होते हैं , उनमें ठहराव बहुत अधिक होता है इसके करण सामने वाले की चंचल व अशांत मन को शीघ्र ही प्रभावित कर लेता है । । यहाँ पर ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बात है कि आराम आराम व शांत पूर्वक बातें करने से विचारों के मध्य बहुत अधिक ग्रैविटी बढ़ जाती है जिससे व्यक्ति को कम बोल करके भी अपनी बातों को अधिक प्रचार करने की शक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है ।
इसके करण आत्म संतोष भी अधिक बढ़ जाता है । विचारों पर नियंत्रण भी अधिक होता है क्योंकि विचारों की गति बहुत धीमी करने में मन को विजय प्राप्त हो जाती है । । मेरे स्वयं के अनुभव में कम बोलने से इसीलिए मस्तिश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देह के सभी महत्वपूर्ण अंगों पर सात्विक प्रभाव पड़ता है ।
यहाँ पर यह समझना भी महत्वपूर्ण होगा कि कोई भी व्यक्ति कम इसलिए बोल रहा है कि वह स्वयं में अधिक संतुष्ट है, विचारों को शांत कर दिया है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि उसका आध्यात्मिक पक्ष बहुत मज़बूत है । इस प्रकार के लोगों को सकारात्मक रूप से अंतर्मुखी स्वभाव का व्यक्ति कहा जाता है ।
किंतु बहुत लोग ऐसे भी स्वभाव के होते हैं जिनके अंतरतम में विचार तो बहुत चलते हैं किंतु किसी कारणवश वे अपनी बाटो को छिपा जाते हैं , इसके करण वे कम बोलते हुए देखे जाते हैं । मेरे दृष्टि में ऐसे स्वभाव के लोग अपनी विचारों को शांत करने के बजाय दबाने का प्रयास करते हैं जिससे इनके मानसिक और मस्तिष्क से सम्बंधित समस्याएँ बढ़ने लगती हैं । इस पारकर के स्वभाव के व्यक्तियों को नकारात्मक दृष्टि से अंतर्मुखी कहा जाता है । इस प्रकार के लोगों में बहुत अधि अवसाद के रोगों को पनपते देखा है इसलिए मेरी दृष्टि से ज्ञानात्मक व समझदारी बढ़ाकर बोलना बहुत उत्तम जाना जाता है । इससे कम बोलना स्वतः ही सिद्ध हो जाता है ।
समझदारी अधिक बढ़ने से व्यक्ति जब कम बोलता है तब उसका मस्तिष्क और इंद्रियाँ बहुत अशांत और असंतुष्ट नहीं होने पाती हैं । इसी कारण ऐसे स्वभाव के व्यक्तियों का मन मस्तिश बहुत अधिक शार्प और साथ साथ बहुत अधिक observant होता है ।
कम बोलने से शरीर में स्थित आकाश और वायु तत्व की कमी नहीं होने पाती है जिससे व्यक्ति को बार बार भोजन नहीं करना पड़ता है और साथ साथ उस प्रकार के भोजन में रुचि नहीं होगी जिसमें बहुत तीव्रता हो । जैसे तीखा, बहुत मीठा इत्यादि ।
इस प्रकार के स्वभाव के लोगों में बहुत गहराई होती है । इसी कारण इनमें अत्यधिक गम्भीरता देखने को मिलती है । यदि स्वभाव आध्यात्मिक है तो इस प्रकार के लोग स्वयं के आत्म विकास के साथ साथ समाज को भी एक दिशा देते हैं किंतु यदि आध्यात्मिक नहीं है तो वे स्वयं के मस्तिष्क को बहुत ही हानि पहुँचाते हैं ।
कम बोलने से आपसी सम्बन्धों में भी बहुत खटास नहीं होने पाती है । इनके सम्बन्ध लम्बे समय तक के लिए चलते हैं ।
कम और धीरे धीरे आराम आराम से बोलने पर मन और मस्तिष्क का बातों के निकलते पर नियंत्रण अधिक होता है । अंदर सोचने और उसे निकालने में बहुत तेज़ी नहीं होने से मन अंदर ही अंदर सोच विचार करके बोलने में अभ्यस्त हो जाता है । इससे मन, इंद्रिय और मस्तिष्क की आंतरिक क्षमता में अपर वृद्धि हो जाती है ।
ऐसे स्वभाव में हृदय की गति में बहुत तेज नहीं होती है, और साथ साथ रक्त संचार में भी नियंत्रण अच्छी तरह से होता देखा गया है ।
इस प्रकार के लोगों में सहनशीलता और धैर्य भी अधिक बढ़ जाता है । सत्य यह है कि सोचने की प्रक्रिया में पहले से ही इतना धैर्य है कि बाह्य स्वभाव में भी वह धैर्य और सहनशीलता दिखने लगती है ।
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