जबरन एकाग्रता से तनाव
सामान्यतः मन स्वाभाविक रूप से किसी भी वस्तु पर अधिक समय तक एकाग्रचित नहीं हो पाता है । यह भी सत्य है उनमें से कुछ ऐसे भी व्यक्तित्व होते हैं जिनका मन किसी भी विषय पर अधिक समय तक एकाग्र हो जाता । किंतु यहाँ पर मूल विषय एकाग्रता बढ़ाने और घटाने का नहीं है । मूल विषय एकाग्रता के समय इन्द्रियों पर प्रतिक्रियाओं से है । उन प्रतिक्रियाओं से है जिनसे विभिन्न प्रकार के रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ।
यह तो सत्य है एकाग्रता के समय सभी इन्द्रियों पर तनाव स्वाभाविक रूप से आता ही है , साथ साथ देह के सूक्ष्म अंगों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है किंतु सामान्य बुद्धि के लोगों में किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जब एकाग्रता का प्रयोग किया जाता है तब इन्द्रियों पर अधिक ज़ोर व खिंचाव पड़ता है । यहाँ तक कि पेट के ऊपरी हिस्सों में भी खिंचाव आता है । यह सभी प्रतिक्रियाएँ उन लोगों में सबसे अधिक देखी जाती है जो लक्ष्य की प्राप्ति व किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए मन को बहुत जबरदस्ती एकाग्र करने का प्रयत्न करते हैं । इसी जबरन एकाग्रता से इन्द्रियों में अभ्यास की जगह पर तनाव आता है जो भविष्य में रोगों के रूप में प्रतिलक्षित होता है ।
यहाँ तक कि मैंने अपने प्रयोगों में में योग प्राणायाम और विशेषकर ध्यान करने वाले अभ्यासियों में भी इस समस्या को होते हुए देखा है । यहाँ तक कि आँखों को किसी एक वस्तु पर अधिक से अधिक समय तक बिना पलके झुकाए एकाग्र करने में भी समस्याओं को आते हुए मैंने अनुभव किया है । कुछ अभ्यासियों को जो तीसरे नेत्र अर्थात भूमध्य पर ध्यान एकाग्रचित करते हैं , उनमें भी कई मानसिक समस्याओं को जन्म होते हुए देखा है ।
जबरन एकाग्रता और उसका शरीर पर प्रभाव
जब कोई व्यक्ति अपनी इंद्रियों और मन को ज़बरदस्ती किसी एक बिंदु पर केंद्रित करने का प्रयास करता है, तो इसका सीधा प्रभाव न केवल मस्तिष्क पर पड़ता है, बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों, जैसे कि नेत्र, तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र और मांसपेशियों पर भी देखा जाता है।
• नेत्रों पर प्रभाव: लगातार किसी वस्तु को देखने या ध्यान केंद्रित करने से आँखों की मांसपेशियों पर अधिक तनाव पड़ता है। इससे आँखों में भारीपन, थकान, धुंधलापन और सिरदर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
• पाचन तंत्र पर प्रभाव: अत्यधिक मानसिक एकाग्रता से पेट के ऊपरी हिस्से में खिंचाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे गैस्ट्रिक, अपच, कब्ज़ और एसिडिटी जैसी समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
• तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव: ज़बरदस्ती एकाग्रता से तंत्रिका तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, जिससे नींद में बाधा, चिड़चिड़ापन और तनाव की वृद्धि होती है।
• मांसपेशियों में खिंचाव: लम्बे समय तक एक ही स्थिति में ध्यान केंद्रित करने से गर्दन, कंधे और रीढ़ की हड्डी में कठोरता आ सकती है, जिससे पीठ दर्द और सिरदर्द की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
मानसिक तनाव और जबरन ध्यान केंद्रित करने के दुष्परिणाम
जब व्यक्ति अपने दिमाग को अत्यधिक कार्यशील बनाने की कोशिश करता है, तो उसका मस्तिष्क निरंतर एक विशेष पैटर्न में काम करने लगता है। इससे कुछ गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं:
