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खुद में असंतुष्ट होने से क्या-क्या रोग ?

4 years ago By Yogi Anoop

खुद में असंतुष्ट होने से क्या-क्या रोग ?

खुद (स्वयं) का अस्तित्व ही खुदा का आधार है। चाहे शब्दों में हो, बोलने में, सोचने में, कल्पना में, या फिर सपने में—खुद के बिना खुदा की परिकल्पना भी असंभव है। अगर आपका स्वयं समाप्त हो जाए, तो खुदा का विचार भी संभव नहीं रहेगा।

यह कहना उचित होगा कि ‘खुद’ में ‘आ’ जोड़ने से ‘खुदा’ बनता है। बोलने में भी बिना ‘खुद’ के ‘खुदा’ शब्द का उच्चारण संभव नहीं। यही कारण है कि भारतीय योग ऋषियों ने आत्म संतुष्टि को जीवन का आधार माना। अगर हम अपने आप से संतुष्ट हैं, तो हमें बाहरी दुनिया की ओर भागने की जरूरत नहीं।

आत्म संतुष्टि का महत्व

हमारे भीतर जो शरीर, मन और इंद्रियाँ हैं, वे हमें संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। अगर हम इस शरीर और मन में ही संतुष्टि नहीं पा सकते, तो भले ही हमें लाखों-करोड़ों की दौलत मिल जाए, उसका कोई अर्थ नहीं रहेगा।

मेरा अनुभव यह कहता है कि जीवन की मूल आवश्यकता हमारी अपनी शांति है। अगर यह शांति नहीं है, तो हम रोगग्रस्त हो जाते हैं। आत्म-असंतुष्टि से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का मुख्य कारण हमारी अपनी सोच और जीवनशैली है।

आत्म-असंतुष्टि से उत्पन्न समस्याएँ

आत्म संतुष्टि का अभाव हमारे शरीर और मन में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है, जैसे:

• यौन कुंठा (Sexual Frustration): असंतोष की वजह से मानसिक और शारीरिक तनाव।

• नींद का न आना: गहरी और शांतिपूर्ण नींद का अभाव।

• नाड़ी दोष: रक्त और ऊर्जा प्रवाह में असंतुलन।

• अत्यधिक बोलना (Excess Speaking): अस्थिर मन की वजह से बेवजह बोलना।

• मुँह में अत्यधिक लार: मनोवैज्ञानिक और शारीरिक असंतुलन का संकेत।

• वायु रोग: पाचन और शरीर में ऊर्जा का असंतुलन।

• क्रोध: छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आना।

इन सभी समस्याओं का मूल कारण आत्म-असंतोष है, जो हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

समाधान: आत्म-संतुष्टि का मार्ग

इन समस्याओं से उबरने और शांति प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

1.स्वयं के लिए समय निकालें:

दिन में कम से कम 2 घंटे अपने लिए निर्धारित करें। यह समय ध्यान, योग, या आत्म-विश्लेषण के लिए हो सकता है।

2.आध्यात्मिक गुरु से सलाह लें:

अपने जीवन के मार्ग को बेहतर समझने और समस्याओं का समाधान खोजने के लिए किसी आध्यात्मिक गुरु से संपर्क करें। उनका मार्गदर्शन आपकी आत्मा को शांति और संतुष्टि प्रदान कर सकता है।

3.योग और ध्यान का अभ्यास करें:

योग और ध्यान न केवल मन को शांत करता है, बल्कि शरीर को स्वस्थ और संतुलित रखने में भी मदद करता है।

आत्म-संतोष ही शांति और खुशहाल जीवन की कुंजी है। यदि आप अपने मन, शरीर और आत्मा में संतुलन बना सकते हैं, तो बाहरी दुनिया की किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। अपने भीतर संतोष और शांति की खोज करें, क्योंकि ‘खुद’ से ही ‘खुदा’ का अनुभव संभव है।

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