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क्रिया योग का वैज्ञानिक आधार क्या है?

2 months ago By Yogi Anoop

क्रिया योग का वैज्ञानिक आधार क्या है?

क्रिया योग का वैज्ञानिक आधार दो तरीके से सिद्ध होता है। यह विज़ुअलाइज़ेशन और प्राणायाम का मिश्रण है। सामान्यतः हठ योग में प्राणायाम के अभ्यास के पीछे का तात्पर्य चिकित्सा होता है । उसमें श्वास प्रश्वास के माध्यम से भिन्न भिन्न समस्याओं के समाधान के लिए चिकित्सा करवायी जाती है । किंतु मूल रूप से राजयोग में जो भी प्राणायाम का वर्णन है उसका उद्देश्य मनो वात अर्थात् विचारों से परे ध्यान में स्थित होने की बात की जाती है । यहाँ पर प्राणायाम, अष्टांग योग का एक हिस्सा होता है, किंतु ध्यान दें आधुनिक समय में प्राणायाम की तकनीके जितनी भी होती अहीन जिनका अभ्यास आधुनिक गुरुओं के द्वारा करवाया जाता है उसमें सात्विक काल्पनिकता को जोड़कर करवाया जाता है । इसी प्रकार ध्यान में भी उन्हीं विधियों का अभ्यास करवाया जाता है जिसमें काल्पनिकता का प्रभाव हो । 

 आसन और विज़ुअलाइज़ेशन का अंतर

सर्वप्रथम यहाँ पर यह समझने का प्रयत्न किया जाना चाहिए कि आसन और विज़ुअलाइज़ेशन में अंतर क्या है । जब किसी भी व्यक्ति के द्वारा किसी भी आसन का अभ्यास किया जाता है तब शरीर में जो भी वास्तविक खिंचाव उत्पन्न होता है उसमें विज़ूलाइज़ेशन की कोई आवश्यकता नहीं होती है । उदाहरण के लिए, यदि रीढ़ में खिंचाव उत्पन्न किया जाता है ,  यह खिंचवा एक वास्तविक अनुभव होता है, जिसे आंखें बंद करके भी महसूस किया जा सकता है। इस वास्तविक अनुभव में मन और खिंचाववाले स्थान का संयोग करवाया जाता है । अर्थात् मन की आनुभविक क्षमता की वृद्धि उस स्थान पर की जाती है ।  इससे उस स्थान अथवा उस अंग की हीलिंग प्रारंभ हो जाती है किंतु आधुनिक समय में आसान का अभ्यास करते हुए अभ्यासी एक सात्त्विक काल्पनिक दुनिया में रहते हुए यह सोच रहा होता है कि उसका अंग हील रहा होता । इसी प्रकार प्राणायाम में भी वास्तविक और विज़ुअलाइज़ेशन किया जाता है ।  

क्रिया योग और न्यूरॉन्स की गति 

क्रिया योग के वैज्ञानिक आधार को समझने के लिए यह देखना होगा कि यह न्यूरॉन्स की गति को कैसे प्रभावित करता है। इसमें स्वयं की रीढ़ में विज़ूलाइज़ेशन का प्रयोग किया जाता है । जिससे रीढ़ के अंदर ऊर्जा के ऊपर और नीचे होने की अनुभूति की जाती है । 

ध्यान दें जब क्रिया योग के इसी अभ्यास में ऊर्जा की गति धीमी की जाती है जिससे न्यूरॉन्स की गति स्वतः धीमी और शांत होने लगती है । वह इसलिए भी सिद्ध किया जा सकता कि उस समय मन बहुत अधिक समय तक विचारविहीनता का अनुभव करने लगता है । मस्तिष्क गहन शांत होने लगता है जिससे न्यूरॉन्स की गति का कम होना स्वाभाविक होगा । यहीं से देह मस्तिष्क की हीलिंग प्रारंभ होती है । 

रासायनिक प्रक्रियाओं पर प्रभाव

क्रिया योग के इसी अभ्यास में न्यूरॉन्स की गति के धीमी होने से स्थिरता, और शांति (सेरोटोनिन) में वृद्धि होती है । इसी से स्थिरता के करण प्रसन्नता बढ़ाने वाला हार्मोन की मात्रा भी संतुलित होने लगती है साथ साथ मेलाटोनिन के भी संतुलन की संभावना बढ़ जाती है । यह एक प्रकार से तकनीक का सहारा लेता है जिसे अंग्रेजी में इंजीयरिंग कह सकते हैं जो तकनीकी रूप से शरीर की विद्युत ऊर्जा और रासायनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है । 

किंतु यदि इससे ज्ञान योग और भक्ति योग की तुलना की जाये तो इसे एक उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है । । उदाहरण के लिए, भक्ति योग में भावनाओं को जागृत कर प्रसन्नता की अनुभूति होती है, किंतु क्रिया योग क्रिया के माध्यम से शरीर की विद्युत शक्ति को नियंत्रित करके स्थिरता प्रदान करता है। वहीं पर ज्ञान योग ज्ञान व विवेक के माध्यम से मस्तिष्क के तंतुओं में नियंत्रण की क्षमता की वृद्धि करता है । 

मेरे अनुभव में योग की प्रत्येक अंग (भक्ति , कर्म , ज्ञान , हठ योग ) मस्तिष्क के तंतुओं में ही नियंत्रण की क्षमता का विकास करता है । इससे अनेकों रोगों को नियंत्रण करने में निपुणता मिलती है । 

वही पर विज्ञान की दृष्टि से देखने पर यह ज्ञात होता है कि अल्फा वेव, बीटा वेव और थीटा वेव जैसी विद्युत तरंगों में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिलता है जब इन सभी योग के अंगों के अभ्यास के माध्यम से साधक स्वयं के वैचारिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है । उसका उद्देश्य भिन्न भिन्न माध्यमों से विचारों और मस्तिष्क को शांत करके विद्युत तरंगों की गति को नियंत्रित करना ही होता है । इसी के माध्यम से आध्यात्मिक यात्रा की जाती है । 

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