क्रिया योग, भक्तियोग और वैज्ञानिकता का समन्वय.
1. भक्ति योग और क्रिया योग का अंतर
योग की विभिन्न शाखाएँ हमें आत्मविकास और चेतना के उच्च स्तर तक पहुँचाने में सहायक होती हैं। भक्ति योग और क्रिया योग दोनों ही साधनाएँ हैं, लेकिन उनके कार्य करने के तरीके और प्रभाव भिन्न होते हैं।
• भक्ति योग में भावनाओं के माध्यम से भावनाओं के पार जाने की बात की जाती है। भक्त स्वयं के अंदर सर्वोच्च चेतना के साथ भावनाओं के माध्यम से जुड़ने का प्रयत्न करता है। जब भावनाएँ एक विशेष अवस्था में पहुँचती हैं, तो भक्त उन्हें पार कर जाता है।
• भक्ति योग की इस विधि में भावनाओं के प्रयोग के माध्यम से एक विशेष प्रकार के प्रेम रस का अनुभव होता है, जिसे विज्ञान की भाषा में “लव हार्मोन्स” कहा जाता है।
ऑक्सिटोसिन (Oxytocin) – प्रेम और अपनापन का हार्मोन
जब कोई भक्त प्रेमपूर्वक भगवान का भजन, कीर्तन या ध्यान करता है, तो ऑक्सिटोसिन का स्राव बढ़ता है। यह हार्मोन भावनात्मक जुड़ाव, करुणा और प्रेम को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति अधिक शांत और आनंदित महसूस करता है। भक्तों में संतों, गुरु और भगवान के प्रति गहरा प्रेम और भक्ति इसी हार्मोन के कारण महसूस होती है।
चूँकि भक्ति योग में प्रमुखता भगवान के प्रति भावनाएँ अर्पित करने की होती है, इसलिए परिणामस्वरूप संतोष और स्थिरता प्राप्त हो जाती है। अतः, कहीं न कहीं सेरोटोनिन जैसे रसायन का भी स्राव होता है। संतोष और स्थिरता के प्राप्त होने का अर्थ ही सेरोटोनिन का स्राव है।
परमात्मा को प्राप्त करने की निरंतर इच्छा के कारण भक्त में उत्साह और प्रेरणा भी बनी रहती है, जिससे डोपामाइन की भी वृद्धि होती है।
ध्यान दें कि भावनाओं के इसी अर्पण में परमात्मा के प्रति इतना प्रेम और विश्वास जागता है कि भक्त को यह एहसास होने लगता है कि वह परमात्मा के बहुत निकट है। इसके परिणामस्वरूप, शरीर के अंदर प्राकृतिक दर्द निवारक रस एंडोर्फिन (Endorphins) का उत्पादन होने लगता है। यहाँ तक कि भक्त को अपने शरीर में हो रही घटनाओं का भी अहसास नहीं होता।
भक्ति योग का प्रमुख माध्यम भक्ति और भावनाओं के द्वारा प्रेम रस उत्पन्न करना और फिर भावनाओं के पार जाना होता है। किंतु यह मार्ग एक सीमा के बाद रुक जाता है। इसके बाद क्रिया योग और ज्ञान योग का महत्व प्रकट होता है।
अब यहाँ क्रिया योग के माध्यम से उत्पन्न होने वाले हार्मोनों का विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है।
सेरोटोनिन – स्थिरता का हार्मोन
क्रिया योग भावनाओं का उपयोग नहीं करता। यह एक प्रकार की इंजीनियरिंग तकनीक है, जिसमें विज़ुअलाइज़ेशन और प्राणायाम के माध्यम से रीढ़ और मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को सक्रिय करके सेरोटोनिन की वृद्धि की जाती है। इससे प्रत्यक्ष रूप से स्थिरता और संतोष का अनुभव होने लगता है।
जैसे किसी कार के निर्माण के लिए इंजीनियरिंग स्किल की आवश्यकता होती है, वैसे ही क्रिया योग में भी क्रियाओं को एक स्किल के रूप में अपनाया जाता है, जहाँ भावनाओं को अलग रखते हुए रीढ़ के अंदर प्रयोग किया जाता है।
यहाँ पर भावनाओं का सहयोग नहीं लिया जाता, बल्कि क्रिया के प्रति एकाग्रता और दक्षता मायने रखती है। जितना अधिक कोई व्यक्ति क्रिया में दक्ष होता है, उतना ही वह भावनाओं के परे चला जाता है।
इस क्रिया में सेरोटोनिन का उत्पादन तो होता ही है, साथ ही आनंद और प्राकृतिक दर्द निवारक रस भी उत्पन्न होते हैं। किंतु मुख्य प्रभाव सेरोटोनिन पर ही केंद्रित रहता है।