• संज्ञानात्मक थकान (Cognitive Fatigue): निरंतर मानसिक दबाव से मस्तिष्क थक जाता है, जिससे ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और स्मरण शक्ति प्रभावित होती है।
• नींद की समस्या: मानसिक तनाव से नींद का चक्र प्रभावित होता है, जिससे अनिद्रा, बेचैनी और स्वप्न-दोष जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
• मूड स्विंग और चिड़चिड़ापन: मानसिक थकान के कारण व्यक्ति के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, गुस्सा और अवसाद जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
• भावनात्मक असंतुलन: ज़बरदस्ती ध्यान केंद्रित करने से व्यक्ति के विचारों में कठोरता आ सकती है, जिससे सामाजिक और पारिवारिक जीवन प्रभावित हो सकता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मस्तिष्क पर अत्यधिक एकाग्रता का प्रभाव
न्यूरोसाइंस के अनुसार, मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (Prefrontal Cortex) को एकाग्रता और निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जब व्यक्ति अत्यधिक एकाग्रता का प्रयास करता है, तो यह क्षेत्र अधिक सक्रिय हो जाता है, जिससे कोर्टिसोल (Cortisol) नामक तनाव हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है।
• कोर्टिसोल का उच्च स्तर: यह हार्मोन तनाव को बढ़ाने के साथ-साथ शरीर में विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है, जैसे कि हृदय गति का बढ़ना, रक्तचाप में वृद्धि और पाचन संबंधी विकार।
• डोपामिन असंतुलन: एकाग्रता बढ़ाने के अत्यधिक प्रयास से डोपामिन हार्मोन की असंतुलन स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे व्यक्ति मानसिक थकावट, अवसाद और चिंता से ग्रस्त हो सकता है।
• ब्रेन वेव पैटर्न में परिवर्तन: अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने से मस्तिष्क की बीटा वेव्स (Beta Waves) अधिक सक्रिय हो जाती हैं, जो अधिक तनाव और बेचैनी का कारण बन सकती हैं।
एकाग्रता का संतुलित अभ्यास
योग और ध्यान के अभ्यास में एकाग्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे ज़बरदस्ती करने से नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। सही तरीके से ध्यान लगाने और संतुलित अभ्यास अपनाने से इन समस्याओं से बचा जा सकता है ।
• नैसर्गिक रूप से ध्यान केंद्रित करें: जब भी ध्यान करें, तो इसे ज़बरदस्ती करने की बजाय स्वाभाविक रूप से करें।
• ब्रेक लें: लम्बे समय तक ध्यान केंद्रित करने के बाद कुछ समय का ब्रेक लें, जिससे मस्तिष्क को विश्राम मिल सके।
• सांसों पर ध्यान दें: ध्यान के दौरान गहरी और नियंत्रित सांसें लेने से मस्तिष्क शांत रहता है और कोर्टिसोल का स्तर नियंत्रित रहता है।
• संतुलित दिनचर्या अपनाएँ: मानसिक और शारीरिक संतुलन के लिए योग, प्राणायाम और हल्की कसरत को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
मैं उस एकाग्रता को सर्वोत्तम मानता हूँ जिसमें एकाग्रता के बढ़ने पर इन्द्रियों में शिथिलता आए । यह एकाग्रता व्यक्तित्व ही नहीं बल्कि रोगों को भी नहीं आने देती है । विशेष रूप से तंत्रिका तंत्र , पाचन तंत्र और मांसपेशियों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जाए, तो मस्तिष्क में अत्यधिक कोर्टिसोल और डोपामिन असंतुलन जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जो मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन और अनिद्रा जैसी समस्याओं को जन्म देती हैं। अतः, संतुलित अभ्यास और स्वाभाविक रूप से ध्यान केंद्रित करना ही स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
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