मैंने अनुभव किया है कि इस क्रिया के माध्यम से स्थिरता को प्राथमिकता देकर अधिक मात्रा में सेरोटोनिन उत्पादित किया जा सकता है, जबकि भक्ति योग में वर्षों के अभ्यास के बाद भावनाओं को जगाने की लत पड़ जाती है, जिससे नींद उड़ जाने की संभावना बढ़ जाती है।
क्रिया योग और न्यूरॉन्स में विद्युत प्रवाह (वैज्ञानिक दृष्टिकोण)
क्रिया योग केवल भावनात्मक क्रियाओं तक सीमित नहीं है। यह श्वास, विद्युत तरंगों और ऊर्जा प्रवाह के माध्यम से कार्य करता है, जिससे संपूर्ण शरीर और मस्तिष्क प्रभावित होते हैं।
जब क्रिया योग का अभ्यास किया जाता है, तो यह न्यूरॉन्स में विद्युत तरंगें उत्पन्न करता है, जिससे मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा संतुलित होती है।
व्यावहारिक उदाहरण:
• यदि भक्ति योग को एक धीमी और भावनात्मक जलधारा माना जाए, जो धीरे-धीरे मन और हृदय को भिगोती है, तो क्रिया योग एक विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करता है, जो सीधे मस्तिष्क और नाड़ियों (Nervous System) को संतुलित कर देता है।
• जैसे तालाब में एक पत्थर मारने से जल में लहरें उत्पन्न होती हैं और किनारे तक पहुँचने में समय लगता है, वहीं अगर उसी जल में विद्युत तरंगें प्रवाहित कर दी जाएँ, तो पूरे पानी में उसकी पहुँच तीव्र गति से हो जाती है। इसी विद्युत प्रवाह की प्रक्रिया को क्रिया योग के अभ्यास द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
क्रिया योग: न्यूरोलॉजी और आध्यात्मिकता का संगम
क्रिया योग केवल एक साधना नहीं, बल्कि न्यूरोलॉजी और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
• जब किसी वस्तु में विद्युत प्रवाहित की जाती है, तो उसकी गति बहुत तेज़ हो जाती है। किंतु कोई वस्तु की गति जितनी तीव्र होती है उतना ही उसकी प्रतिक्रियाओं की संभावनाए भी होती है , इसीलिए गुरुओं ने इसकी गति को ही नियंत्रित करने की विधि बतायी । क्रिया योग के अभ्यास में इस विद्युत तरंगों की गति को नियंत्रित करना ही मुख्य लक्ष्य होता है।
• भक्ति योग के कारण विद्युत तरंगों की तीव्रता अनावश्यक रूप से बढ़ जाती है, जिससे व्यक्ति उसमें उलझ सकता है। क्योंकि भावनाओं में उलझना बहुत सरल होता है ।
इसलिए क्रिया योग में:
1. मस्तिष्क के न्यूरॉन्स में नियंत्रित रूप से विद्युत ऊर्जा प्रवाहित की जाती है, जिससे यह न्यूरल नेटवर्क में संतुलित रूप से फैलती है।
2. जब कोई व्यक्ति क्रिया योग के माध्यम से अपने रीढ़ (मेरुदंड) और मस्तिष्क में विद्युत ऊर्जा का संचार करता है, तो यह प्रक्रिया रीढ़ से मस्तिष्क, मस्तिष्क से रीढ़, और फिर पूरे शरीर तक फैलती है।
3. यह प्रक्रिया शारीरिक, मानसिक और न्यूरोलॉजिकल स्तर पर गहरा प्रभाव डालती है।
4. मस्तिष्क की तरंगों में अल्फा, बीटा और गामा तरंगें कार्य करती हैं, किंतु विद्युत तरंगों की अपॉनतीव्रता कम कर दी जाती है, जिससे मानसिक स्थिरता और जागरूकता बढ़ती है।
5. जब व्यक्ति क्रिया योग करता है, तो यह न्यूरॉन्स की गतिविधियों को संतुलित कर तंत्रिका तंत्र को मजबूत करता है और मानसिक क्षमता को विस्तारित करता है।
ध्यान देने योग्य बाते यहाँ पर यह है कि भक्ति योग और क्रिया योग दोनों ही अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं, किंतु भावनाओं के आधार पर आगे बढ़ने के बाद जब कोई साधक स्थिरता, संतुलन और गहरी चेतना की ओर बढ़ना चाहता है, तब भावनाओं के परे जाने की संभावना कम होती अही किंतु राजयोग की यह क्रिया विधि जिसका प्रभाव न्यूरॉन्स पर अधिक पड़ता है वह भावों से परे शीघ्रता से कर देती है ।
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